- महिलाओं को मिले गर्भपात के अधिकार का सकारात्मक रुख
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने देश की सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दे दिया, चाहें वो विवाहित हों या अविवाहित। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन आॅफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत 24 सप्ताह के अंदर गर्भपात का अधिकार सभी को है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर क्रांतिधरा के बौद्धिक वर्ग ने इसे सकारात्मक कदम बताते हुए महिलाओं को एक विशेष अधिकार देना बताया है। महिलाओं का कहना है कि इससे उन महिलाओं को ताकत मिलेगी जिनको अनवांटेड प्रेगनेंसी का दंश झेलना पड़ता था।
दैनिक जनवाणी ने सामाजिक सरोकार का पालन करते हुए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर लोगों की राय जानी कि गर्भपात के संवैधानिक अधिकार को वो लोग किस तरह से लेती है। सकारात्मक पहलू यह रहा कि महिलाओं ने दिल खोलकर इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे महिलाओं के हित का बताया।
वेस्ट यूपी के प्रतिष्ठित कालेज रघुनाथ गर्ल्स डिग्री कालेज की समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. अनु रस्तोगी का कहना था कि गर्भपात का अधिकार पहले विवाहित महिलाओं को था, लेकिन उसमें भी पारिवारिक और सामाजिक अड़चनों के अलावा कानूनी परेशानियां भी थी लेकिन जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित और अविवाहित के अंतर को समाप्त कर 20 से 24 सप्ताह में गर्भपात कराने का अधिकार दिया है वो सराहनीय है।
एसोसिएट प्रो. डा. रजनी श्रीवास्तव का कहना है कि गर्भपात का अधिकार तो पहले से ही था, लेकिन इसमें सुधार किया गया है। खासकर अविवाहित महिलाओं के लिये सकारात्मक कार्य करेगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही कदम बताया है।
टयूटर शीबा ने भी खुलकर कहा कि अनचाहे गर्भ को समाप्त करने का अधिकार मिलने से अब महिला हो या युवती उसे दंश नहीं झेलना पड़ेगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तहेदिल से स्वागत किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महिला चिकित्सकों ने भी सही समय पर सही कदम बताया है।
स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. अंशु जिंदल का कहना है कि पहले गर्भपात का अधिकार 22 सप्ताह का था अब इसे 24 सप्ताह का करने से महिलाओं को ताकत मिलेगी। महिलायें जान को खतरे में डालकर गर्भपात कराती थी। अविवाहित महिलाएं अब जान को खतरे में नहीं डालेगी। पहले उसे पारिवारिक दबाव में आकर गर्भपात कराना पड़ता था।
स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. सरिता त्यागी का कहना है कि बलात्कार, वैवाहिक बलात्कार या अन्य किसी कारणों से अगर कोई गर्भवती हो जाता था तो उस गर्भपात कराने के लिये दंश झेलना पड़ता था और कई बार असुरक्षित हाथों से जान जोखिम में डालकर एबार्शन कराना पड़ता था। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से महिलाओं को सहारा मिल जाएगा। इसके अलावा गर्भ में पल रहे विकलांग भ्रूण को समाप्त करने के लिये परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा।