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नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है। इन दिनों भारत की नई संसद भवन यानि सेंट्रल विस्टा की चर्चा का बाजार गरम है। इसकी वजह बनी है सेंगोल। सनातन संस्कृति में सेंगोल को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता रहा है।
इसको शिंगोले के नाम से भी जाना जाता है। नवनिर्मित संसद भवन में यह प्रयागराज के संग्रहालय से निकलकर लोकसभा अध्यक्ष के आसन के समीप लगाया जाना है। भारतीय इतिहास में सत्ता स्थानांतरण के समय यह राजदंड राजपुरोहित की ओर से नए राजा को सौंपा जाता था। राजदंड के ऊपर नंदी विराजमान होते थे जो कि शैव परंपरा के प्रतीक चिन्ह के तौर पर न्याय का प्रतीक हुआ करते थे। आइये जानते हैं नए संसद भवन की पूरी कहानी…


₹75 का जारी होगा सिक्का, एक तरफ रहेगा अशोक स्तंभ, तो दूसरी तरफ संसद की तस्वीर
28 मई को नई संसद के इनॉगरेशन पर 75 रुपए का स्मारक सिक्का जारी किया जाएगा। इसके एक तरफ अशोक स्तंभ छपा होगा जिसके अगल-बगल में भारत और इंडिया लिखा होगा। इसके नीचे रुपए के चिन्ह के साथ 75 लिखा होगा। सिक्के के दूसरी तरफ संसद की तस्वीर होगी और उसके नीचे 2023 लिखा होगा। इस सिक्के को कोलकाता की टकसाल में ढाला गया है। हालांकि, सरकार ने अब तक सिक्के की फोटो जारी नहीं की है। इस मौके पर एक स्टाम्प भी लॉन्च किया जाएगा।
उद्घाटन कार्यक्रम का पूरा शेड्यूल
समारोह कैसा होगा? इसकी अब तक अधिकृत जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन ANI के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, यह दो फेज में होगा। पहले फेज के कार्यक्रम गांधी प्रतिमा के पास एक पंडाल में होंगे। यहां सुबह 9:30 बजे तक पूजा और अन्य अनुष्ठान होंगे। दूसरा फेस दोपहर में लोकसभा कक्ष में राष्ट्रगान के साथ शुरू होगा।
फर्स्ट फेज: सुबह 7:30 से 8:30 बजे हवन और पूजा होना है। 8:30 से 9 बजे तक लोकसभा के अंदर सेंगोल को स्थापित किया जाना है। सुबह 9-9:30 बजे: प्रार्थना सभा आयोजित होगी।
दूसरा फेज: यह 12 बजे से शुरू होगा। राष्ट्रगान के साथ इसकी शुरुआत होगी। इस मौके पर दो लघु फिल्मों की स्क्रीनिंग होगी। फिर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का संदेश पढ़ा जाएगा। राज्यसभा में विपक्ष के नेता का संबोधन होगा। लोकसभा स्पीकर स्पीच देंगे। 75 रुपए का सिक्का और स्टाम्प रिलीज किया जाएगा। आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन होगा। करीब 2-2:30 बजे कार्यक्रम का समापन होगा।
862 करोड़ रुपए में बनी है संसद की नई बिल्डिंग
नए संसद भवन का निर्माण 862 करोड़ रुपए में हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिसंबर 2020 को इसकी आधारशिला रखी थी। नए संसद भवन का निर्माण 15 जनवरी 2021 को शुरू हुआ था। इस बिल्डिंग को पिछले साल नवंबर में पूरा हो जाना था। इसे रिकॉर्ड 28 महीने में बनाया गया है।
20 पार्टियां विरोध कर रहीं
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, DMK, आम आदमी पार्टी, शिवसेना (उद्धव गुट), समाजवादी पार्टी, राजद, CPI, JMM, केरल कांग्रेस (मणि), VCK, रालोद, राकांपा, JDU, CPI (M), IUML, नेशनल कॉन्फ्रेंस, RSP, AIMIM और MDMK।
भाजपा समेत 25 पार्टियां होंगी शामिल
भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट), शिरोमणी अकाली दल, जनता दल (सेक्युलर), बसपा, NPP, NPF, NDPP, SKM, JJP, RLJP, RP (अठावले), अपना दल (एस), तमिल मनीला कांग्रेस, AIADMK, BJD, तेलगू देशम पार्टी, YSR कांग्रेस, IMKMK और AJSU, MNF।
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश बोले…

एक बात और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भाजपा और आरएसएस पर सेंगोल को लेकर किए गए दावों को गलत बताया, और कहा कि भाजपा आरएसएस के लोग तथ्यों को तोड़ मरोड़ रहे हैं। जयराम रमेश यहीं नहीं रूके उन्होंने इसको भाजपा आरएसएस के वाट्अप यूनिवर्सिटी का ज्ञान तक बता दिया।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दिया यह जवाब…

