Wednesday, April 9, 2025
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पशु-पक्षियों के व्यवहार से भूकम्प का पूर्वानुमान

Ravivani 28


32 16तुर्की, सीरिया एवं अन्य देशों में आए हाल के भूकम्प समेत अनेक भूकम्पों के अध्ययन से उजागर होता है कि पशु-पक्षी इंसानों से ज्यादा संवेदनशील होते हैं। उन्हें गंभीर प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वाभास हो जाता है। पशु-पक्षी एवं अन्य जानवर ध्वनि, तापमान, स्पर्श, कम्पन्न एवं पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति इंसानों से ज्यादा संवेदनशील होते हैं। केलिफोर्निया विश्वविद्यालय की प्रो.लोनिश हर्ट के अध्ययन के अनुसार हाथी अपनी सूंड तथा पैरों से भूमि के अंदर की भूगर्भीय हलचल को भांप लेते हैं। हमारे देश के ‘वाडिया इंस्टीट्यूट आॅफ हिमालयन जियोलॉजी’ (देहरादून) के वैज्ञानिक डा. सुशील कुमार का भी मानना है कि पशु-पक्षियों में भूकम्प का पूर्व-आभास होने की क्षमता होती है। यह भी माना गया है कि जो पशु-पक्षी अपने बदले व्यवहार से भूकम्प का पूवार्नुमान दशार्ते हैं उनमें ‘अतीन्द्रिय बोध’ (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन) होता है।

हाल ही में 06 फरवरी को तुर्की और सीरिया समेत आसपास के कुछ देशों में आए विनाशकारी भूकम्प के पहले अलसुबह। भोर। तड़के पक्षियों ने घोसलों से निकलकर उड़ना शुरू कर दिया था। जल्दी उठने वाले वहां के कुछ लोगों ने उड़ते हुए पक्षियों के वीडियो बनाकर वायरल भी किए। कुछ लोगों ने कुतों के जोर-जोर से भौंकने की बात भी बतायी। भूकम्प को भांपने की पशु-पक्षियों की क्षमता एवं भविष्यवाणी के ऐतिहासिक अध्ययन में कई रोचक एवं अद्भुत जानकारियां मिलती हैं। वैसे तो दुनियां में कई देशों में भूकम्प के पूर्व पशु-पक्षियों एवं मछलियों के व्यवहार में आएबदलाव देखे गये हैं, परंतु जापान एवं चीन में इनकी अधिकता रही।

लगभग 373 ईसा-पूर्व रोम के हेलिके शहर में आएभयानक भूकम्प के पांच दिन पहले यहां के सांप, चूहे एवं कई प्रकार के कीट-पतंगे अपने रहवास से निकलकर भाग गये थे। 1835 में चिली में आएभूकम्प से पूर्व कुत्ते तेजी से भौंकने लगे थे एवं शहर छोड़कर चले गये थे। पक्षियों के कई झुंड भी तेज शोर करते पाये गये थे। 11 नवम्बर 1855 को जापान के ईटो शहर में आए भूकम्प के पूर्व कड़कड़ाती ठंड में सांप बिलों से तथा मुर्गे-मुर्गियां अपने दड़बों से बाहर आ गए थे। एक मछुआरे ने मछलियों को उत्तेजित हो लड़ते देखा था। ये सारी घटनाएं वहां की एक पुरानी पुस्तक ‘निहीन-जिशिन-शिरो’ में दर्ज हैं।

जापान के ही नोबी शहर में 1891 में आए भूकम्प के पूर्व कबूतर अशांत हो तेजी से इधर-उधर उड़ने लगे थे। उत्तर-पूर्वी जापान में 1896 में आए भूकम्प से पहले शार्क मछलियों का व्यवहार आक्रामक देखा गया था। 31 जुलाई 1917 को चीन के यूनान्न क्षेत्र में आए 6.5 तीव्रता के भूकम्प से पूर्व वहां की एक नदी के सुनसान किनारे पर असंख्य मछलियां एकत्र हो गर्इं थीं। जापान के प्रसिद्ध शहर टोकियो में 31 अगस्त 1923 को आए भूकम्प के एक दिन पूर्व वहां के शिक्षा मंत्रालय के होटल में ठहरे एक उच्च अधिकारी ने पास के तालाब में मछलियों को उछलते देखा था।

