विश्व विजय के अभियान पर निकला सिकंदर तुर्किस्तान पहुंचा। मंत्री और सेनापति ने तुर्किस्तान के शासक को इसकी सूचना दी। शाह ने कहा, ‘कोई बात नहीं सिकंदर को आने दो।’ सिकंदर जब राज्य की सीमा में पहुंचा, तो तुर्किस्तान के राजा ने उसका गर्मजोशी से स्वागत किया और अपने महल में आमंत्रित किया। सिकंदर और शाह शाही महल में एक साथ भोजन पर बैठे। सिकंदर शाह के आतिथ्य से अभिभूत था। सामने रखे थाल में भोजन के स्थान पर बहुमूल्य हीरे-जवाहरात रखे हैं। उसकी कुछ समझ में नहीं आया, तो इसका आशय जानने के लिए उसने शाह की ओर देखा, जैसे पूछ रहा हो कि यह क्या मजाक है? शाह ने मुस्करा कर कहा, ‘सिकन्दर महान! मैंने आपकी रुचि को ध्यान में रखकर ही यह व्यवस्था की है। मुझे पता है विशाल हीरे-जवाहरात की संपदा हासिल करने के लिए ही आपने अपना अभियान शुरू किया है। जीते गए देशों की सारी संपदा अपने कब्जे में कर आप आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन आपकी धन की भूख अभी मिटी नहीं है। इसलिए खाद्य सामग्री के स्थान पर मैंने बहुमूल्य हीरे-जवाहरातों से भरा थाल आपको पेश किया है। सिकंदर को फौरन ही कुछ जवाब देते नहीं बना। ऐसा बर्ताव आज तक किसी ने उसके साथ नहीं किया था। उसको अत्याधिक विचार की मुद्रा में देखकर शाह ने एक बार फिर उसकी ओर देखा। सिकंदर ने बहुत ही गंभीरता से कहा, ‘आपने एक बड़ी नसीहत दी। पेट तो यकीनन खाने से ही भरता है। हीरे-जवाहरात से नहीं।’ तभी तत्काल उसके सामने तरह-तरह के पकवान सजा दिए गए, जो सिकंदर को किसी हीरे जवाहरात से ज्यादा अच्छे लगे।
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