काबुल एयरपोर्ट के बाहर हुए एक जबर्दस्त फियादीन बम विस्फोट में जिसमें 157 आम अफगान नागरिकों और 13 अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गई थी, इस भयावह विस्फोट में बच गए एक अमेरिकी ने तालिबान आंतकवादियों द्वारा मार दिए जाने के डर से अपना नाम न छापने की शर्त पर उस भीषण विस्फोट की भयावहता की अपनी आंखों देखी बयान में बताया कि ‘मैंने अपनी आंखों से वह कयामत का मंजर देखा, मैं एयरपोर्ट के गेट पर कतार में खड़ा था, शाम को यह धमाका हुआ, ऐसे लगा जैसे किसी ने मेरे पैरों के नीचे से जमीन खींच ली हो, लगा जैसे मेरे कान के परदे फट गए हों। मैंने ऊपर देखा लोगों के अंगों के चिथड़े प्लास्टिक की थैलियों की तरह हवा में उड़ रहे थे। महिलाओं, बच्चों, जवानों और बुजुर्गों के अंग-प्रत्यंग दुर्घटना स्थल पर चारों तरफ बिखरे पड़े थे। मददगार लोग कचरा ले जाने वाली ट्रॉली तक में भी घायलों को अस्पताल ले जा रहे थे।
मृतकों के साथ घायल लोग भी नाले में पड़े कराह रहे थे, मदद की गुहार लगा रहे थे, उनके जख्मों से बहते लहू से पूरे नाले का पानी लाल हो गया था।’
वर्तमान दौर के अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा विस्फोट करने वाले आतंकवादियों को चेतावनी भरे अंदाज में जोर-शोर से घोषणा की गई कि ‘हम तुम्हें ढूंढ निकालेंगे… और तुम्हें कीमत चुकानी ही पड़ेगी’, अगले दिन दुनियाभर के अखबारों में उनके मुखपृष्ठ पर बड़े-बड़े हेडिंग्स में छपा कि अमेरिका ने सिर्फ 48 घंटों में अपने दुश्मन को मार गिराया, एक जली हुई कार का फोटो भी छपा कि इसमें ही वह दुर्दांत आतंकी विस्फोटक के साथ कहीं धमाका करने जा रहा था, अमेरिकी ड्रोन ने केवल उसको ही सटीकता से मार गिराया।
किसी और को जरा भी नुकसान नहीं हुआ, यह अमेरिकी बयान अर्धसत्य है, क्योंकि इस हमले में भले ही एक दुर्दांत आतंकवादी अब्दुल रहमान अल-लोगरी मारा गया हो, लेकिन वह अकेले नहीं मरा, वास्तविकता यह है कि इस आतंकी के साथ एक ही परिवार के कम से कम 10 निरपराध लोग, जिनमें कई छोटे-छोटे बच्चे भी थे, वे सभी बेचारे भी मौत के सीधे मुंह में चले गए।
क्या अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन साहब ने उन निरपराध 10 बच्चों सहित अन्य वयस्कों की मौत पर अफगानिस्तान और दुनिया से इस बात के लिए खेद और अफसोस तक जाहिर करने की औपचारिकता तक निभाया! क्षमा मांगा! बिल्कुल नहीं।
अफगानिस्तान, इराक पर हमला कथित 9/11 के ट्विन टॉवरों के ध्वस्त करने के बदले में किया गया, लेकिन अमेरिकी ट्विन टॉवरों के 19 अपराधियों में एक भी अपराधी न इराक का था, न अफगानिस्तान का था, उन अपराधियों में 15 तो अमेरिका के परम मित्र सऊदी अरब के थे।
लेकिन ये अमरीकी कर्णधार सऊदी अरब की तरफ एक बार आंख उठाकर देखने की भी जहमत नहीं उठाए, लेकिन निरपराध व निर्दोष महान मेसोपोटामिया और बेबीलोन सभ्यता के प्रतीक इराकी राष्ट्र राज्य का सार्वभौमिक सत्यानाश करके रख दिए, क्या वैश्विक मीडिया अमेरिकी कर्णधारों से ये पूछ सकती है कि इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी पर लटकाकर और उन्हें मौत के मुंह में धकेलने के कुकृत्य को करके क्या आज इराक में लोकप्रिय लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण हो गया? वहां के लोग स्वर्गीय सद्दाम हुसैन के समय से अब ज्यादा खुशहाल जीवन जी रहे हैं?
