Friday, April 19, 2024
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जानिए, किसान कानूनों पर चौधरी अजित-जयंत की चुप्पी कुछ कहती है….

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जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: कृषि बिल जैसे ज्वलंत मुद्दे पर भी किसान नेता चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी की खामोशी जनता को ‘साल’ रही है। अब तो हालत ये हो गए हैं कि उनकी चुप्पी वेस्ट यूपी के किसानों को अखरने लगी है। चौधरी अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी को कृषि बिल जैसा बड़ा मुद्दा और मौका, दोनों मिले थे, मगर ये किसान नेता धरतीपुत्र खामोश हैं।

इसकी वजह कुछ भी हो, लेकिन इतना अवश्य है कि ये उनकी खामोशी ही जनता से दूर लेकर जा रही है। क्योंकि किसानों की निगाहें कृषि बिल के मुद्दे को लेकर रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी पर लगी हुई थी, हालांकि उनकी पार्टी आंदोलन तो कर रही है, लेकिन मात्र रस्म अदायगी भर की जा रही है।

स्व. चौधरी चरण सिंह को किसान मसीहा कहा गया है, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह किसानों की राजनीति करते हैं, मगर कृषि बिल को लेकर उनकी चुप्पी किसानों को ‘साल’ रही है। स्व. चौधरी चरण सिंह की बड़ी राजनीतिक विरासत रही है, लेकिन उस राजनीतिक विरासत को चौधरी अजित सिंह संभाल नहीं पाए।

चौधरी अजित सिंह व जयंत चौधरी वर्तमान में किसी भी सदन के सदस्य नहीं है। कृषि बिल के खिलाफ पंजाब व हरियाणा का किसान आंदोलित है, मगर वेस्ट यूपी के किसान नेता चौधरी अजित सिंह क्यों चुप हैं? ये किसानों की समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि वेस्ट यूपी के किसानों की राजनीति चौधरी अजित सिंह करते रहे हैं।

कृषि बिल के मुद्दे को लेकर चौधरी अजित सिंह को जिस तरह से मुखर होना चाहिए था, वह मुखरता तो दूर वो मौनी बाबा बन गए हैं। रालोद राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहा है। क्योंकि अस्तित्व बचा ही नहीं है। बावजूद उसके कृषि बिल जैसे मुद्दो पर रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह की चुप्पी बड़ा सवाल बन गई है।

कृषि बिल ऐसा मुद्दा है, जिसके जरिये वेस्ट यूपी में रालोद को फिर से किसानों के बीच खड़ा किया जा सकता है, मगर चौधरी अजित सिंह चुप बैठ गए हैं। एक तरह से देखा जाए तो किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। जयंत चौधरी मथुरा से सांसद रहे हैं। यह किसानों का गढ़ है। बागपत से चुनाव लड़े थे, जिसमें कम अंतर से ही पराजित हो गए थे। बागपत भी किसानों का गढ़ कहा जाता है।

उनकी एक हुंकार पर किसान आंदोलित हो सकते हैं, जयंत चौधरी भी कृषि बिल को लेकर मौन धारण किये हैं। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता अवश्य ही धरने-प्रदर्शन कर रहे हैं, मगर पार्टी के बड़े नेता चुप्पी साधे हुए हैं। दूसरे किसान नेता संजीव बालियान है, जो सत्ताधारी पार्टी का हिस्सा है।

इस वजह से संजीव बालियान कृषि बिल को लेकर नहीं बोल पा रहे हैं। ये उनकी मजबूरी ही कही जाएगी। क्योंकि अपनी ही पार्टी के द्वारा लाये गए कृषि बिल के खिलाफ वो कैसे बोल सकते हैं? भाजपा नेता संजीव बालियान की कृषि बिल के खिलाफ नहीं बोलने की मजबूरी हो सकती है, लेकिन रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह व जयंत चौधरी के नहीं बोलने की क्या मजबूरी हैं? वो विपक्ष में रहते हुए भी नहीं बोल पा रहे हैं।

ये हाल तो तब है जब रालोद अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। एक तरह से रालोद वेंटिलेटर पर है। उसे कृषि बिल आक्सीजन दे सकता था, मगर वहां भी ‘चुप्पी’ किसानों को रास नहीं आ रही है।

भाकियू नेताओं की चुप्पी का रहस्य कहीं कुछ और तो नहीं

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राकेश और नरेश टिकैत।

पंजाब और हरियाणा के किसान कृषि बिल के खिलाफ आक्रामक और जान देने पर आमादा हैं। इस हद तक आंदोलित है, मगर वेस्ट यूपी भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) का गढ़ कहा जाता है, फिर भी यहां किसान आंदोलन के नाम पर भाकियू सिर्फ रस्म अदायगी क्यों कर रही हैं?

