दलितों की महापंचायत होगी या फिर नहीं? इसको लेकर संशय पैदा हो गया हैं। ये महापंचायत 10 जनवरी को बुलाई गयी हैं, लेकिन इससे पहले ही सर्किट हाउस के बंद कमरे में एक मीटिंग हुई, जिसमें समझौते के तैयार दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिये गए। बंद कमरे में क्या-क्या हुआ? ये कहना मुश्किल हैं, लेकिन बंद कमरे की बात बाहर नहीं आयी। सिर्फ इतना पता चला कि समझौता हो गया। अब समझौते के बाद महापंचायत का कोई औचित्य तो नहीं बनता, लेकिन भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर ऊर्फ रावण इस महापंचायत को करेंगे, ऐसा बताया जा रहा हैं। अब देखना ये है कि विपक्षी नेता इस महापंचायत में पहुंचेंगे या फिर नहीं। अभी किसी तरफ से ये भी संदेश नहीं मिला कि महापंचायत 10 जनवरी को आह्वान किया गया था, वो होगी भी या फिर नहीं।
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: कुछ दिनों से सुर्खियों में पार्षद कीर्ति घोपला के समझौता करते ही उनके घर पर पुलिस भी तैनात हो गई हैं। सुरक्षा के रूप में पुलिस कर्मी तैनात कर दिये गए हैं। कीर्ति घोपला समझौते के बाद किसी से भी नहीं मिल रहे हैं। घर में भी किसी की एंट्री नहीं होने दी जा रही हैं। एक तरह से सुरक्षा का काकस बन गया हैं। उसके घर कौन आ रहा हैं? कौन जा रहा है? इस पर पूरी निगाहें रखी जा रही हैं।
‘जनवाणी’ टीम उसके घर पहुंची तो पहले तो मिलने से ही इनकार कर दिया, लेकिन बाद में मुलाकात कर कहा कि ये समझौता शहर के विकास और शांति के लिए किया हैं। लगातार माहौल बिगड़ रहा था। कुछ लोग शहर में आग लगाने की बात कर रहे हैं। ये लड़ाई हिंसा में तब्दील करना चाहते थे कुछ लोग। इसी वजह से समझौता करना पड़ा। शहर को आग में झोंकने से बेहतर है कि विकास की पटरी पर लाया जाए।
नगर निगम की बोर्ड बैठक के दौरान सत्ता पक्ष के पार्षद, एमएलसी, राज्यमंत्री एवं विपक्ष के पार्षदों के बीच शुरू हुआ विवाद शनिवार रात सर्किट हाउस में घंटों तक चली गुप्त मीटिंग के बाद हुए समझौते के बाद शांत हो गया। मामले में समझौता तो हो गया, लेकिन रविवार सुबह बातचीत करने के दौरान वार्ड-31 के सपा पार्षद कुलदीप उर्फ कीर्ति घोपला का शासन-प्रशासन की कार्यशाली एवं अपनी ही पार्टी के नेताओं के बिगड़े बोल से खराब हुए माहौल को लेकर आखिर उनका दर्द सामने आ गया। उन्होंने एक फिल्म के अंदर जो गीत सुना था उसके अनुसार समझौता किये जाने की बात कही।
उन्होंने बताया कि समझौता गमों से कर लो…यदि वह समझौता नहीं करते तो शहर का माहौल बिगड़ने का डर भी उन्हे सताने लगा था। शनिवार की रात्रि में समझौते के बाद सपा पार्षद कुलदीप उर्फ कीर्ति घोपला के मन में तमाम तरह के सवाल जवाब मन के अंदर चलते रहे। रात्रि में समझौते की चर्चा फैली तो उसकी पुष्टि के लिए लोगों ने उनके मोबाइल पर संपर्क किया तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की, जिसके बाद घोपला के ग्रामीण व परिजन उनसे मिलने के लिए रविवार को सुबह सवेरे ही घर पर पहुंचे। कीर्ति के घर पर रविवार सुबह पुलिस गार्द लगी थी।
