Friday, March 29, 2024
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बच्चों के लिए बुजुर्गों का साथ क्यों है जरूरी

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Balvani


वर्किंग माता पिता हैं तो उन्हें बच्चे के साथ बैठने का कम ही समय मिलता है। बच्चे भी कई बार अपनी बातें पेरेंट्स से करने से डरते हैं, हिचकिचाते हैं। लेकिन जब आस पास ग्रैंडपेरेंट्स होते हैं तो उनमें एक कॉन्फिडेंस आता है कि है कि कोई है जिससे वो अपनी बात कह सकते हैं|

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जो शायद उन्हें समझे भी और सबसे बड़ी बात किसी भी बाहरी इंसान से कोई भी गलत सलाह लेने से वो बच जाते हैं क्योंकि अपने तजुर्बे से और बच्चे के हित में ध्यान में रखकर दादा-दादी प्यार और दुलार के साथ सही सलाह भी देते हैं।

…नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए…6 साल का नन्हा आरव आज सुबह से ही यह गा रहा है..बहुत खुश है वो आज। एक साल बाद आज उसके नाना नानी उससे मिलने जो आ रहे हैं। और भी खुशी की बात ये है कि नानी ने आरव को प्रॉमिस किया है कि इस बार वो पूरा तीन महीने उसके साथ रहेंगे। वहीं आरव की मम्मी अक्षिता मे भी काफी रिलैक्स है।

अब आरव दिनभर उसे परेशान नहीं करेगा ना और नानाजी थोड़ा पेंटिंग सिखा देंगे। अक्षिता कब से चाह रही थी कि आरव को कुछ श्लोक आ जाएं लेकिन अपने बिजी शेड्यूल की वजह से उसे वक्त ही नहीं मिल पा रहा था। चलो, नानी को पूजा-पाठ करते देखेगा तो यी भी सीख ही लेगा।

एक वक्त था जब घर के बड़े बुजुर्गों से घर की शान होते थे। बच्चों को संस्कार और एक अच्छी परवरिश दोनों साथ में मिलते थे। आज किसा भी घर में जाइए तो बच्चे अपना खाली समय में या तो फोन में घंटों लगे रहता है या फिर टीवी में। वो दादा-दादी की कहानियां तो जैसे कहीं खो ही गई हैं।

बच्चे को एक अच्छी परवरिश तो हम सब देना चाहते हैं लेकिन शायद कहीं ना कहीं इस फैक्ट को भूल जाते हैं कि इस परवरिश का एक अहम और खास हिस्सा है दादा-दादी, नाना-नानी का साथ, उनका प्यार ,आशीर्वाद और मार्गदर्शन। तो अगर आप अच्छी पैरेंटिंग की टिप्स ढूंढते रहते हैं तो इस बात को समझ लें कि ग्रैंड पेरेंट्स का साथ आपके बच्चे के ओवरआॅल डेवलपमेंट में एक अहम भूमिका निभाता है। कैसे, ये हम आपको बताते हैं।

मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा, ये कहावत शायद आपने सुनी होगी और यही बात यहां भी लागू होती है। ग्रैंड पेरेंट्स को अपने नाती-पोतों से एक विशेष लगाव होता है। अपने बच्चों से भी बढ़कर और ऐसे में घर में बना रहता एक खुशनुमा माहौल। वो ना तो सिर्फ बच्चों को अच्छे संस्कार देते हैं बल्कि उनकी गलतियों में भी उन्हें प्यार से समझाते हैं। वक्तके साथ साथ यह बॉन्डिंग, यह रिश्ता होता जाता है।

घर में बना रहता है खुशनुमा वातावरण

जब माता पिता काम में लगे रहते हैं तो बच्चों को बड़े बुजुर्गों में दिखता है एक साथी, जिसके साथ वो अपना वक्त बिता सकता है। वैसे देखा जाए तो कंपनी तो दोनों को मिल जाती है। दोनों एक दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हैं और एक दूसरे को सुनने और समझने का मौका भी मिल जाता है। आज की व्यस्तता भरी जिंदगी में जहां किसी के पास बैठ कर बात करने का, सोशलाइजिंग का वक्त नहीं है, तो ऐसे में यह बांड वाकई में अनमोल है।

जहां आज के दौर में अपने विचारों को व्यक्त ना कर पाने से लोग अंदर ही अंदर खुद से लड़ते रहते हैं, ऐसे में जाहिर है कि अगर बच्चे के पास कोई अपना है, जो ना सिर्फ उसे सुन और समझ सकता है बल्कि सही मार्गदर्शन भी कर सकता है, तो ऐसे में डिप्रेशन जैसी समस्या पर भी काबू पाया जा सकता है।

