जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: कर्पूरी ठाकुर को बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाला नेता माना जाता है। कर्पूरी ठाकुर साधारण नाई परिवार में जन्मे थे। कहा जाता है कि पूरी जिंदगी उन्होंने कांग्रेस विरोधी राजनीति की और अपना सियासी मुकाम हासिल किया। यहां तक कि आपातकाल के दौरान तमाम कोशिशों के बावजूद इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा सकी थीं।
1970 और 1977 में मुख्यमंत्री बने थे कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी। उनका पहला कार्यकाल महज 163 दिन का रहा था। 1977 की जनता लहर में जब जनता पार्टी को भारी जीत मिली तब भी कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। अपना यह कार्यकाल भी वह पूरा नहीं कर सके। इसके बाद भी महज दो साल से भी कम समय के कार्यकाल में उन्होंने समाज के दबे-पिछड़ों लोगों के हितों के लिए काम किया। बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की दी। वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम किए, जिससे बिहार की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन आ गया। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गए।
कर्पूरी ठाकुर के शागिर्द हैं लालू-नीतीश
बिहार में समाजवाद की राजनीति कर रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द हैं। जनता पार्टी के दौर में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखे। ऐसे में जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आए तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया। वहीं, नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के हक में कई काम किए।
बिहार की राजनीति में अहम हैं कर्पूरी ठाकुर
चुनावी विश्लेषकों की मानें तो कर्पूरी ठाकुर को बिहार की राजनीति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था, लेकिन इतने साल बाद भी वो बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। गौरतलब है कि बिहार में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की आबादी करीब 52 प्रतिशत है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी पकड़ बनाने के मकसद से कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते हैं। यही वजह है कि 2020 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ‘कर्पूरी ठाकुर सुविधा केंद्र’ खोलने का ऐलान किया था।
बहनोई नौकरी के लिए आए तो मिले 50 रुपये
कर्पूरी ठाकुर से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि वह जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए, उसके बाद अपनी जेब से 50 रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, ‘जाइए, उस्तरा आदि खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।’
देवीलाल ने कहा पांच-दस हजार रुपये मांगें तो दे देना
उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में कर्पूरी ठाकुर की सादगी का बेहतरीन वर्णन किया है। बहुगुणा लिखते हैं, ‘कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए हरियाणा के मुख्यमंत्री देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरी जी कभी आपसे पांच-दस हजार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।’
विधायक ने जमीन लेने को कहा तो कर्पूरी ठाकुर ने यूं मना किया
70 के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी। खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने उनसे कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए। उन्होंने साफ मना कर दिया। तब के एक विधायक ने उनसे यह भी कहा था कि जमीन ले लीजिए, नहीं तो आप नहीं रहिएगा तो आपका बाल-बच्चा कहां रहेगा? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गांव में रहेगा।
बेटे को पत्र लिखने की आदत
कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। बेटे रामनाथ बताते हैं, ‘पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।’
जब मुख्यमंत्री के पिता को पीटने आ गए लोग
कर्पूरी के मुख्यमंत्री रहते हुए ही उनके क्षेत्र के कुछ जमींदारों ने उनके पिता को सेवा के लिए बुलाया। जब वे बीमार होने के चलते नहीं पहुंचे तो जमींदार ने अपने लोगों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। इसकी सूचना जिला प्रशासन को हो गयी और तुरन्त जिला प्रशासन कर्पूरी के घर पहुंच गया और उधर मारने वाले भी थे। लठैतों को बंदी बना लिया गया, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने सभी लठैतों को जिला प्रशासन से बिना शर्त छोड़ने का आग्रह किया।
इस पर अधिकारियों ने कहा कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री के पिता को प्रताड़ित करने का कार्य किया इन्हें हम किसी शर्त पर नही छोड़ सकते। कर्पूरी ठाकुर ने कहा, ‘पता नहीं कितने असहाय लाचार और शोषित लोग प्रतिदिन लाठियां खाकर दम तोड़ते हैं, काम करते हैं। कहां तक और किस-किसको बचाओगे। क्या सभी मुख्यमंत्री के मां-बाप हैं। इनको इसलिए दंडित किया जा रहा है कि इन्होंने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है, सामान्य जनता को कौन बचाएगा। जाओ प्रदेश के कोने-कोने मे शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ और एक भी परिवार सामंतों के जुल्मों सितम का शिकार न होने पाये।’ लठैतों को कर्पूरी ने छुड़वा दिया।
विधायक से थोड़ी देर के लिए की जीप मांगी
80 के दशक की बात है। बिहार विधानसभा की बैठक चल रही थी। कर्पूरी ठाकुर विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। उन्होंने एक नोट भिजवाकर अपने ही दल के एक विधायक से थोड़ी देर के लिए उनकी जीप मांगी। उन्हें लंच के लिए आवास जाना था। विधायक ने उसी नोट पर लिख दिया, ‘मेरी जीप में तेल नहीं है। कर्पूरी दो बार मुख्यमंत्री रहे। कार क्यों नहीं खरीदते?’
कर्पूरी के घर की हालत देख रो पड़े थे बहुगुणा
एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे, क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती थी। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद अविभाजित उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए थे। बहुगुणा कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे। कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया। न ही कोई जमीन खरीद सके।
यूगोस्लाविया में कोट भेंट की गई
कर्पूरी 1952 में विधायक बन गए थे। एक प्रतिनिधिमंडल में जाने के लिए ऑस्ट्रिया जाना था। उनके पास कोट ही नहीं था। एक दोस्त से मांगना पड़ा। वहां से यूगोस्लाविया भी गए तो मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा हुआ है और उन्हें एक कोट भेंट किया।