Sunday, December 22, 2024
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अंबाजी शक्तिपीठ : जहां नहीं है देवी की कोई मूर्ति

 

Sanskar 9


Ghanshayam Badalनवरात्र में हर कोई मां आदिशक्ति की साधना में लीन रहता है। इन नौ दिनों में देवी मां के नौ रूपों का स्मरण उनकी पूजा की जाती है। अब भक्तजन चाहे घर में पूजा करें या मंदिर में हर जगह देवी मां के किसी न किसी रूप की मूर्ति की पूजा अवश्य की जाती है। परंतु हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो देश के पश्चिमी हिस्से गुजरात में मौजूद है। गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बनासकांठा जिले की दांता तालुका में बना यह मंदिर है अम्बाजी का मंदिर ।

माना जाता है कि मां अम्बाजी मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है। इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम 1975 से शुरू हुआ था जो अब भी जारी है। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है। मंदिर के एक सौ तीन फुट ऊंचे शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं। मां अम्बा-भवानी के शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के प्रति मां के भक्तों में अपार श्रद्धा है। मंदिर के गर्भगृह में मां की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। शक्ति के उपासकों के लिए यह मंदिर बहुत महत्व रखता है। इस बेहद प्राचीन मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता के अनुसार यही वह जगह है जहां देवी मां सती का हृदय गिरा था। इसका उल्लेख ‘तंत्र चूड़ामणि’ में भी मिलता है।

वस्तुत: हिन्दू धर्म के प्रमुख बारह शक्तिपीठ हैं। इनमें से शक्तिपीठों में कांचीपुरम का कामाक्षी मंदिर, मलयगिरी का ब्रह्मारंब मंदिर, कन्याकुमारी का कुमारिका मंदिर, अमर्त-गुजरात स्थित अम्बाजी का मंदिर, कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, प्रयाग का देवी ललिता का मंदिर, विंध्या स्थित विंध्यवासिनी माता का मंदिर, वाराणसी की मां विशालाक्षी का मंदिर, गया स्थित मंगलावती और बंगाल की सुंदर भवानी और असम की कामख्या देवी का मंदिर शामिल हैं। मिथकों एवं पुराणों के अनुसार इन सभी शक्तिपीठों में मां के अंग गिरे हैं।

अंबाजी मंदिर में देवी मां का एक श्रीयंत्र स्थापित है। इस श्रीयंत्र को मंदिर के पुजारियों द्वारा कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अम्बे यहां साक्षात विराजी हैं। अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहां आ चुके हैं।मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है। इस पहाड़ पर भी देवी मां का प्राचीन मंदिर स्थापित है। माना जाता है यहां एक पत्थर पर मां के पदचिह्न बने हैं। पदचिह्नों के साथ-साथ मां के रथचिह्न भी हैं। अम्बाजी के दर्शन के उपरान्त श्रद्धालु गब्बरगढ जरूर जाते हैं।

हर साल भाद्रपद पूर्णिमा के मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु पास में ही स्थित गब्बरगढ़ नामक पर्वत श्रृंखला पर भी जरूर जाते हैं, जो इस मंदिर से दो मील दूर पश्चिम दिशा में स्थित है। प्रत्येक माह पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहां मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। एक और खास बात देश के कई दूसरे मंदिरों की तरह ही इस मंदिर में भी वीडियोग्राफी एवं फोटोग्राफी निषेध है आप इस मंदिर में मोबाइल या कैमरा अंदर नहीं ले जा सकते हैं एवं एक से ज्यादा है जगहों पर आप की चेकिंग की जाती है।

समूचे गुजरात से कृषक अपने परिवार के सदस्यों के साथ मां के दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं। व्यापक स्तर पर मनाए जाने वाले इस समारोह में ‘भवई’ और ‘गरबा’ जैसे नृत्यों का प्रबंध किया जाता है। साथ ही यहां पर ‘सप्तशती’ का पाठ भी आयोजन किया जाता है। क्ष इसके अलावा यहां अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जिसमें सनसेट प्वाइंट, गुफाएं, माताजी के झूले आदि भी देखने योग्य स्थल है।