डिजिटल एरा में हम अपने परिवार वालों से दूर होते जा रहे है। फोन से ये तो पता चल जाता है कि देश-दुनिया के किस कोने में क्या हो रहा है लेकिन आप अपने आपके परिवार से धीरे धीरे दूर हो जाते हैं। दादा दादी साथ में रहने पर बच्चों को अपनी भाषा और अपनी संस्कृति का पता चलता है। वर्किंग पैरेटस कई जगह पर रिवाजों के साथ कॉम्प्रोमाइज कर लेते हैं या कहिये कि शार्ट कट अपना लेते हैं लेकिन हमारे बुजुर्ग तीज त्योहारों को लेकर बड़े ही परटीकुलर होते हैं।

किस त्यौहार में क्या व्यंजन बनना है, कब व्रत करना है, किस दिन कौन सी पूजा होनी है, ये कुछ ऐसी बातें हैं जो शायद कई मार्डन परिवारों मे नहीं मानी जाती। लेकिन अपनी संस्कृति को समझना और उसे अगली पीढ़ी तक ले जाना, ये दायित्व ग्रैंड पेरेंट्स बखूबी निभाते हैं। अकसर बुजुर्ग लोग अपनी ही क्षेत्रीय भाषा में बात करते हैं जिससे शहरी लोग बहुत दूर हो गए हैं। बच्चे बुजुर्गों के साथ रहकर ये सभी चीजे धीरे धीरे अपने अंदर आत्मसात कर लेता है। चाहे सुबह उठकर सूर्य को पानी देना हो या फिर गायत्री मंत्र का उच्चारण,बच्चा धीरे धीरे सब सीख जाता है।

दोस्त भी, मेंटर भी

वर्किंग माता पिता हैं तो उन्हें बच्चे के साथ बैठने का कम ही समय मिलता है। बच्चे भी कई बार अपनी बातें पेरेंट्स से करने से डरते हैं, हिचकिचाते हैं। लेकिन जब आस पास ग्रैंडपेरेंट्स होते हैं तो उनमें एक कॉन्फिडेंस आता है कि है कि कोई है जिससे वो अपनी बात कह सकते हैं, जो शायद उन्हें समझे भी और सबसे बड़ी बात किसी भी बाहरी इंसान से कोई भी गलत सलाह लेने से वो बच जाते हैं क्योंकि अपने तजुर्बे से और बच्चे के हित में ध्यान में रखकर दादा-दादी प्यार और दुलार के साथ सही सलाह भी देते हैं।

बच्चों में रेस्पॉन्सिबल फीलिंग

उम्रदराज बुजुर्ग जब घर में होते हैं तो बच्चों में अपने आप एक उत्तरदायित्व निभाने की फीलिंग आने लगती है। दादी के बैठने पर उनको हाथ पकड़ कर बैठाना, खड़े होने पर सहारा देना, उनको जूस-चाय आदि वक्त वक्त पर देना। बच्चे चाहते हैं कि उन्हें कोई काम, कोई रेस्पॉन्सिबिलिटी दी जाए दिया जाए। ऐसे में जब उन्हें ग्रैंड पेरेंट्स की जिÞम्मेदारी दी जाती है तो उनकी एनर्जी सही दिशा में चैनेलाइज होती है और बड़ों का ब्लेसिंग मिलती है, वो अलग।

कंपनी भी, केयर भी

ग्रैंड पेरेंट्स के घर में रहने से बच्चों को पढ़ाई में मदद तो मिलती ही है साथ ही में एक मिलती है फुल प्रूफ केयर भी। आज के दौर में जहां दोनों पेरेंट्स वर्किंग होते हैं, ऐसे में घर में दादी-नानी की मौजूदगी से एक तरह की निश्चिंतता भी आ जाती है। जब हम किसी भी बाहरी मदद पर पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पाते हैं|

तो ऐसे में ग्रैंड पेरेंट्स का आसपास होना बड़ी ही तसल्ली देता है कि हां कोई है, जिसके साथ हमारा बच्चा पूरी तरह से सेफ और सिक्योर है। हाँ यहां इस बात को जरूर ध्यान में रखा जाए कि बच्चे की की पूरी जिम्मेदारी उन पर डाल कर उन्हें ओवरबर्डन भी ना किया जाए।

पारू दुर्गापाल


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