जयराम रमेश के दावे पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जवाब देते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी के रग-रग में सनातन विरोध रचा बसा हुआ है। इससे आगे ये सोच भी नहीं सकते हैं। इन्होंने भारत की संस्कृतियों, परंपराओं और ऐतिहासिक साक्ष्यों को न केवल देशवासियों से छिपाया बल्कि नष्ट करने का काम किया है। आज भारत की जनता जागृत हो रही है, तथ्यों, साक्ष्यों और सांस्कृतिक सनातनी धरोहरों को पढ़ रही, समझ रही है। हमको अधिक बताने की जरूरत नहीं है।
भारत की ऐतिहासिक सांकृतिक धरोहरों, विरासतों और ऐतिहासिक साक्ष्यों की गहनता से छानबीन करने वालों की मानें तो राजदंड का प्रयोग सत्ता हस्तांतरण के लिए किया जाता रहा है। इस पर अनायास टिप्पणी करना उचित नहीं है।
उत्तर दक्षिण के बीच सेतु बनेगा सेंगोल
दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार शिवम दीक्षित ने बताया कि उत्तर और दक्षिण के बीच टूट चुके सम्बंधों को काशी-तमिल संगमम के जरिए पीएम मोदी ने न सिर्फ पुनर्जीवित किया बल्कि विश्वेश्वर और रामेश्वरम के आध्यात्मिक सम्बन्ध को सामाजिक-राजनैतिक दर्शन के दृष्टिकोण से भी उत्तर-दक्षिण के बीच एक सेतु बनाने का प्रयास किया। इन प्रयासों की सराहना होनी चाहिए, लेकिन अफसोस जो लोग जोड़ने के लिए बड़ी-बड़ी यात्राएं निकाले वहीं आज इसकी आलोचना कर रहे हैं।
सेंगोल से पीएम मोदी देना चाहते हैं यह संदेश
सेंगोल के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण भारत को एक और संदेश देने का प्रयास करेंगे। सेंगोल यानि राजदंड के ऊपर बना नंदी भगवान शिव का वाहन है जो शक्तियुक्त सम्पन्नता-धर्मसत्ता और न्याय का प्रतीक है। सेंगोल शैव परम्परा का हिस्सा है और इसका अनुसरण करने वाले मोदी के इस निर्णय को विशेषज्ञ काशी-रामनाथपुरम के राजनैतिक समीकरणों में खोज रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार शिवम दीक्षित के मुताबिक काशी-तमिल संगमम, तेलगु समाज के लिए हाल में किए गए कार्यक्रम को याद करते हुए बताते हैं कि शंकराचार्य और संतों की उपस्थिति में प्रधानमंत्री मोदी सेंगोल यानि राजदंड को नए संसद भवन में स्थापित करेंगे। एक ऐसा माहौल बनेगा जिससे ये एहसास होगा कि ये सिर्फ नए संसद भवन का ही उद्घाटन नहीं है बल्कि ये सत्ता का हस्तांतरण भी है और इसी एहसास को लेकर विपक्ष का ऐतराज है। मोदी को इस सेंगोल पर ये कहकर घेरा जा रहा है कि जो सेंगोल राजतन्त्र का प्रतीक रहा है उसको लोकतंत्र में जगह देने की कोशिश क्यों हो रही है।
आपत्ति की एक वजह यह भी तो है…
पहले सावरकर की जयंती (28 मई) के दिन नई संसद भवन का उद्घाटन और अब सेंगोल जो काफी हद तक मराठों में सत्ता हस्तांतरण के शैव परम्परा के ही करीब है। इससे वामपंथी विचारधारा के लोग आरएसएस के हिन्दूराष्ट्र की संकल्पना के तौर पर भी देख रहे हैं। पीएम मोदी ने कभी भी हिन्दूराष्ट्र की संकल्पना पर खुलकर कभी कुछ नहीं कहा है, लेकिन सेंगोल के जरिये ये संदेश तो दे ही दिया है कि देश सनातन परंपरा से भले न चले लेकिन सनातन संस्कृति देश के शासन का हिस्सा रहेगी।
कांग्रेस का विरोध हमारे लिए नया नहीं: स्मृति ईरानी
#WATCH | 'Sengol' which is a symbol of our freedom was kept in a dark corner of a museum as a 'stick of Nehruji' by the Gandhi family: Smriti Irani, BJP pic.twitter.com/YHeIjTHgWg
— ANI (@ANI) May 26, 2023
आपने मुझसे सेंगोल को लेकर प्रश्न पूछा, यह भारत के स्वर्णिम इतिहास का एक विशिष्ट अंग है, उसे गांधी खानदान ने एक म्यूजियम के अंधेरे कोने में नेहरू की छड़ी के रूप में सालों तक रखा था। मैं आज भारत के हर नागरिक से पूछती हूं कि धर्म, आस्था, लोकतंत्र के एक विशिष्ट प्रमाण को वॉकिंग स्टिक बताना, क्या यह नहीं बताता कि गांधी खानदान की हमारे देश और उसके इतिहास को लेकर क्या सोच है?
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