Friday, April 19, 2024
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हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है चंडी देवी मंदिर

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  • मंदिर के दर्शन करने से होती हैं सभी मनोकामनाएं पूरी

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: प्राचीन मां चंडी देवी मंदिर के बारे में बात कर तो इसका निर्माण दशानन रावण की पत्नी मंदोदरी ने करवाया था। दिल्ली से 65 किलोमीटर दूर मेरठ भैंसाली रोडवेज बस स्टैंड से चार किलोमीटर दूर करीब तीन हजार साल पुराना चंडी देवी मंदिर का निर्माण मेरठ कोतवाली क्षेत्र खंदक में रहने वाली मंदोदरी ने बनवाया था।

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बताते हैं कि घर से लेकर मंदिर तक करीब चार किलोमीटर सुरंग भी बनवाई गई थी, इसी गुफा से वह मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए आती थी। खुदाई के दौरान सुरंग मिलने के प्रमाण भी मिले। चंडी देवी मंदिर की स्थापना चैत्र नव संवत्सर में हुई थी, इस अवसर पर तब यहां तीन दिन का चंडी देवी मेला लगता था, जो पैठ की शक्ल में होता था। धीरे-धीरे मेले की अवधि बढ़ती गई। अब यह मेला उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला नौचंदी मेला के नाम से प्रसिद्ध है।

मंदिर का है ये इतिहास

प्राचीन नव चंडी मंदिर के मुख्य पुजारी संजय शर्मा ने बताया कि मुगलकाल में करीब एक हजार साल पहले कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बाले मियां ने मंदिर के आसपास कब्जे को लेकर लड़ाई लड़ी थी। जहां आज बाले मियां की मजार बताई जाती है, वहां पहले चंडी देवी मंदिर था। उस समय पं. हजारी लाल की बेटी मधु चंडी बाला मंदिर के गेट पर खड़ी हो गई थी और बाले मियां का काफी विरोध किया था, तब मधु चंडी बाला ने उसकी अंगुली काट दी थी।

इस लड़ाई में वह शहीद हो गई थी। बाले मियां ने तब इस मंदिर को तहस-नहस कर दिया था। जहां बाले मियां की अंगुली जहां कटकर गिरी वहां मुस्लिमों ने उसके मरने के बाद मजार बना दी। हालांकि इतिहासकार बताते हैं कि बाले मियां की असली मजार बहराइच में है और वहां उर्स भी लगता है।

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मंदिर तहस-नहस हो जाने के बाद वहां से 100 मीटर की दूरी पर जहां मंदोदरी ने पूजा के लिए गुफा बनवायी थी, ब्रिटिश काल में यहीं पर पंडित चंडी प्रसाद ने मां चंडी देवी की मूर्ति स्थापना करके पूजा शुरू की थी। उसके बाद नव चंडी देवी मंदिर का निर्माण हुआ और तब से यहीं पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए लोग आते हैं।

जब से चंडी देवी मंदिर की स्थापना हुई तब से यहां मेला लगता आ रहा है। होली के एक सप्ताह के बाद यह मेला लगता है, पहले यह तीन दिन के लिए लगता था। अब यह एक महीने के लिए लगता है। इस बार विक्रम संवत 2076वां मेला लगा था। इससे समझ सकते हैं यह मंदिर और मेला कितने प्राचीन हैं।

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