Wednesday, October 16, 2024
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सफेद मूसली की खेती के फायदे

KHETIBADI 1सफेद मूसली एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जो मुख्य रूप से भारत में उगाया जाता है। इसकी खेती विशेष रूप से आयुर्वेदिक दवाओं के लिए की जाती है क्योंकि इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। भारत में इसकी खेती मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश में ज्यादा की जाती है। किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते है।

सफेद मूसली के औषधीय गुण

सफेद मूसली एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जिसे आयुर्वेदिक चिकित्सा में कई समस्याओं के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके औषधीय गुण इसे विभिन्न स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।

इसके कुछ औषधीय गुण निम्नलिखित है:

-सफेद मूसली शरीर में हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। यह विशेष रूप से टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ाने में सहायक होता है और स्त्री हार्मोन असंतुलन को भी सुधारने में मदद करता है।

-इसमें एंटीआॅक्सीडेंट तत्व होते हैं जो शरीर को मुक्त कणों से होने वाली क्षति से बचाते हैं। यह उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने और सामान्य स्वास्थ्य बनाए रखने में सहायक होता है।

-सफेद मूसली में सूजन और दर्द को कम करने वाले गुण होते हैं, जो गठिया और अन्य सूजन संबंधी समस्याओं के इलाज में उपयोगी हो सकते हैं।

-यह पाचन तंत्र को सुधारने में मदद करता है और अपच, गैस, और अन्य पाचन समस्याओं से राहत प्रदान करता है।

सफेद मूसली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सफेद मुलसी की बुआई जून-जुलाई माह के 1-2 सप्ताह में की जाती है, जिसका कारण इन महीनों में प्राकृतिक वर्षा होती है अत: सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इसकी खेती के लिए गर्म तथा नम जैल्यु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती वैसे तो कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है परन्तु इसकी खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी जिसमें उचित जल निकासी की व्यवस्था हो उसे उत्तम मानी जाती है।

बुवाई के लिए भूमि की तैयारी

सफेद मुलसी की खेती के लिए जमीन को 2 – 3 बार 30 – 40 सेंटीमीटर तक जोत लेना चाहिए। जिससे की भूमि अच्छे से नरम और भुरभुरी हो जाती है। जुताई के समय खेत में 30 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिला दें।
बुवाई के लिए पौध की तैयारी

-सफेद मुलसी की खेती बीज तथा कंद दोनों से की जा सकती है। बीज द्वारा खेती के लिए 18 -20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

-बीज से बोई की गयी फसल में अंकुरण बहुत कम (14 -16 प्रतिशत) होता है। इसलिए इसकी खेती कंद लगाकर करनी चाहिए।

-कंद से पौधे तैयार करने के लिए स्वस्थ कंदो का प्रयोग करना चाहिए। कंदो या गाठों को रोपाई से पहले बीजोपचार द्वारा तैयार करना चाहिए। एक अकड़ में रोपाई के लिए लगभग 5 या 5.5 क्विंटल कंदो की आवश्यकता होती है।

सफेद मुलसी का रोपण

सफेद मुलसी के रोपण के लिए जून का प्रथम सप्ताह अच्छा माना जाता है या अगर हल्की वर्षा हो जाती है तो उस समय भी इसकी बुवाई कर लेनी चाहिए। सफेद मुलसी के पौधों को 10 इंच दूरी पर लगाना चाहिए। पौधों को जमीन में 1 इंच की गहराई तक लगाना चाहिए।

सिचाई एवं निराई

सफेद मुलसी एक खरीफ की फसल है इसलिए इसको अधिक सिंचाई की आवश्यता नहीं होती है। यदि लंबे समय तक वर्षा नहीं होती है तो 15 दिन के अंतराल पर फसल में सिंचाई अवश्य करें। फसल में खरपतवारों से बचाव के लिए समय समय निराई गुड़ाई के कार्य करते रहना चाहिए।

सफेद मुलसी की खुदाई

नवंबर माह में इसकी फसल तैयार हो जाती है। नवंबर में इसकी खुदाई की जाती है, प्रत्येक पौधे में लगभग 10 से 12 कंद प्राप्त होते हैं। खुदाई से पहले खेत में हल्की सिंचाई करें जिससे की आसानी से कंद मिट्टी से बहार निकाले जा सकें। प्रति एकड़ सूखे कंद की उपज 3 से 3.5 क्विंटल तक प्राप्त होती है। बाजार में इनका रेट 600 रूपए से 1500 रूपए प्रति किलो तक मिल जाता है।

मूसली की फसल में होने वाली प्रमुख बीमारियां

मूसली की फसल में प्राय: कोई विशेष बीमारी नहीं देखी गयी है अत: इसमें किसी प्रकार के कीटनाशकों का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि पौधे का कन्द भूमि में रहता है अत: इस फसल पर किन्हीं प्राकृतिक आपदाओं जैसे ओलावृष्टि आदि का प्रभाव भी नहीं हो पाता। फिर भी कोई रोग होने पर बायोपैकुनिल एवं बायोधन का पर्णीय छिड़काव करना चाहिए। यदि पानी के उचित निकास की व्यवस्था न हो तथा पौधे की जड़ों के पास पानी ज्यादा दिन तक खड़ा रहे, तो पैदावार पर प्रभाव पड़ सकता है तथा कन्द पतले हो सकते है। कवक की बीमारी के कारण सड़ सकते हैं इसलिए ट्राइकोडरमा 2 से 3 किग्रा प्रति एकड़ अथवा बायोनीमा 15 कि.ग्रा.प्रति एकड़ का भू प्रयोग करना उचित होगा। वैसे यह पौधा किसी प्रकार की बीमारी अथवा प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से लगभग मुक्त है।

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