जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: उपहार त्रासदी पीड़ित एसोसिएशन ने रियल एस्टेट टाइकून सुशील और गोपाल अंसल व अन्य को अदालती दस्तावेजों से छेड़छाड़ के मामले में उनकी आयु और जेल में काटी गई सजा के आधार पर रिहा करने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। याची ने कहा कि सत्र न्यायाधीश ने हालांकि मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा उनको दोषी ठहराने के फैसले को उचित ठहराया है, लेकिन जिस प्रकार आयु और जेल में काटी सजा के आधार पर रिहा करने का निर्णय दिया है वह कानूनन गलत है। इससे आम लोगों के न्याय के प्रति विश्वास को ठेस लगी है। इसके अलावा उन्होंने कई अहम तथ्यों को नजरअंदाज किया है। न्यायमूर्ति आशा मेनन के समक्ष प्रस्तुत की गई याचिका पर 5 सितंबर को सुनवाई होगी।
उल्लेखनीय है कि जिला न्यायाधीश धर्मेंश शर्मा ने अपने फैसले में सजा के खिलाफ उनकी अपील खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया था। 1997 के उपहार सिनेमा अग्निकांड में 59 लोगों की जान चली गई थी। इससे संबंधित मामले में सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप अंसल बंधुओं व अन्य पर लगा था। मजिस्ट्रियल अदालत ने 8 नवंबर को अंसल बंधुओं के अलावा अन्य दोषियों को सात साल की जेल की सजा सुनाई थी और तब से वे जेल में थे।
एसोसिएशन ने तर्क दिया कि प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश इस बात पर विचार करने में विफल रहे कि सुशील और गोपाल अंसल के लिए यह दूसरी सजा है और एक दोहरा अपराध है। इस वजह से वे अधिकतम सजा के पात्र हैं। यह एक ऐसा मामला है, जो आपराधिक न्याय प्रणाली पर जनता के विश्वास को तोड़ता है। इसके लिए अधिकतम सजा की आवश्यकता है। ताकि यह दूसरों के मिसाल बने, जो भविष्य में अदालत के रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ का सपना भी देखते हैं। इस मामले में मुख्य रूप से अंसल भाइयों ने मुख्य उपहार मामले में दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया और अदालत के कर्मचारियों के साथ आपराधिक साजिश रचने के बाद सबूतों से छेड़छाड़ की।
जिला न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने अपना फैसला सुनाते हुए अदालत में उपस्थित उपहार त्रासदी पीड़ित एसोसिएशन की अध्यक्ष नीलम कृष्णमूर्ति से कहा था कि हम आपके साथ सहानुभूति रखते हैं। इस हादसे में कई लोगों की जान चली गई, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती, लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि दंड नीति प्रतिशोध के बारे में नहीं है। हमें अंसल की उम्र पर विचार करना होगा, आपने सहा है, लेकिन उन्होंने भी सहा है। अदालत के आदेश सुनाए जाने के बाद कृष्णमूर्ति ने न्यायाधीश से कहा था कि यह आदेश अन्यायपूर्ण है।