- पैरोकारों कोर्ट में बहस के बजाय सिर्फ तारीख-पर-तारीख दे रहे ठेकेदार
- प्रोजेक्ट पर 1.5 करोड़ खर्च, बाद में बढ़ानी पड़ी लागत
- स्टाफ की कारगुजारियों के चलते एक नहीं हाईकोर्ट से दो-दो स्टे लिए बैठा ठेकेदार
शेखर शर्मा |
मेरठ: गरीबों को सस्ते व कम कीमत पर विवाह मंडप और अन्य आयोजनों के नाम पर करीब डेढ़ करोड़ की लागत से बनवाए गए अतिथि गृह को ठेकेदार के हाथों सौंपकर कैंट बोर्ड के अफसर उसे भूले बैठे हैं। नौबत यही तक नहीं रही।
अतिथि गृह को लेकर हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमे की पैरवी के मामले में भी स्टाफ और पैरोकारों का रवैया बजाय कैंट बोर्ड के ठेकेदार के प्रति ही ज्यादा हमदर्दी भरा नजर आता है वर्ना ऐसे क्या कारण है कि हाईकोर्ट में सिर्फ तारीख ली जाती है और केस की सुनवाई पर जोर नहीं दिया जाता। आबूलेन स्थित होटल अमृत की तर्ज पर कैंट बोर्ड कार्यालय के सामने बना अतिथि गृह भी कैंट अफसरों को चिढ़ाता नजर आता है।
सीईओ हरीश प्रसाद ने कराया था निर्माण
अतिथि गृह का निर्माण साल 1997-98 में तत्कालीन सीईओ हरीश प्रसाद के कार्यकाल में कराया गया था। तब इस प्रोजेक्ट की लगात करीब डेढ़ करोड़ रखी गयी थी। बाद में प्रोजेक्ट की राशि को करीब 70 लाख की बढ़ोत्तरी की गयी। दरअसल, ग्राउंड व फर्स्ट फ्लोर बनाने का प्रोजेक्ट था हालांकि आज भी यह प्रोजेक्ट फाइलों में अधूरा ही पड़ा है।
स्टाफ की कारगुजारियां ही जिम्मेदार
अतिथि गृह को किराए पर देने के पीछे स्टाफ की कारगुजारियां जिम्मेदार रहीं। तय हुआ था कि लोगों को कम पैसों में शादी विवाह व अन्य मौकों पर बेहतर सुविधाएं दी जाएं। इसके अलावा समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को शादी विवाह आदि के कम पैसों में अच्छा स्थान उपलब्ध कराया जाए, लेकिन स्टाफ की कारगुजारियां इसमें आडेÞ आ गयीं। तय किया कि स्टाफ के बूते इसको नहीं चलाया जा सकता है किसी प्राइवेट को दे दिया जाए।
एक साल का वादा, 30 साल का दावा
साल 2006-07 में तत्कालीन सीईओ केसी गुप्ता के कार्यकाल में ठेकेदार संतोष शर्मा को एक साल के लिए किराए पर दिए जाने का एग्रीमेंट किया गया था। अवधि पूरी होने के बाद अतिथि गृह को खाली कराने के बजाय स्टॉफ से की साजिश से ठेकेदार ने घाटे का रोना रोते हुए अवधि बढ़ाए जाने की मांग की। जैसा आमतौर में कैंट बोर्ड की परंपरा रही है कुछ सदस्यों और स्टाफ की मदद से ठेकेदार का यह काम हो गया।
किराए में पांच फीसदी की बढ़ोत्तरी के साथ दो साल बढ़ा दिए गए। इतना ही नहीं कैंट बोर्ड की ओर से भारी भरकम रकम खर्च कर इसकी रंगाई-पुताई भी करा दी गयी। ये बात अलग है कि तीन साल पूरे होने के बाद बजाय अतिथि गृह खाली करने के ठेकेदार हाईकोर्ट चला गया। इतना ही नहीं किराए के तौर पर एक पाई कैंट बोर्ड को नहीं मिली।
एग्रीमेंट में छोड़ी खामियां
जो एंग्रीमेंट ठेकेदार से किया गया था उसमें ड्राफ्ट करने वाले स्टाफ ने कारगुजारी दिखा दी। तारीख समेत कुछ तकनीकि खामियां छोड़ दी गयीं, जिनको आधार बनाकर ठेकेदार ने 2009 में हाईकोर्ट से एक नहीं बल्कि कैंट बोर्ड के खिलाफ दो-दो स्टे हासिल कर लिए। कोर्ट को बताया गया कि होटल अमृत की तर्ज पर उससे 30 साल का एग्रीमेंट किया गया है। हालांकि कैंट बोर्ड की ओर से पीपीई ऐक्ट भी चलाया गया, स्टाफ की कारगुजारियों की वजह से पीपीई ऐक्ट पर भी स्टे हासिल कर लिया।
तारीख-पर-तारीख
गरीबों की मदद के नाम पर बनाए गए अतिथि गृह को वापस हासिल करने के लिए कैंट बोर्ड कितना गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाईकोर्ट में अमूमन एक साल में छह से सात तारीखें लगती हैं, लेकिन पैरोकारों का जोर बजाय बहस के तारीख हासिल करने पर अधिक होता है। जब भी तारीख होती है कैंट बोर्ड के पैरोकार सुबह पहुंचे ही सबसे पहला काम लंबी तारीख लेने का करते हैं ताकि ठेकेदार का काम चलता रहे।
सवालों से भागते प्रवक्ता
इस संबंध में जब कैंट बोर्ड के प्रवक्ता से संपर्क का प्रयास किया गया तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की। कोर्ट में चल रहे मुकदमे का क्या स्टेटस है इसकी जानकारी नहीं मिल पायी है।