Wednesday, September 11, 2024
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जीवनदायिनी काली बांट रही मौत

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मुजफ्फरनगर के अतवाड़ा से निकलकर वाया मेरठ समेत कई जनपदों से होकर कन्नौज तक का सफर तय करने वाली काली नदी का पानी पीने से ही पुरानी से पुरानी खांसी ठीक हो जाती थी। पुरानी से पुरानी खाज खुजली भी इस नदी में नहाने से ठीक हो जाती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है, लेकिन जीवन दायनी काली अब कैंसर जैसी बीमारियां परोस कर लोगों की जिंदगी छीन रही है।

  • काली नदी किनारे बसे गांवों के हैंडपंप उगल रहे जहर
  • प्रदूषित पानी पीने से एक दर्जन से ज्यादा की कैंसर से हो चुकी है मौत
  • किडनी, आंतों में इंफेक्शन आदि बीमारियों से जूझ रहे कई लोग
  • जहरीले पानी की अभी तक प्रशासन की ओर से नहीं हुई पहल

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: काली नदी मुजफ्फरनगर और मेरठ जिलों के 80 गाँवों के तकरीबन ढाई लाख लोगों की जिंदगी में कहर बरपा रही है। नदी कैंसर और त्वचा रोगों का कारण बन रही है। एक तरफ कारखानों का जहरीला पानी और कचरा नदी में गिराया जा रहा है। नतीजन गांव के लोग बीमारियों और मौत का शिकार हो रहे हैं। टीम जनवाणी काली नदी के द्वारा दिए जा रहे दर्द से रूबरू होने को ग्राउंड जीरो पर पहुंची।

गंगा की सहायक नदी के रूप में पहचानी जाने वाली काली नदी अब प्रदूषित पानी का नाला बनकर रह गई है। इसका प्रदूषित पानी उन इलाकों में जहर बांट रहा है, जहां से होकर ये गुजर रही है। करीब 300 किमी. लंबी काली नदी मुजफ्फरनगर की जानसठ तहसील के अतवाड़ा गांव से निकलकर मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़ और एटा होते हुए कन्नौज में जाकर गंगा में मिलती है।

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कभी लोगों के लिए जीवनदायिनी रही यह काली नदी, अब लोगों को बीमारी दे रही है। इस समय ये पूरी तरह से गंदे नाले में तब्दील हो गई है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और इंडियन डवलपमेंट अथॉरिटी को दो नदियों को पुनर्जीवित करने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में लोगों में देश की अन्य प्रदूषणयुक्त नदियों के फिर से स्वच्छ होने की उम्मीद जगी है। हालांकि, मेरठ से होकर गुजर रही इस काली नदी को कब संजीवनी मिलेगी, यह बड़ा सवाल है।

केंद्रीय भू-जल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, इस नदी के पानी में अत्यधिक मात्रा में सीसा, मैगनीज और लोहा जैसे तत्व घुले हुए हैं। इसमें प्रतिबंधित कीटनाशक भी काफी मात्रा में घुल चुका है। यही वजह है कि इस नदी के पानी में अब आॅक्सीजन पूरी तरह से खत्म हो गया है। अब इसका पानी पीने लायक भी नहीं है।

हालत यह है कि कोई भी जलीय-जीव इस नदी में जिंदा नहीं रह पाता है। आढ के ग्रामीणों ने बताया कि हालांकि काली नदी के पानी से उगाई जा रही सब्जी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसके किनारे रहने वाले लोगों के लिए यह नदी अभिशाप बन चुकी है।

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उद्योग कर रहे नदी को प्रदूषित

काली नदी के पानी को प्रदूषित करने में 40 बड़े उद्योगों को चिन्हित किया गया था। इनमें शुगर मिल, पेपर मिल, रसायन उद्योग आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। प्रदूषण विभाग के अनुसार, नदी में प्रदूषित पानी गिराने वाली 28 इकाइयों को नोटिस जारी कर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए कहा गया है। साथ ही ट्रीटमेंट का पानी खेतों में सिंचाई के लिए देने के निर्देश दिए गए हैं।