कीर्ति के बारे में परिजनों से जानकारी की तो परिजनों ने बताया कि रातभर टेंशन में होने के कारण कीर्ति को बुखार है। कुछ देर बाद वह लोगों के बीच आ पहुंचे। इस दौरान उनसे पूरे मामले में विपक्ष की एकजुटता एवं सत्ता पक्ष द्वारा लगातार दबाव बनाने की बात कहते हुए समझौता कैसे हुआ उसके बारे में लोगों ने पूछा? कीर्ति घोपला ने बताया कि कहावत है कि समझौता गमों से कर लो…उसने भी वही किया। उनके साथ हुई घटना के बाद विपक्ष एक जुट हुआ, जिसका असर सरकार पर भी हुआ।
कलक्ट्रेट में धरना-प्रदर्शन शांतिपूर्वक चल रहा था, लेकिन जिस तरह से मुकेश सिद्धार्थ ने विवादित बयान दिया। जो शहर के माहौल को खराब करने वाला था। यदि इस तरह के लोगों के द्वारा उनके इस मामले के चलते शहर का माहौल खराब किया जाता है तो उसके लिए उन्हें दोषी ठहराया जाता। इतना ही नहीं कई अन्य लोग भी कार्रवाई की जद में आ सकते थे। इन सब बातों को सोच समझते हुए इस मामले में समझौता ही एक मात्र विकल्प था।
आशीष के द्वारा पूर्व में ही समझौते के लिए सहमति जता दी गई थी। उनकी पार्टी के ही लोग आंदोलन को सफल कम तथा शहर का माहौल खराब हो उसके लिए भड़काऊ भाषण बाजी करने लगे। जिससे शहर का माहौल भी खराब हो सका था। कीर्ति ने कहा कि भाजपा के राष्टÑीय उपाध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत उनके बुजुर्ग है तथा बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए। समझौते में डा. लक्ष्मीकांत की मुख्य भूमिका रही।
बवाल बढ़ने पर डैमेज कंट्रोल में जुटे भाजपा नेता
नगर निगम पार्षदों व भाजपा के बड़े नेताओं के बीच मारपीट आखिर भाजपा के गले की फांस बन गई थी। भाजपा और दलितों के बीच तलवारे खींचने लगी थी। दलित वोट बैंक पर भाजपा की निगाहें हैं। ऐसे में इस विवाद से दलित वोटर नाराज हो रहे थे। ये प्रकरण भाजपा पर भारी पड़ता नजर आ रहा था। समझौते के अलावा दूसरा विकल्प भाजपा नेताओं को नहीं दिख रहा था। फिर विपक्षी नेता इसमें कूद गए थे।
क्योंकि भाजपा और दलितों के आमने-सामने आने से विपक्ष की बांछे खिल गई थी। इसी वजह से विपक्षी नेता लखनऊ को छोड़कर मेरठ में डेरा लगाने लगे थे। प्रदर्शन कलक्ट्रेट में था, जिसमें दलितों की अच्छी-खासी भीड़ भी जुटी। अब महापंचायत का 10 जनवरी को ऐलान किया हैं। बड़ा बखेड़ा खड़ा हो, इससे पहले भी भाजपा के बड़े नेता डैमेज कंट्रोल में जुट गए। इसमें पुलिस-प्रशासन ने भी पार्षदों को सर्किट हाउस तक पहुंचाने में भूमिका निभाई। फिर तो राजनीति के खिलाड़ी डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने पूरे मामले को चंद मिनटों में पटरी पर लाने का काम किया।
बंद कमरे में माफीनामा हुआ, फिर समझौते का ऐलान हो गया। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जो बखेड़ा हुआ, उसका चुनाव में प्रतिकुल प्रभाव पड़ सकता था। क्योंकि दलित समाज के लोग इस मुद्दे को लेकर एकजुट हो रहे थे। कलक्ट्रेट में हुए प्रदर्शन में जुटी भीड़ के बाद भाजपा नेताओं ने इस बात को समझने में देरी नहीं लगाई। नगर निगम की बोर्ड बैठक में शुरू हुआ हिंदू-मुस्लिम के बीच का विवाद-भाजपा व दलित के बीच बन जाने के बाद भाजपा हाईकमान टेंशन में आ गया था।
