वाशिंगटन में एक बड़ी इमारत थी, जिसकी तीसवीं मंजिल पर हार्नवे नामक एक कंपनी का आफिस था। उसमें अनेक कर्मचारी काम करते थे। एक दिन इमारत की लिफ्ट खराब हो गई। उसे ठीक करने में काफी समय लगना था। हालांकि तीसवीं मंजिल पर सीढ़ियों से चढ़ना आसान नहीं था। बावजूद इसके हार्नवे के कर्मचारियों ने सीढ़ियों से दफ्तर पहुंचने का फैसला किया। कर्मचारियों को यह सोच-सोच कर ही पसीना चढ़ा आ रहा था कि इतनी सीढ़ियां आखिर वे कैसे चढ़ेंगे? तभी एक कर्मचारी बोला, अगर हम सोचते-सोचते सीढ़ियां चढ़ेंगे तो थक जाएंगे। क्यों न हम मनोरंजक चुटकुले सुनाते और आपस में बातें करते हुए आगे बढ़ें। इस पर सब सहमत हो गए। सभी एक से बढ़कर एक चुटकुले सुनाते हुए सीढ़ियां चढ़ने लगे। इन कर्मचारियों के बीच में कंपनी का चपरासी भी था। वह भी कुछ बोलना चाहता था, लेकिन जैसे ही वह बोलने के लिए अपना मुंह खोलता, सब उसे चुप करा देते और कहते, तुम बाद में बोलना।’ सत्ताइसवीं मंजिल की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते सभी कर्मचारियों के चुटकुलों का स्टॉक खत्म हो चुके थे। ऐसे में, उनमें से एक सीनियर कर्मचारी ने चपरासी से कहा, चल भाई, अब तू भी सुना ही दे। बड़ी देर से तू कुछ सुनाना चाह रहा था। चपरासी बड़ी सहजता से बोला, साहब, मैं तो बस ये कहना चाहता था कि आप दफ्तर की चाबी लाना भूल गए हैं। यह सुनकर सभी कर्मचारियों ने अपना सिर पकड़ लिया। यह देखकर एक कर्मचारी ने कहा, कभी किसी को कमतर नहीं आंकना चाहिए। हम सभी इसकी उपेक्षा कर रहे थे, पर यह तो एक जरूरी बात बताना चाह रहा था। इसके बाद सभी ने तय किया कि वे कभी किसी को छोटा नहीं समझेंगे।