- विभागीय अफसरों की अनदेखी के कारण गरीब बच्चों को नहीं मिल पा रहा विभागीय योजनाओं का लाभ
- जिम्मेदार बने लापरवाह, बेसिक कार्यालय में नई किताबें का जखीरा जमा
- ठेकेदरों की उदासीनता के कारण परिषदीय स्कूलों में नहीं पहुंची पुस्तकें
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: सर्वशिक्षा अभियान पर हर वर्ष करोड़ों खर्च होते हैं, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आता। शासन के सख्त निर्देशों के बावजूद परिषदीय स्कूल के बच्चे किताबों से वंचित हैं। नौनिहाल खाली बस्ते लेकर स्कूल पहुंच रहे हैं और स्कूल में किताबें बंटने के खोखले दावों के बीच मजबूत भविष्य का ताना-बाना बुन रहे हैं। अफसरों की उदासीनता ने किताबों को जरूरतमंद बच्चों से दूर कर दिया है।
यही वजह है कि करोड़ों खर्च करने के बावजूद शिक्षित भारत का सपना अभी तक धुंधलकों से घिरा है। जिम्मेदारों की लापरवाही की वजह से किताबें कमरों में धूल फांक रहीं हैं। छात्र-छात्राएं भी उत्साहित होकर शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालयों में पहुंचते हैं, लेकिन उनको शिक्षित करने के लिए जो उपयोगी किताबें हैं, उनका वितरण नहीं हो पाया है।
शासन द्वारा गरीब व असहाय बच्चों को गुणवत्ता परक शिक्षा देने के लिए कई बड़ी योजनाएं चलाई जा रही है, लेकिन अफसरों की उदासीनता के कारण प्राइमरी स्कूल के बच्चों को इसका लाभ मिलता नजर नहीं आ रहा है। जिसका जीता जागता उदाहरण इन तस्वीरों को देखकर लगाया जा सकता है।
जहां विभाग में नये सत्र की पुस्तकें कार्यालय में धूल फांक रही है। जबकि, नया सत्र शुरू हुए काफी समय बीत गया है। बावजूद इसके गरीब व असहाय बच्चों को नयी पुस्तकों से वंचित किया जा रहा है। जिसने सिस्टम की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
शासन द्वारा प्राइमरी स्कूलों में नई पुस्तकें उपलब्ध करने के लिए हर साल पारदर्शिता के साथ टेंडर छोड़ा जाता है। इस पर ठेकेदार नया सत्र शुरू होने से पहले फरवरी माह में सभी नये सत्र का भंडारण कार्यालय पर कराते हैं। उसके बाद पुस्तकों को शिक्षा जुलाई माह में स्कलों में पहुंचाया जाता है। बावजूद, इसके जिम्मेदारों की उदासीनता के कारण ठेकेदार मनमानी पर उतारू हैं। जिनकी कारण सैकड़ों की संख्या में प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पुरानी पुस्तकों को पढ़ना पढ़ता है।
जिसके कारण पुरे साल वह नई पुस्तकों से वंचित रहते है। जबकि, शासन प्रशासन द्वारा विकाकारी योजनाओं के ढोल पीटे जाते हैं, लेकिन यह योजनाएं कागजों में ही सीमट कर रह जाती है। बेसिक शिक्षा कार्यालय के अफसरों की इस लापरवाही के कारण गरीब बच्चों को इसका खामिया भुगतना पड़ता है।
संबंधित विभाग के लिपिक पर होती है पुस्तकें पहुंचाने की जिम्मेदारी
समग्र शिक्षा के लिपिक की जिम्मेदारी होती है कि वो समय रहते नई पुस्तकों को प्राइमरी स्कूलों तक पहुंचाए, लेकिन कहीं न कहीं लिपिक इस उदासीनता के कराण बच्चों को इसका खामिया भुगतना पड़ता है। जहां कर्मचारी बड़ी आसानी से अफसरों के आदेश की अवेहलना करते नजर आते हैं।
फरवरी माह में प्राइमरी स्कूलों मेें पहुंचती है पुस्तकें
शासन द्वारा नये सत्र शुरू होने से पहले ठेकेदारों के लिए कुछ गाइडलाइन बनाई गई है, लेकिन ठेकेदार शासन के इस गाइडलाइन को मानन को तैयार नहीं है। ठेकेदारों की उदासीनता के कारण आज भी काफी संख्या में पुस्तकें कार्यालय के बरामदे में धूल फांक रही है।
जिसका अंदाजा फोटो को देखकर लगाया जा सकता है। जबकि, विभाग की जिम्मेदारी होती है कि वे नये शिक्षा सत्र के शुरू होने से पहले नई पुस्तकें स्कूलों को समय पर उपलब्ध कराए, लेकिन जिम्मेदारों की मनमानी के चलते लंबे समय से भारी संख्या में पुस्तकें के कार्यालय में चट्टे लगे हुए हैं।
बीएसए ने दो दिन पहले दिए थे पुस्तकें पहुंचने के आदेश
बेसिक शिक्षा अधिकारी से जब पुस्तकों के बारे में जानकारी ली तो उन्होंने गोलमोल जबाव देते हुए संबंधित कर्मचारी को पुस्तक के भंडार को संबंधित स्कूल तक पहुंचने का आदेश दिया गया था, लेकिन अभी तक पुस्तकें स्कूल में नहीं पहुंच सकी है।
बीएसए ने अनभिगता दिखाते हुए संबंधित कर्मचारी को बीते सोमवार तक पहुंचाने का आदेश दिया था, लेकिन अधिकारी से आदेश हवा-हवाई नजर आए। जिसके कारण अधीनस्थ कर्मचारी अभी तक स्कूलों में पुस्तकें नहीं पहुंचा पाए हैं।
-आशा चौधरी, बेसिक शिक्षा अधिकारी