पर हां एक बात और ध्यान रखें जब आप बाजार से होते में मंदिर जाते हैं तो रास्ते में ही आपको एस्कॉर्ट करने के लिए कुछ बाइक सवार मिल सकते हैं जो आपको बड़े प्रेम से मंदिर तक जाने का न केवल रास्ता बताते हैं अपितु वहां तक छोड़कर आने का भी प्रयास करते हैं मगर यह लोग पूर्णतया व्यवसायिक हैं और आपको एक निश्चित दुकान के सामने पार्किंग की सुविधा भी प्रदान कर सकते हैं मगर जब आप वहां से प्रसाद खरीदते हैं तो ठगे जाने का भी पूरा अंदेशा रहता है हम लोग ही जब एक ऐसी दुकान से प्रसाद लेकर मंदिर में चढ़ाने के बाद वापस आए तो छोटी सी डलिया में दिए गए प्रसाद के ?960 वसूल कर लिए गए इसीलिए ऐसे लोगों से सावधान रहने की भी आवश्यकता है मंदिर प्रांगण के बाहर ही आपको जूते आदि रखने की व्यवस्था भी मिल जाएगी जहां आप अपनी मनमर्जी से शुल्क दे सकते हैं लेकिन बहुत कम शुल्क देने पर जूते रखने के स्थान पर लगे हुए कर्मचारी अजीबोगरीब व्यवहार भी कर सकते हैं मगर आप इन की परवाह न करके अपनी क्षमता अनुसार ही शुल्क दीजिएगा।

कैसे पहुंचें

गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित है यह अनोखा अम्बाजी मंदिर यहां वर्षपर्यंत भक्तों का रेला लगा रहता है । अम्बाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। आप यहां राजस्थान या गुजरात जिस भी रास्ते से चाहें पहुंच सकते हैं। यहां से सबसे नजदीक स्टेशन माउंटआबू का पड़ता है।

हवाई मार्ग

आप अहमदाबाद से हवाई सफर भी कर सकते हैं। अम्बाजी मंदिर अहमदाबाद से 180 किलोमीटर और माउंटआबू से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। अंबाजी आने के लिए निकटतम हवाई अड्डा अहमदाबाद का सरदार वल्लभ भाई पटेल इंटरनैशनल एयरपोर्ट है। यह अंबाजी मंदिर से करीब 186 किलोमीटर दूर है।

रेल व सड़क मार्ग

आबू रोड रेलवे स्टेशन यहां से 20 किलोमीटर दूर है। यहां आने के लिए यह निकटतम रेलवे स्टेशन है। यह स्टेशन दिल्ली समेत अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। अहमदाबाद से सड़क मार्ग से अंबाजी आसानी से पहुंचा जा सकता है। अहमदाबाद यहां से 185 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा आबू रोड स्टेशन यहां से 20 किलोमीटर, माउंट आबू 45 किलोमीटर पालनपुर 45 किलोमीटर और दिल्ली 700 किलोमीटर दूर है। इन शहरों से भी यहां सड़क मार्ग से आया जा सकता है।

इस बार जैसे ही घूमने फिरने का माहौल वापस लौटे और आपकी इच्छा धार्मिक स्थानों पर जाने की हो तो इस भव्य आकर्षक एवं देश के प्राचीनतम मंदिरों में शुमार अंबाजी मंदिर के दर्शन करने के लिए अवश्य ही जाएं और खास बात यह है कि इस मंदिर से केवल 60-65 किलोमीटर की दूरी पर ही देश की विश्व धरोहरों में शामिल पाटन में रानी की वाव और उस से करीब 25 किलोमीटर आगे मोढेरा में विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर भी स्थित हैं अत: एक ही पैकेज में आप कई मंदिरों के दर्शन का लाभ ले सकते हैं।

डॉ घनश्याम बादल


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