पूनम दिनकर |
बच्चों के तनाव पर अभिभावकों की आपसी बातचीत का भी गहरा असर पड़ता है। कार्यक्षेत्र से जुड़ी समस्याओं की चर्चा सहित किसी मित्र या नाते-रिश्तेदार के बीच मतभेदों की चर्चा तक से बच्चे तनाव में आ जाते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि अभिभावक ध्यान रखें कि उन्हें बच्चों के सामने कौन-सी बात करनी है और कौन-सी नहीं।
आज के इस युग में अभिभावकों में अपने बच्चों को हरफनमौला बनाने का फितूर सवार है। सर्वप्रथम डेढ़-दो वर्ष की छोटी उम्र में ही शहर के अच्छे स्कूल में दाखिले के लिए तोतारटंत का फितूर दिखाई देने लग जाता है। दाखिले के बाद क्लास में अव्वल रहने के लिए कई ट्यूशनें, फिर इसके बाद बहुमुखी विकास के लिए म्यूजिक, स्विमिंग, राइडिंग, गोल्फ, क्रि केट सरीखे हॉबी वाले कोर्स, यानी कि बच्चों को ‘सुपरमैन’ बनाने के फेर में आज के अभिभावक परवरिश के मूल तंत्र तक को दरकिनार कर रहे हैं।
आज के अभिभावक प्रतिस्पर्धा की होड़ में यह जानना तक भूल जाते हैं कि वास्तव में उनका बच्चा चाहता क्या है? फलां बच्चा ऐसा कर रहा है तो उनका बच्चा ही पीछे क्यों रहे, वाली मानसिकता में फंसे अभिभावक अपनी इच्छाएं उन पर थोपकर उनके स्वाभाविक विकास के क्र म में तो बाधक बनते ही हैं, साथ ही यथार्थ से परे अपेक्षाएं रखकर बच्चों को तनाव और चिंताग्रस्त भी बना रहे हैं।
समय इतना बदल चुका है कि आज के अभिभावक अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में बच्चे में नैतिक मूल्य और संस्कार डालने की बजाय उन्हें येन-केन-प्रकारेण सफल होने की उत्कंठा देने का काम ही कर रहे हैं। ऐसे में अगर आज के बच्चे तनाव, चिंता और कुंठा से ग्रस्त हो रहे हैं तो इसके जिम्मेदार अभिभावक के अलावा और कौन हैं? कारण हम उनके लिए एक मानक निर्धारित करते हैं जो पहले तो दबाव और फिर तनाव को जन्म देता है।
छोटे बच्चे जब बड़े होते हैं तो शैक्षिक और सामाजिक दबाव उनके तनाव का प्रमुख कारण बन जाता है। यहां भी एक बड़ी भूमिका अभिभावक ही निभाते हैं। अक्सर देखा गया है कि सफल और समझदार अभिभावक अपने बच्चों में अपने जैसा बनने की नसीहत देकर उनके लिए दबाव पैदा करने का काम करते हैं।
बच्चों के तनाव पर अभिभावकों की आपसी बातचीत का भी गहरा असर पड़ता है। कार्यक्षेत्र से जुड़ी समस्याओं की चर्चा सहित किसी मित्र या नाते-रिश्तेदार के बीच मतभेदों की चर्चा तक से बच्चे तनाव में आ जाते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि अभिभावक ध्यान रखें कि उन्हें बच्चों के सामने कौन-सी बात करनी है और कौन-सी नहीं।
आपका बच्चा दबाव या तनाव में है, इसके लक्षणों को पहचानना आसान नहीं होता। फिर भी व्यवहार में परिवर्तन, मूडी हो जाना, बातें बनाना, नींद के पैटर्न में बदलाव सरीखे संकेतों से यह जाना जा सकता है कि आपका बच्चा तनाव या दबाव में है।
कुछ बच्चों में तनाव का शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है। पेट दर्द, सिर दर्द, मासिक स्राव का एक से अधिक बार हो जाना, आदि लक्षण भी तनाव के कारण बच्चों में दिखाई देने लगते हैं। तनाव का एक प्रभाव यह भी होता है कि वे स्कूल का काम पूरा नहीं कर पाते या उस काम को करने में परेशानी होती है। ऐसे बच्चे एकान्त में बैठ कर कुछ सोचते रहते हैं।
तनावग्रस्त बच्चों को तनाव से मुक्ति दिलाने में मां अधिक मदद कर सकती है। बच्चों की प्रकृति को अच्छी तरह से समझें और उन्हें उनकी क्षमताओं के अनुरूप ही कार्य करने दें। बच्चे में तनाव, चिन्ता या कुंठा न पनपे, इसके लिए यह जरूरी है कि उन्हें नियमित समय दें तथा उनके सामने घरेलू या आॅफिस की चिन्तनीय बातों को कदापि न करें। बच्चों के सामने पति-पत्नी में झगड़ा करना वर्जित करें तथा बच्चों की तुलना अन्य बच्चे से न करें।
बच्चों में आध्यात्मिक संस्कार डालें तथा उन्हें आध्यात्मिक बनाएं। याद रखें कि बच्चों को तनाव से बाहर निकालने की कुंजी अभिभावकों के ही हाथ में होती है।