कहते हैं कि बच्चे बड़े होकर क्या काम करेंगे, उसकी झलक बालपन में ही मिल जाती है। एक दिन कक्षा में कुछ छात्रों ने मूंगफली खाकर छिलके फर्श पर डाल दिए। कक्षा में गंदगी देखकर अध्यापक ने सभी छात्रों से पूछताछ की। मार पड़ने के भय से किसी भी छात्र ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया। अध्यापक को क्रोध आ गया। उन्होंने कड़ककर सभी से कहा कि सब छात्र अपने हाथ आगे बढ़ाओ। सब छात्रों ने अध्यापक की आज्ञा का पालन किया। अध्यापक सबकी हथेलियां खुलवा कर दो-दो बेंत मार कर सजा दे रहे थे, लेकिन एक छात्र ने अपने हाथ आगे नहीं बढ़ाए और इस बात का हठ कर लिया कि वह हाथ आगे नहीं बढ़ाएगा। उसने अपने हाथ बगल में दबा लिए और बोला, ‘मैंने मूंगफली नहीं खाई, इसलिए मैं बेंत भी नहीं खाऊंगा।’ अध्यापक ने कहा, ‘तो फिर सच-सच बता दो कि ये मूंगफली किसने खाई?’ छात्र ने तुरंत कहा, ‘मैं किसी का नाम नहीं लूंगा और न ही बेंत खाऊंगा।’ छात्र ने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि उसे चुगली की आदत नहीं थी। उसे घर पर पढ़ाया गया था कि चुगली बुरी आदत होती है। छात्र के हठ के कारण उसे स्कूल से निष्कासित कर दिया। छात्र ने अपना निष्कासन स्वीकार कर लिया, किंतु बिना अपराध दंड नहीं भुगता। न्याय के लिए कष्ट सहने वाला यह छात्र और कोई नहीं, बल्कि बाल गंगाधर तिलक थे, जिन्होंने अंत तक अन्याय का विरोध किया। इसीलिए कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाया करते हैं।