पार्षद एवं स्थानीय जन प्रतिनिधियों के बीच पनपा ये विवाद स्थानीय नेताओं के लिए भले ही टेंशन वाला न रहा हो, लेकिन लखनऊ एवं दिल्ली के नेताओं के लिए टेंशन देने वाला जरूर बन गया। सूत्रों की माने तो 22 जनवरी को अध्योध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन से पूर्व इस मामले को पूरी तरह से शांत कर लिया जाये, ताकि उद्घाटन के दौरान कोई बड़ा बवाल खड़ा न हो। ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी से दलित वोट न खिक जाए। उसके लिए लखनऊ व दिल्ली में डमेज कंट्रोल की पटकथा लिखी गई ओर उसकी कमान पार्टी के राष्टÑीय उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांत को सौंपी गई थी।
नगर निगम की 30 दिसंबर को बोर्ड बैठक से शुरू हुआ बवाल 6 जनवरी को कलक्ट्रेट में दलित समाज के जबरदस्त प्रदर्शन के दौरान पूर्व सपा नेता के बिगड़े बोल के बाद शासन की सख्ती के बाद मामले में भाजपा के डैमेज कंट्रोल के तहत समझौता हो गया। पुनरीक्षित बजट के दौरान भाजपा पार्षद एवं विपक्ष के पार्षदों के बीच हिंदू-मुस्लिम से शुरू हुआ विवाद भाजपा व दलित पार्षदों के बीच का बन गया। जैसे ही मामला भाजपा पार्षद व विपक्ष के दलित पार्षदों होने के मामले ने तूल पकडा तो भाजपा हाईकमान टेंशन में आ गई
ओर इस मामले में एआईएमआईएम के पार्षदों को भी निशाने पर लेते हुए डैमेज कंट्रोल में जुट गई। इतना ही नहीं भाजपा के द्वारा भी महिला मोर्चा के साथ भाजपा के अनुसूचित मोर्चा को भी मैदान में उतार दिया। जहां एक तरफ विपक्षी पार्षद कुलदीप उर्फ कीर्ति घोपला व आशीष चौधरी की संयुक्त तहरीर पर पुलिस ने कीर्ति की जगह आशीष को वादी बनाते हुए अज्ञात में एससी/एसटी की धाराओं में मुकदमा पंजीकृत किया। भाजपा हाईकमान ने आधी टेंशन तो दूर कर ली। हुआ भी भाजपा हाईकमान के प्लान के अनुसार जैसे ही रिपोर्ट दर्ज हुई
तो आशीष चौधरी ने पूरे घटनाक्रम से दूरी बना ली, जिसमें विपक्ष के पास आशीष की जगह केवल कीर्ति घोपला ही मुकदमें का वादी बचा। समझौता होने के बाद प्रदेश सरकार के ऊर्जा राज्यमंत्री डा. सोमेंद्र तोमर व एमएलसी धर्मेंद्र भारद्वाज की टेंशन कम करने के लिए उससे समझौता किया जाये। भाजपा को एक ओर टेंशन अंधर ही अंदर खाए जा रही थी कि वह 22 जनवरी से पहले इस मामले को पूरी तरह से शांत कर ले, ताकि अयोध्या में होने वाले भव्य राम मंदिर के उद्घाटन से पूर्व दलित-भाजपा के बीच की लड़ाई का मामला पूरे प्रदेश में न फैल जाये,
जिसका आगामी लोकसभा चुनाव में दलित समाज की वोट खोकर भाजपा को खमियाजा न उठाना पडेÞ। इस मामले में भाजपा के राष्टÑीय उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई के द्वारा मुख्य भूमिका निभाई गई ओर वह रंग लाई। दिन में कलक्ट्रेट पर जोरदार प्रदर्शन के दौरान सपा नेता के बिगड़े बोल के बाद मचे बवाल में देर रात में सर्किट हाउस में समझौते में तब्दील हो गई।