इसी प्रकार का मछलियों का उछलना-कूदना वहीं के शिक्षकों ने क्षेत्र के एक तालाब में 1933 में आए भूकम्प के पूर्व देखा था। चीन के होपेई क्षेत्र में 1966 में आए6.8 तीव्रता के भूकम्प की चेतावनी चूहों ने बिलों से बाहर निकलकर दे दी थी। यहीं के त्येनसिन क्षेत्र में 18 जुलाई 1969 को आए भूकम्प के पहले वहां के चिड़ीयाघर के जानवरों में भगदड़ मच गई थी। हिरण, भेड़ एवं घोड़े दौड़ने लगे थे एवं मुर्गे-मुर्गियां दड़बों से बाहर आकर वापस लौटने को तैयार नहीं थे। हमेशा उछल-कूद एवं मस्ती करने वाले बंदर 1972 में निकारागुआ में आए भूकम्प के पूर्व एकदम शांत हो गए थे।

चूहों, सांपों, गायों, घोड़ों तथा पक्षियों के व्यवहार में भूकम्प-पूर्व आने वाले व्यवहार के बदलाव में विश्वास कर वर्ष 1975 चीन के हीचिंग शहर को खाली करवाकर जनहानी से बचा लिया गया था। हमारे देश में 26 जनवरी 2001 को भुज (गुजरात) में आए भूकम्प के पूर्व भी कुत्तों तथा तोतों के व्यवहार में बदलाव देखा गया था। वहीं के एक निवासी रावजी भाई रोजाना सुबह कुत्तों को खिलाने जाते थे, परंतु उस दिन जब निश्चित स्थान पर पहुंचे तो केवल एक लंगड़ा कुत्ता वहां बैठा था। समुद्र के अंदर आए भूकम्प से पैदा सुनामी के पूर्व भी पशु-पक्षियों में संवेदनशीलता देखी गयी।

हमारे देश के नागपट्टनम जिले में स्थित वन्य-जीव अभयारण्य के काले हिरण एवं जंगली घोड़े दिसम्बर 2004 में आयी सुनामी के 20-25 मिनट पूर्व भागकर पहाड़ी पर चढ़ गए थे। सागर तट पर दिसम्बर में डेरा डालने वाले फ्लेमिंगो पक्षी भी ऊंचे स्थान पर पहुंच गए थे। थाईलैंड के फुकेट से कुछ दूरी पर स्थित खाओलाक स्थान पर सुनामी आने के एक घंटा पहले हाथी चिंघाड़ने लगे थे एवं महावत के निर्देश नहीं मान रहे थे।

भूकम्प के पूर्व पशु-पक्षियों के व्यवहार में आए बदलाव के संदर्भ में वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती के अंदर से आने वाले विशेष प्रकार के संकेतों को ये ग्रहण कर लेते हैं। यह भी संभव है कि भूकम्प के पूर्व पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्रों में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों को ये ग्रहण कर अपनी प्रतिक्रिया व्यवहार में बदलाव से व्यक्त करते हों। अमेरिकी भूगर्भ विज्ञानी प्रो. क्लारेल ऐलन का मानना है कि पशु-पक्षियों के व्यवहार में आएबदलाव से भूकम्प का पूवार्नुमान किया जा सकता है। इंडोनेशिया के बाली स्थित ‘ह्यूमन सोसायटी’ के प्रो. किम ग्रांट के अनुसार जीवों की पूर्वाभास की प्रवृत्ति उन्हें प्राकृतिक आपदाओं का संदेश देकर बचाती है।

पशु-पक्षी एवं अन्य जानवर ध्वनि, तापमान, स्पर्श, कम्पन्न एवं पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति इंसानों से ज्यादा संवेदनशील होते हैं। केलिफोर्निया विश्वविद्यालय की प्रो.लोनिश हर्ट के अध्ययन के अनुसार हाथी अपनी सूंड तथा पैरों से भूमि के अंदर की भूगर्भीय हलचल को भांप लेते हैं। हमारे देश के ‘वाडिया इंस्टीट्यूट आॅफ हिमालयन जियोलॉजी’ (देहरादून) के वैज्ञानिक डा. सुशील कुमार का भी मानना है कि पशु-पक्षियों में भूकम्प का पूर्व-आभास होने की क्षमता होती है। यह भी माना गया है कि जो पशु-पक्षी अपने बदले व्यवहार से भूकम्प का पूवार्नुमान दशार्ते हैं उनमें ‘अतीन्द्रिय बोध’ (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन) होता है।


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