जनवाणी संवाददाता |
सहारनपुर: जनपद की नक्काशीदार लकड़ी से बनी खूबसूरत कलाकृतियां दुनियाभर में भारतीय शिल्प की पहचान रही हैं, लेकिन अब यह पहचान लगातार जारी अंतरराष्ट्रीय तनावों के बीच बिखरती नजर आ रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध, ट्रंप सरकार के लगाए हुए टैरिफ, और ताज़ा ईरान-इजराइल तनाव ने इस उद्योग की कमर तोड़ दी है। सहारनपुर का लगभग 1000 करोड़ रुपये का निर्यात कारोबार आज गंभीर संकट से गुजर रहा है।

करीब 70 फीसदी निर्यात पूरी तरह से ठप हो चुका है, और इसका सीधा असर स्थानीय कारीगरों व मजदूरों पर पड़ा है, जिनके सामने रोज़गार का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। लकड़ी उद्योग से जुड़े निर्यातक रविन्द्र मिगलानी बताते हैं कि यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद से ही ऑर्डरों में भारी गिरावट आ गई थी, लेकिन अब ईरान-इजराइल संघर्ष ने तो पूरी सप्लाई चेन को तोड़ दिया है। शिपिंग रूट बदलने से माल भेजना महंगा हो गया है और कई देशों ने ऑर्डर रोक दिए हैं।
उद्योग से जुड़े एक अन्य निर्यातक शिबान हनफ़ी का कहना है कि पहले हमारा कारोबार आधा रह गया था, अब नए तनाव ने उसे और गिरा दिया है। अमेरिका, जो हमारा सबसे बड़ा खरीदार है, वहां से छह महीने से कोई नया ऑर्डर नहीं आया है।उन्होंने बताया कि बिजली कटौती, महंगी लकड़ी और बढ़ते उत्पादन खर्च ने भी कारीगरों को हाशिये पर ला दिया है।
ईंधन कीमतों में बढ़ोतरी और शिपिंग खर्च के कारण अब सहारनपुर की सुंदर नक्काशी अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगी पड़ रही है। खरीदारों की संख्या घट रही है, और इससे छोटे कारीगरों की रोज़ी-रोटी पर गहरी मार पड़ी है।
उद्योग से जुड़े लोगों ने केंद्र और राज्य सरकार से अपील की है कि उन्हें वित्तीय राहत, स्थिर बिजली आपूर्ति और कूटनीतिक हस्तक्षेप के जरिए सहारा दिया जाए, ताकि यह सदियों पुराना हुनर और उससे जुड़े हजारों परिवारों की आजीविका बचाई जा सके। यदि जल्दी कोई समाधान नहीं निकला तो सहारनपुर का यह ऐतिहासिक उद्योग एक इतिहास बन सकता है।