Tuesday, October 15, 2024
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सम्यक निष्ठा

 

Amritvani 11


उपवन में नए सुन्दर सलौने पौधे को आया पाकर एक पुराना पौधा उदास हो जाता है। गहरा निश्वास छोड़ते हुए कहता है, ‘अब हमें कोई नहीं पूछेगा अब हमारे प्रेम के दिन लद गए, हमारी देखभाल भी न होगी।’ युवा पौधे को इस तरह बिसूरते देख पास खड़े अनुभवी प्रौढ़ पेड़ ने कहा, ‘इस तरह विलाप-प्रलाप उचित नहीं हैं ।और न ही नए पौधे से ईर्ष्या करना योग्य है।’ युवा पौधा आहत स्वर में बोला, ‘तात! पहले माली हमारा कितना ध्यान रखता था, हमें कितना प्यार करता था। अब वह अपना सारा दुलार उस नन्हे पौधे को दे रहा है। उसी के साथ मगन रहता है, हमारी तरफ तो आंख उठाकर भी नहीं देखता।’ प्रौढ़ पेड़ ने समझाते हुए कहा, ‘वत्स! तुम गलत सोच रहे हो, बागवान सभी को समान स्नेह करता है। वह अनुभवी है, उसे पता है कब किसे अधिक ध्यान की आवश्यकता है। वह अच्छे से जानता है, किसे देखभाल की ज्यादा जरूरत है और किसे कम।’ युवा पौधा अब भी नाराज था, बोला- ‘नहीं तात! माली के मन पक्षपात हो गया है, नन्हे की कोमल कोपलों से उसका मोह अधिक है। वह सब को एक नजर से नहीं देखता।’ अनुभवी पेड़ ने गंभीरता से कहा- ‘नहीं, वत्स! अगर माली का संरक्षण व सुरक्षा हमें न मिलती तो शायद बचपन में ही पशु-पक्षी हमारा निवाला बना चुके होते या नटखट बच्चे हमें नोंच डालते। वह माली ही था जिसने बिना कहे ही हमारी भूख-प्यास को पहचाना और तृप्त किया। उस पालक के असीम उपकार को हम कैसे भूल सकते है।’ युवा पौधा भावुक हो उठा- ‘तात! आपने मेरी आंखें खोल दीं। मैं संवेदनाशून्य हो गया था। आपने यथार्थ दृष्टि प्रदान की है। ईर्ष्या के अगन में भान भूलकर अपने ही निर्माता-पालक का अपमान कर बैठा। मुझे माफ कर दो।’


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