पुराने समय की बात है, एक राजा अपने नगर का हाल-चाल जानने के लिए नगर भ्रमण को निकला। घूमते हुए चर्मकारों के मोहल्ले में पहुंच गया। वहां चमड़े की तीव्र दुर्गंध से उसका सर फटने लगा। उसने सोचा ऐसी तेज दुर्गंध में ये लोग रहते कैसे होंगे। उसी समय राजा ने सेवक को बुला कर आदेश दे दिया कि अब रोजाना सफाई कामदारों से इस क्षेत्र को साफ कर, पानी से सड़कें धुलवाओ और सुगंधित इत्र युक्त जल का छिड़काव करो, जिससे लोग यहां आराम से रह सकें।
दूसरे ही दिन प्रात: काल से यह कार्य प्रारम्भ हो गया। चार छ: दिन बाद ही सभी चर्मकार इक्कठा हुए और राजदरबार जाने का निश्चित किया। दरबार में पहुंच कर राजा से निवेदन किया कि महाराज हमारा मुहल्ले में रहना दुभर हो गया है, पूरा मुहल्ला दुर्गंध मारता है। इस दुर्गंध के मारे हमारे सर फटते है, काम करना मुस्किल हो गया है। महाराज को कामचोरी का अंदेशा हुआ, उन्होंने तत्काल उस सेवक को बुलाया और पूछा कि आज्ञा का पालन क्यों नहीं हुआ? सेवक कांपते हुए बोला-महाराज नित्य प्रतिदिन सफाई बराबर हो रही है और आपके आदेश का पूरा पालन किया जा रहा है। चर्मकारों ने कहा- महाराज विश्वास न हो तो आप स्वयं चल कर देख लिजिये, आप तो एक घड़ी भी सह नहीं पाएंगे। राजा ने तत्काल चलने की व्यवस्था करवाई और चर्मकारों के साथ ही उनके मोहल्ले में पहुंचे। वहां जाते ही राजा को कोई दुर्गंध महसुस न हुई, राजा ने पूछा-कहां है दुर्गंध? चर्मकारों ने कहा-क्या आपको यहां दुर्गंध नहीं लग रही? यह दुर्गंध आपके आदमी ही यहां, रोज रोज फैला के जाते हैं। राजा के साथ चल रहे मंत्री को माजरा समझ आ गया, उसने राजा के कान में हकीकत बयां कर दी।