महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने वाला बहुप्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक जिसे वर्तमान सरकार ने ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ का नाम दिया है। सदन में महिला आरक्षण विधेयक पारित होते ही सत्ता और विपक्ष दोनों में इसका श्रेय लेने की होड़ मच गयी। कांग्रेस ने इसे अपना बहुप्रतीक्षित विधेयक बताया जबकि संसद के नए भवन में इस पहले विधेयक को पारित कराकर भारतीय जनता पार्टी इसे चुनाव पूर्व का अपना मास्टर स्ट्रोक बता रही है। इस विधेयक के पारित होने के बावजूद महिलाओं को आरक्षण का लाभ कब से मिलना शुरू होगा इसका किसी को ज्ञान नहीं। केवल कयास लगाए जा रहे हैं। किस वर्ग की महिलाओं को मिलेगा यह भी पता नहीं है। और कैसे मिलेगा यह भी स्पष्ट नहीं।इसी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव व 2024 में प्रस्तावित लोकसभा के आम चुनाव में महिला आरक्षण लागू होना असंभव है।
क्योंकि महिला आरक्षण के ड्राफ़्ट के अनुसार इस कानून के बनने के बाद होने वाली पहली जनगणना और फिर सीटों के परिसीमन के बाद ही महिलाओं हेतु आरक्षित सीटों का निर्धारण किया जायेगा। जबकि 2010 में यूपीए के शासनकाल में राज्यसभा में महिला आरक्षण संबन्धी जो पिछला विधेयक पारित हुआ था उसमें परिसीमन की शर्त नहीं थी।
और भाजपा ने भी उस समय परिसीमन जैसी किसी शर्त के बिना ही उस विधेयक का समर्थन किया था। सवाल यह है कि आज जब भाजपा सरकार महिला आरक्षण को लागू करने के लिए अधिनियम बना रही है तो उसे सबसे पहले परिसीमन से जोड़ने की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है ? क्या इसी लिये नए ह्यनारी शक्ति वंदन अधिनियमह्ण में महिला सीटों के आरक्षण के लिए अनुच्छेद 334 ए जोड़ा गया है। जिसमें कहा गया है महिला आरक्षण के लिए परिसीमन अनिवार्य होगा?
माना जा रहा है कि परिसीमन का मकसद लोकसभा सीटें बढ़ाना भी हो सकता है। गौरतलब है कि 2021 में होने वाली जनगणना भी अभी तक नहीं हुई है। यदि सब कुछ निर्बाध रूप से और बिना किसी टाल मटोल के हुआ तो शायद महिला आरक्षण 2026 से लागू हो सके अन्यथा अनिश्चितता की सूरत बनी रहेगी। हालांकि सरकार ने यह जरूर बता दिया है कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू होने से लोकसभा में महिलाओं की संख्या 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी। यह भी बताया गया है कि 15 वर्ष के लिए आरक्षण का प्रावधान है हालांकि संसद को इसे बढ़ाने का अधिकार होगा।
बहरहाल, महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद अनेक विश्लेषकों व राजनीतिज्ञों की तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कांग्रेस चाहती है कि इसे तत्काल लागू किया जाए। इसे लागू करने के लिए जनगणना या परिसीमन की कोई जरुरत नहीं है। जबकि कुछ का मत यह भी है कि जब महिलाओं को आधी आबादी कहकर संबोधित किया जाता है तो उनके लिये आरक्षण भी 33 प्रतिशत क्यों, 50 प्रतिशत क्यों नहीं? और यदि वास्तव में सरकार की नीयत महिला आरक्षण अधिनियम को लेकर साफ है तो परिसीमन व जनगणना जैसे बहानों की जरुरत क्या?
जिस तरह भाजपा द्वारा दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में महिलाओं को इकठ्ठा कर बाकायदा जश्न मनाकर प्रधानमंत्री का महिला आरक्षण अधिनियम के लिए पार्टी की महिलाओं द्वारा धन्यवाद किया गया और उन्हें महिलाओं का इस सदी का सबसे बड़ा नायक व इतिहास पुरुष बताने की कोशिश की गई, उससे कम से कम एक बात तो स्पष्ट है कि बावजूद इसके कि आगामी विधानसभा व लोकसभा किन्हीं भी चुनावों में महिला उम्मीदवारों के लिए इस आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलेगा परंतु इसके बावजूद यह भी तय है कि महिला आरक्षण का यह मुद्दा निकट भविष्य के सभी चुनावों में मुख्य मुद्दा बनने वाला है।
इसे इसलिये जरूर सरकार का मास्टर स्ट्रोक कहा जा सकता है कि सरकार ने आधी आबादी के प्रति अपनी हमदर्दी का सन्देश भी दे दिया और पुरुषों का वर्चस्व भी फिलहाल यथावत बना रहने दिया। क्या केवल चुनावी लाभ हासिल करने की गरज से ही सारी कवायद की गई?
अगर सरकार आधी आबादी की हित चिंतक है महिला राष्ट्रपति को इस संसद भवन के
उद्घाटन हेतु क्यों आमंत्रित नहीं किया गया था? महिला होने के साथ राष्ट्रपति होने नाते भी वे इसकी अधिकारी थीं। इसी नए संसद भवन के सामने महिला पहलवानों ने पंचायत आहूत की थी, जिसे सरकार ने बलपूर्वक होने नहीं दिया। यहां तक कि महिला खिलाड़ियों का तंबू भी धरना स्थल से उखाड़ फेंका।
महिला आरक्षण पर हुई चर्चा के दौरान पंजाब की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने भी अपने भाषण में जहां देश में महिलाओं की वास्तविक स्थिति बयान करने की कोशिश की वहीं वे यह बताने से भी नहीं चूकीं कि महिला खिलाड़ियों के यौन शोषण का आरोपी भाजपा सांसद इस समय भी लोक सभा में मौजूद है। तृणमूल कांग्रेस सांसद काकोली घोष दस्तीदार ने भी याद दिलाया कि देश के लिए स्वर्ण पदक लेने वाली महिलाएं धरने पर थीं, जबकि उनका शारीरिक शोषण करने वाला आरोपी आज संसद में बैठा है?
इसी विधेयक पर चर्चा के दौरान कई सांसदों ने मणिपुर में महिलाओं को नग्न घुमाये जाने, महिलाओं के प्रति हो रहे राष्ट्रव्यापी अपराध,देश में बढ़ती जा रही दुष्कर्म की घटनाओं का भी जिक्र किया। सत्ता और विपक्ष खासकर भाजपा व कांग्रेस के बीच महिला आरक्षण का श्रेय लेने की बातें तब तक बेमानी हैं, जब तक यह लागू नहीं हो जाता। इस अधिनियम को ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ जैसा लोकलुभावन नाम दिया जाना भी तब तक मीठी बातें ही हैं। और तब तक महिला आरक्षण की बातें सिर्फ बातें हैं, बातों का क्या?