कृषि बिल ऐसा मुद्दा है,जो भाकियू को फिर से पैरों पर खड़ा कर सकता है, लेकिन भाकियू नेता चौधरी नरेश टिकैत और राकेश टिकैत जिस तरह से मुखर होने चाहिए, वह मुखरता नजर नहीं आ रही है। किसान कर्फ्यू का ऐलान किया था। इस आंदोलन में भी सिर्फ रस्म भर निभाई गई। ये सब जगजाहिर है। क्योंकि भाकियू किसानों की भीड़ नहीं जुटा पाई।

आंदोलन में वो तेवर नहीं दिखे, जो तेवर भाकियू संस्थापक चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के आंदोलन में दिखाई देते थे। कृषि बिल हो या फिर बकाया गन्ना भुगतान, ये दोनों ऐसे मुद्दे है जो सरकार की घेराबंदी करने के लिए काफी है। भाकियू के सामने कृषि बिल के खिलाफ आंदोलन के जरिये भाकियू का फिर से पैरों पर खड़ा करने का बड़ा मौका था, मगर भाकियू ने प्रतीकात्मक चक्का जाम किया।

दो वर्ष पहले भाकियू ने हरिद्वार से किसान क्रांति यात्रा निकाली थी। हरिद्वार से दिल्ली तक यात्रा पहुंची। केन्द्र सरकार ने भी वार्ता की। बीच में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी किसान नेता राकेश टिकैत से बातचीत की, मगर निष्कर्ष कुछ नहीं निकला। इस बार कृषि बिल और बकाया गन्ना भुगतान, दो ऐसे मुद्दे भाकियू के सामने हैं, मगर भाकियू लगता है वापसी करने के मूड में नहीं है।

यही वजह है कि प्रतीकात्मक आंदोलन किये जा रहे हैं। वेस्ट यूपी हमेशा भाकियू का गढ़ रहा है। करमूखेड़ी से भाकियू का उदय हुआ था। बिजली बिलों को लेकर भाकियू अस्तित्व में आयी थी। तब भाकियू की राजधानी सिसौली में ही पीएम से लेकर सीएम तक मत्था टेकने के लिए आते थे।

भाकियू के आंदोलनों के आगे सरकार झुक जाती थी, हम उसी भाकियू की बात कर रहे हैं, जो कृषि बिल के खिलाफ मुखर नहीं हो पा रही है। पंजाब और हरियाणा के किसान कृषि बिल के खिलाफ जिस तरह से मुखर हो रहे हैं, वो मुखरता वेस्ट यूपी के किसान नेताओं में नहीं दिख रही है।

भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत की कृषि बिल का विरोध करने से पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी बात हुई है, लेकिन जो बात हुई, उनको भी भाकियू नेताओं को बताना चाहिए था। कृषि बिल के मुद्दे पर भाकियू को पुन: अपने पुराने अंदाज में लौट सकती है, लेकिन इसके लिए मुखर तो होना पड़ेगा।

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राजवीर सिंह ने कहा कि कृषि बिल का मजबूती के साथ किसान विरोध करेगा। कृषि बिल को लेकर किसान आक्रामक है। इस बिल को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसके लिए किसानों को एकजुट होकर आंदोलन करना होगा। तभी केन्द्र सरकार की घेराबंदी की जा सकती है। किसान कमजोर नहीं है।

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ओम सिंह ने कहा कि किसानों को पहले बीमा देने का ऐलान किया गया। कहीं किसानों को बीमा धनराशि मिली है,नहीं। तो इसी तरह से कृषि बिल भी किसानों के साथ एक धोखा है। कृषि बिल को लेकर किसान कतई विश्वास नहीं करेंगे। किसानों को खत्म करने के लिए ही कृषि बिल लाया गया है।

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मनसूर राणा का कहना है कि कृषि बिल किसान के खिलाफ है। बड़े कॉरपोरेट घरानों को लाभ देने के लिए कृषि बिल लाया गया है। किसानों को वाजिब दाम चाहिए, जिसे सरकार खत्म कर रही है। किसानों की मंडी खत्म की जा रही है। बिचौलियों को खत्म करने की बात कही जा रही है।

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वेदपाल सिंह का कहना है कि किसान दुर्गति के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में कृषि बिल गुपचुप तरीके से केन्द्र सरकार ले आई है। यदि कृषि बिल अच्छा है तो फिर सरकार इसे ढोल बजाकर क्यों नहीं लाई। गुपचुप तरीके से कोरोना कॉल में कृषि बिल किसानों के ऊपर लाद दिया गया।

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अजय त्यागी ने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने की बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं। कृषि बिल के खिलाफ हाय-तौबा मची है। पंजाव व हरियाणा के किसान सड़कों पर आ गए हैं। जब इतना विरोध कृषि बिल का हो रहा है तो केन्द्र सरकार को बिल वापस करने पर विचार करना चाहिए।

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किसान अशोक सिरोही ने कहा कि कृषि बिल को लेकर देश भर में विरोध हो रहा है। जब किसान कृषि बिल के पक्ष में नहीं है तो सरकार को इस बिल को वापस ले लेना चाहिए। कृषि बिल लाने से पहले किसानों से सरकार को चर्चा करनी चाहिए थी, लेकिन ये केन्द्र सरकार किसान विरोधी है।

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