इसी प्रकार अफगानिस्तान में पिछले 20 सालों में खुद अमेरिका के अनुसार उसने 2 ट्रिलियन डॉलर मतलब 1460 खरब रुपए खर्च किया।
इसके अलावा खुद अपने 2500 अमेरिकी सैनिकों सहित 2,40,000 अफगानी सैनिकों और वहां के आम लोगों की बलि लेकर अमरीका अपने वचन तथा क्रूर तालिबान को खदेड़ने, अफगानी महिलाओं की आजादी व इस देश को 21वीं सदी में लाने के वादे को एक प्रतिशत भी नहीं निभा पाया।
यही नहीं अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान के जो लोग अपनी जान पर खेलकर एक उद्धारक व अपना मसीहा समझकर दुभाषिया बनकर या अन्य हर तरह से मदद किए थे, उन सभी की लिस्ट अब हत्यारे तालिबानियों के हाथों सौंप देने का घिनौना व कृतघ्न कुकर्म अमेरिकी कर्ताधर्ताओं द्वारा किया गया है।
तालिबानी आतंकवादियों को अब देश के ऐसे गद्दारों को जो अमेरिकी साम्राज्यवादी सेना को गुपचुप तरीके से मदद किए हैं और वे तालिबानियों के पुन: सत्ता में आने के बाद उनके भय से अफगानिस्तान छोड़कर भाग जाना चाहते हैं, उन सभी की तालिबानियों को उस लिस्ट के माध्यम से बिल्कुल सही-सही जानकारी है, रक्षा विशेषज्ञों की यह भी राय है कि अभी हुए इस फियादीन बम विस्फोट में, जिसमें 170 लोग अपने जीवन से हाथ धो बैठे वह संभवतया उसी किल लिस्ट का नतीजा हो।
अफगानिस्तान की जनता तालिबानी आतंकवादियों से इतने भयाक्रांत और डरी हुई है कि 30 अगस्त 2021 को काबुल एयरपोर्ट बंद होने पर निराश होकर लाखों लोग पहाड़ी, रेतीले व उबड़ खाबड़ रास्तों से भी 1500 किलोमीटर दूर ईरान, तुर्की या पाकिस्तान को भागने जैसे कठोरतम् निर्णय ले रहे हैं।
अमेरिका जैसे देश का यह विगत इतिहास रहा है कि वह सिर्फ अपने स्वार्थ की खातिर दुनिया के तमाम देशों तथा उत्तर कोरिया, वियतनाम, इराक, क्यूबा, सीरिया, लीबिया, ईरान, अफगानिस्तान आदि पर पहले आर्थिक प्रतिबंध लगा कर वहां दवाइयों, पेट्रोल, खाद्यान्नों आदि की बेहद कमी करके वहां की जनता का जीवन बेहद नारकीय बनाकर रख देता है, फिर भी वहां के लोग और वे देश अपने स्वाभिमान पर अडिग रहते तो उस स्थिति में पहले से ही जर्जर आर्थिक स्थिति वाले इन देशों पर जबरन सीधा युद्ध थोप देता है।
और उस देश की लाखों-लाख जनता को युद्ध की बलि चढ़ा देना इस युद्धपिपासु अमेरिका का शौक रहा है।
दुनिया का बड़ा से बड़ा और खूंखार आतंकवादी संगठन हजार-पांच सौ लोगों की हत्या करता है, लेकिन अमेरिका जैसे रक्तपिपासु देश दुनिया के तमाम गरीब व कमजोर राष्ट्रों की ही हत्या कर देता रहा है।
अमेरिका ने कुछ देशों पर युद्ध थोपकर वहां के सैनिकों और आमजन का कितने लोगों को मौत के घाट उतारा है, उसका एक नमूना देखिए कोरियाई प्रायद्वीप में हुए युद्ध में दक्षिण कोरिया के अनुसार उसके 4,00,000 (चार लाख) लोग मरे, उत्तर कोरिया के मृतकों की संख्या अनुपलब्ध है, वियतनाम युद्ध में 30,00,000 (तीस लाख) वियतनामी सैनिक और जनता मरी, जापान के हिरोशिमा और नागसाकी पर परमाणु बम गिराकर 2,46,000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और अब अमरीकी कर्णधार अफगानिस्तान में पिछले 20 सालों में 2,40,000 सैनिक सहित आम जनता का कत्ल कर दिए।
सबसे बड़ी विडम्बना और पूरे विश्व के लिए त्रासद स्थिति यह है कि अमेरिका जैसे देश द्वारा इतना बड़ा मानवीय हत्याकांड होने के बावजूद अमेरिकी कर्णधारों को अपने किए पर किसी तरह की आत्मग्लानि व अपराध बोध नहीं है।