सैनी गांव में बीमारियों की जड़ काली नदी

काली नदी मवाना रोड स्थित सैनी गांव के पास से निकलती है। इससे उसमें मौजूद गंदगी और जहरीले पदार्थ आसपास का माहौल प्रदूषित कर रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि गांव के हैंडपंपों का पानी अगर 10 मिनट तक भरकर रख दें तो वह पीला हो जाता है। ग्रामीणों ने कई बार शासन को नदी की गंदगी से होने वाली परेशानियों से अवगत कराया है।

गांवों में कैंसर का कहर

काली नदी के किनारे बसे गांवों में तमाम लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। आढ़ गांव में काली सबसे अधिक कहर है। रहीमुद्दीन, उसकी मां अकबरी की कैंसर से मौत हुई। बाद में भाई कासमीन को भी कैंसर हुआ। पड़ोसी नियाज, गुलमोहर के साथ ही सात साल के एक बच्चे को भी कैंसर ने लील लिया।

पिछले 10 साल में सौ से अधिक लोग कैंसर का शिकार हो चुके हैं। इसके अलावा जलालपुर, अलीपुर, कुढ़ला, पीपलीखेड़ा, रजपुरा, अतराड़ा, अजराड़ा गांवों में दर्जनों लोग कैंसर, हृदय रोग, अलर्जी, बांझपन के रोगी इलाजरत हैं। पिछले साल गांवड़ी गांव के पास नदी से लिए गए सैंपल में सीसा समेत दर्जनों कैंसरकारक तत्व मिले थे।

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काली नदी को देश की सबसे प्रदूषित नदियों में गिना जाता है। पिछले 20 सालों से नदी में कूड़ा-कचरा डाला जा रहा है। नदी के प्रदूषण की कई बार जांच कराई। पानी में रक्त, बोन और आंतों का कैंसर करने वाले और डीएनए डिस्टर्ब करने वाले कई रसायन पाए गए थे।

मेरठ में कैंसर से हो चुकी हैं कई मौतें

सबसे ज्यादा मौतें देदवा गांव में हुई हैं। यहां पर करीब 50 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। यह बात अलग है कि इन मौतों को कहीं भी दर्ज नहीं किया जाता। अफसर सामान्य मौत बताते हैं, जबकि पनवाड़ी, अझौता, इकलौता, समौली व खेड़ी गांवों की बात करें तो यहां भी कैंसर और अन्य बीमारियों से काफी संख्या में मौत हो चुकी हैं। इसके अलावा गांव धंजू, कौल, कुझला, अतराड़ा, दौराला, अजोहटा, नंगली, नंगला शेखू,

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कस्तला शमशेर नगर, जयभीमनगर, दुल्हैड़ा, पल्हैड़ा, पिथोलकर, पूठी, खजूरी, नंगलामल, कलीना, किनौनी, रसूलपुर, डूंगर, पूठखास, पूठी, बहलोलपुर, सठला, खरखौदा, गेसुपुर, भदौली, माडरा, कुढ़ला, मऊखास, भटीपुरा, माछरा, रजपुरा, सैनी, बना, मसूरी, फिटकरी, कमालपुर, धीरखेड़ा, हाजीपुर, खरखौदा, कैली आदि गांव ऐसे हैं, जिनमें पेयजल की स्थिति औद्योगिक इकाइयों और काली नदी के कारण काफी खराब है।

वेटलैंड बनाने का प्रस्ताव

काली नदी की हालत सुधारने के लिए सरकारी स्तर पर भी कवायद चल रही है। पानी पर काम करने वाली संस्था बूंद के रवि ने बताया कि सरकार ने पिछले दिनों नमामि गंगे परियोजना के तहत नदी किनारे आठ वेटलैंड बनाने का फैसला लिया है। इसके लिए अधिकारी सर्वे भी कर चुके हैं।

वन विभाग की ओर से इसके प्रयास चल रहे हैं। शासन में यह योजना लंबित है। बताया गया है कि काली किनारे आने वाले जनपदों में यह योजना प्रस्तावित है। संबंधित सभी जिलों में योजना एकसाथ लागू की जाएगी। कुछ जिलों में अभी सर्वे का कार्य अधूरी है। इस वजह से परियोजना आगे नहीं बढ़ पा रही है।

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