एक अति प्राचीन कथा है जिसके कथ्य प्रेरणा से ओत-प्रोत है। कहा जाता है कि किसी प्रदेश का एक सम्राट अपने राज्य की प्रजा की बदहाली और अपने पड़ोसी दुश्मन राजाओं के वैमनस्य व्यवहार से काफी चिंतित रहने लगा था। अपने आपको घोर मुसीबतों और विकट परिस्थितियों से घिरा पाकर दुखी सम्राट ने एक दिन अपने दरबार के सभी मंत्रियों की एक आकस्मिक सभा बुलाई।
‘आप सभी जानते हैं कि मेरे अथक प्रयास के बावजूद राज्य की दशा और प्रजा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है क हमारे पड़ोसी राज्य भी अपनी कुटिल नजरें हम पर गड़ाये बैठे हैं । अपने साम्राज्य की दुर्दशा और प्रजा की परेशानी मुझे अन्दर से खाए जा रही है क मैं चिंताओं के जिस भवसागर में फंस गया हूँ वहां से मुझे बाहर आने का कोई भी रास्ता दूर-दूर तक नजर नहीं आता है। मैंने आप सभी विद्वान और अनुभवी मंत्रियों की यह सभा बड़ी सोच-समझ कर बुलाई है। मैं चाहता हूं कि आप सभी एक ऐसे आदर्श वाक्य खोज कर निकालें, जिस को पढ़ने के बाद किसी इंसान की समस्त चिंताएं तत्क्षण दूर हो जाएं और उसमें जीवन जीने के लिए नई ऊर्जा का संचार हो जाए। यह आदर्श वाक्य बहुत ही छोटा होना चाहिए, जिसे कि किसी अंगूठी पर भी आसानी से उकेरा जा सके और उसे आसानी से पढ़ा भी जा सके ।’
सम्राट के आदेश पर सभी मंत्री उस आदर्श वाक्य की खोज में लग गए। कड़ी मिहनत के बाद मंत्री समूह ने जिस आदर्श सूक्ति वाक्य की खोज की वह केवल पांच शब्दों से निर्मित था, और वह था – ‘और यह भी गुजर जाएगा…।’
सच पूछिए तो ‘और यह भी गुजर जाएगा…’ का आदर्श कथन महज किसी लेखक की कल्पना, किसी अलौकिक, तत्वदर्शी और धर्म-मर्मज्ञ की फिलॉसफी नहीं है। इस सूक्ति वाक्य के पांच शब्दों में सामान्य रूप से जीवन जीने के क्रम में मानव जीवन में आनेवाली समस्त मुसीबतों और परेशानियों का एक ऐसा समाधान निहित है जो ‘क्विक-फिक्स सल्यूशन’ सरीखा काम करता है। इस सूक्ति वाक्य में मानव जीवन की विविध प्रकार की समस्याओं, तनावों और झंझावातों को शमित करने की जादुई शक्ति निहित है।
जीवन के साथ समस्याओं का संबंध एक सर्वविदित, सार्वभौमिक और चिरंतन सत्य है जो हर काल, युग और समय के साथ शाश्वत रूप से चलता आ रहा है। कदाचित इस सच से हम बिलकुल इनकार नहीं कर सकते हैं कि जीवन है तो समस्याएं अपरिहार्य रूप से होंगी, क्योंकि जीवन और समस्याएं एक दूसरे के पर्याय के रूप में विद्यमान होती हैं। जीवन का अस्तित्व नहीं रहने पर समस्याएं भी नहीं रहती हैं, क्योंकि जीवन की समाप्ति के साथ समस्याओं का भी अंत हो जाता है।
यदि समस्याओं के बारे में संजीदिगी से विचार करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंच पाते हैं कि सभी समस्याओं की एक ही प्रकृति होती है और वह यह है कि ये कभी भी स्थायी नहीं होती हैं। समस्याएं आती हैं और फिर एक निश्चित अवधि के बाद वे खत्म भी हो जाती हैं, किंतु समस्याओं की इस आंधी में फंसा हुआ इंसान समस्याओं के क्षणभंगुरता की प्रकृति के बारे में सोच नहीं पाता है और वह अपने आपको हारा हुआ महसूस करता है। उसे यही लगता है कि वह इस धरती पर का एक अकेला इंसान है जो समस्याओं से घिरा हुआ और इसलिए वह खुद को बहुत शापित और अभिशप्त महसूस करता है।
इसका आशय यह भी है कि समस्यारहित जीवन का अस्तित्व महज एक कल्पना है जो मुकम्मल तौर पर असंभव है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम सांस तक किसी-न-किसी समस्या से घिरा रहता है, इस सत्य से इंकार करना आसान नहीं होगा कि अदम्य साहस के साथ बिना उदास, निराश और हताश हुए समस्याओं के भंवर से निकलने के लिए हमारी निरंतर कोशिश में ही जीवन का सार छुपा हुआ है। इसलिए समस्याओं से घिर जाने पर चिंतित और भयभीत होने की बजाय उनसे निजात पाने के लिए चिंतन करने की दरकार है, जीवन-दर्शन और जीवन-शैली में परिवर्तन लाने की जरूरत है, धैर्य-धारण करने की जरूरत है।
समस्याओं से बाहर निकल कर आने पर ही जीवन को एक नया स्वरुप, मजबूती प्राप्त होती है, अमूल्य आत्मज्ञान प्राप्त होता है। तेज आंधी के गुजर जाने पर ही प्रकृति और परिवेश प्रशांत दिखता है और सब कुछ शीशे की भांति साफ-साफ नजर आता है। जिंदगी का फलसफा भी इससे इतर नहीं है। समस्या रूपी आंधी के दस्तक दिए बिना जीवन में भी शांति और सुकून दस्तक नहीं देती है। लिहाजा समस्याओं से घिर जाने पर मन को घोर निराशा और हताशा के बवंडर में डूबने से बचाने की हर कोशिश की जानी चाहिए। खुद को अवसाद से महफूज रखते हुए दृढ़ता के साथ समस्याओं का साहसपूर्वक मुकाबला किया जाना चाहिए और यह कभी भी नहीं भूला जाना चाहिए कि सोने की असली परीक्षा आग में जल कर ही होती है।
श्रीप्रकाश शर्मा