जब भी देश में हिंदू-मुसलमान अधिक होने लगेंगे तो समझ लेना चाहिए कि सरकार निर्धनों और बेरोजगारों की गर्दन पर पैर रख कर उनके हितों के खिलाफ और बाजार के रंग बिरंगे खिलाड़ियों के पक्ष में कुछ और कदम आगे बढ़ाने वाली है। या फिर, देश की अर्थव्यवस्था को झटका देने वाले कुछ ऐसे निर्णय लिए जा सकते हैं, जो किसी भी कॉरपोरेट प्रभु के हितों का संपोषण करते हों। आप अगर थोड़ी भी समझ रखते हैं तो ताजा मामला बिग बाजार का है, जिसके हजारों करोड़ के बैंक लोन की वसूली अधर में लटकी हुई है और रिलायंस रिटेल के द्वारा उसके व्यवसाय को खरीदने की चर्चाओं से बाजार गर्म है। सुना है, 24 हजार करोड़ में बिग बाजार को अंबानी की कंपनी ने खरीदा है या खरीद रही है। अब बिग बाजार पर कितना बैंक लोन है, कितना चुकाया जाएगा, कितने का वजन रिलायंस कंपनी उठाएगी, डील की शर्तें क्या होंगी, उसमें लोन देने वाले सरकारी बैंक के क्या हित-अहित होंगे, यह सब आर्थिक जानकार लोग ही बता सकते हैं।
अजान और हनुमान चालीसा के विवादों का जैसा कोलाहल मच रहा है, समाचार माध्यमों में जिस तरह इसे प्रमुख घटना क्रम के रूप में दर्ज कर लोगों के मस्तिष्क को प्रदूषित किया जा रहा है, उस माहौल में कौन बिग बाजार-सरकारी बैंक-अंबानी आदि की डीलिंग की शर्तों पर निगाह डालेगा। जो विशेषज्ञ इसके जटिल पहलुओं की चर्चा करेंगे, उन्हें सुनने-पढ़ने वाले नगण्य ही होंगे।
सरकारी बैंक किस तरह बाजार के बड़े खिलाड़ियों का चारागाह बन खोखले होते गए, मीडिया को इस पर चर्चा करनी चाहिए। इस तरह के घालमेल की बारीकियों पर नजर रखनी चाहिए, लेकिन मीडिया तो जैसे हिंदू-मुसलमान करने का ठेका ले चुका है।
उससे भी बड़ा मुद्दा है नई शिक्षा नीति का लागू किया जाना। छात्र संगठन क्या खाएं, क्या न खाएं, कब क्या नहीं खाएं आदि के अंतहीन शोरगुल में उलझे हैं। एक छात्र संगठन देश के विभिन्न शहरों में धार्मिक विवादों से जुड़े मुद्दों को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहा है, दूसरे उसका जवाब देने की तैयारी कर रहे होंगे। शिक्षा नीति से छात्र समुदाय के हित-अहित का सीधा वास्ता है, लेकिन उनके बीच यह सामूहिक विमर्श का मुद्दा नहीं बन पा रहा। रस्म अदायगी की तरह अक्सर कुछ संगठन समर्थन या विरोध में जिंदाबाद-मुदार्बाद कर लेते हैं।
जबकि नई शिक्षा नीति के प्रावधान छात्रों की वर्र्तमान पीढ़ी को ही नहीं, आने वाली पीढ़ियों को भी प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करेंगे। विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग बार-बार चेतावनी देता रहा है कि नई शिक्षा नीति के नाम पर सरकार शिक्षा के कॉरपोरेटीकरण का रास्ता तैयार कर रही है, प्राइवेट हाथों में सौंपने के साथ ही शिक्षा इतनी महंगी की जा रही है कि देश की दो तिहाई आबादी के लिए उच्च शिक्षा, खास कर तकनीकी शिक्षा के द्वार तक पहुंचना भी मुश्किल हो जाएगा।
जिन्हें नई शिक्षा नीति के प्रावधानों पर गौर करना चाहिए था, इससे जुड़े विमर्शों में भाग लेना चाहिए था, उनमें से अधिकतर नौजवान मोबाइल के फ्री डेटा का आनंद उठाते ओटीटी प्लेटफार्म्स या आईपीएल आदि में व्यस्त हैं। इसमें क्या आश्चर्य…कि इन्हीं में से कुछ अति उत्साही नौजवान किसी प्रायोजित धार्मिक जुलूस में शामिल हो अपने झंडे को किसी दूसरे धर्म के धर्मस्थल पर फहराने में गर्व का अनुभव कर रहे हैं।
संभव है, उन नौजवानों में से कुछ को पैसे का लोभ देकर बुलाया गया हो, लेकिन अफसोसनाक सच तो यह भी है कि हुड़दंग मचाने, किसी अन्य धर्म के लोगों को अपमानित करने के उत्साह में बहुत सारे नौजवान फ्री में दिन भर झंडा ढोने को तैयार होंगे। संस्कार न एक दिन में बनते हैं न एक दिन में नष्ट होते हैं। आज के नौजवानों के बड़े तबके में धार्मिक सहिष्णुता का संस्कार, एक दूसरे के धर्मस्थलों को इज्जत की नजर से देखने का संस्कार जो नष्ट किया गया है, उसके लिए राजनीति के खिलाड़ियों ने बड़े जतन किए हैं, वर्षों से जतन किए हैं।
अब रामनवमी है तो जुलूस निकालेंगे, जरूर निकालेंगे। उसमें तरह-तरह के तलवार-भाले हाथों में लेकर चिढ़ाने-धमकाने वाले नारे लगाते किसी दूसरे के धर्मस्थल के सामने से गुजरेंगे। कई मामलों में यह भी तय है कि उस दूसरे धर्म के लोग भी अपने उपासना स्थल से इस जुलूस पर पत्थर फेंकेगे। लो जी, शुरू हो गया दंगा-फसाद। अब किसे महंगाई की सुध है, किसे बेरोजगारी की ग्लानि है, किसे आमदनी घटते जाने की चिंता है। एक ही साज, एक ही धुन…इधर के या उधर के, सारे नौजवान उसी धुन पर एक-दूसरे को देख लेने की धमकियां देते, मार खाते, मारते दिख रहे हैं।
नवउदारवाद के जटिल समीकरणों ने जिन वर्गों की क्रय शक्ति का बेहिसाब विस्तार किया है, जिन्हें अपने बच्चों के लिए किसी भी महंगी दर पर शिक्षा खरीदने की हैसियत है, जिनके लिए मोदी ब्रांड राजनीति मुफीद है। उनमें से कितने प्रतिशत के बच्चे इन धार्मिक जुलूसों में गाली-गलौज और मार-कुटाई करने के लिए शामिल होते हैं? महंगाई और बेरोजगारी…इन दोनों से जो वर्ग त्राहि-त्राहि कर रहा है, सबसे अधिक उसी के नौजवान धर्म का ठेका लेकर सड़कों पर आवारागर्दी करते दिख रहे हैं।
बैंकों का निजीकरण होने वाला है, एलआईसी की हिस्सेदारी बेची जानी है, सार्वजनिक संपत्तियों की बिक्री की लंबी लिस्ट तैयार हो गई होगी, नई शिक्षा नीति के कई प्रावधानों को आनन-फानन में लागू किया जाना है, महंगाई सरकार के काबू से बाहर है, जबकि बेरोजगारी उसके चिंतन के केंद्र में है ही नहीं। इससे निपटने का कोई प्रभावी विजन सत्ता के पास नहीं है। इसलिए जनता को हिंदू-मुसलमान में उलझा दिया गया है।