एक जहाज यात्रियों के साथ अपने गंतव्य की ओर बढ़ा जा रहा था। इसी बीच जहाज समुद्र तूफान में फंस गया और डूबने लगा। देखते-देखते सभी यात्री मौत की आगोश में समा गए। भाग्यवश एक व्यक्ति किसी तरह से बच गया और समुद्री लहरों साथ अचेतावस्था में किनारे पर पहुंचा गया। अगले दिन जब वह अचेतावस्था से बाहर आया तो उसने अपने आप को एक वीरान टापू पर पाया। व्यक्ति ईश्वर से मदद के लिए प्रार्थना करने लगा पर उसकी मदद के लिए कोई नही आया। अंतत: उसने इसे ही अपनी नियति मान, उसी वीरान टापू पर अपने रहने के लिए एक झोपड़ी बना, वहीं रहने लगा। एक दिन वह जब भोजन की तलाश से वापिस आया, तो उसने अपनी झोपड़ी को आग में धधकते हुए पाया। वो बहुत दुखी हुआ। ईश्वर को भला बुरा कहता हुआ व्यक्ति वही समुद्र के किनारे सो गया। रात्रि में तेज आवाज और शोर से उसकी आंख खुल गई। सामने एक बड़ा जहाज, धीरे-धीरे समुद्र के किनारे आकार रूक गया। व्यक्ति की खुशी का ठिकाना न रहा। वह भाग कर जहाज पर चढ़ गया। उसने जहाज से कैप्टन से पूछा, तुम्हें कैसे पता लगा की मैं इस वीरान टापू पर हूं? कैप्टन ने उत्तर दिया, हमें आग का संकेत मिला था। व्यक्ति ने अचरज से पूछा, पर मैंने तो कोई आग का संकेत अपने बचाव में नहीं भेजा। कैप्टन ने फिर कहा, हम आग के संकेत को देख कर ही यहां आएं। तभी व्यक्ति को अपनी झोपड़ी के जलने की घटना याद आई। वो समझ गया कि यह सभी उस योजना का भाग है, जो ईश्वर ने उसे बचाने के लिए बनाई। व्यक्ति ईश्वर का धन्यवाद करने लगा। हमारे ऊपर मुसीबत आते ही हमारा विश्वास डगमगाने लगता है, आशाहीन हो, ईश्वर को कोसने लगते हैं।