Thursday, January 16, 2025
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कथा का रसपान करने से बढ़ती है श्रद्धा: अनिरुद्धाचार्य

  • कण-कण में रहते हैं भगवान भक्ति की है जरूरत

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: सदर भैंसाली मैदान में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन वृदांवन से पधारे कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने कथा की शुरुआत भागवत का पूजन कर व आरती कर की। पंडाल में कथा का रसपान करने के लिए भक्तों का ताता लगा रहा। महाराज ने कथा की शुरुआत अगस्त ऋषि की कहानी सुनाकर की। वहीं, उन्होंने कथा के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि कथा के रसपान से श्रद्धा बढ़ती है। इसलिए उसका रसपान हर व्यक्ति को करना चाहिए।

दूसरों की बाते कभी मत सहो, लेकिन अपनों की बात बर्दाश्त करना सीखो। इससे रिश्तों में मधुरता बनी रहेगी। अनिरुद्धाचार्य ने मां सती और उनके भस्म होने की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि सती माता के जहां-जहां अंक गिरे वहां शक्ति पीठ स्थापित हुए। टोटल 52 शक्तिपीठ है। वहीं सती माता पार्वती बनी और फिर से उनका विवाह शिवजी से हुआ। महाराज ने श्रोताओं से सवाल करते हुए कहा कि यदि आपको कोई भी भाषा सिखनी हो तो आप क्या करेंगे।

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उसके लिए आपको भाषा का ज्ञान लेना पढ़ेगा, जो भाषा आप नहीं पढ़ेंगे तो वह कैसे आएंगी। जैसे बिना पढ़े किसी भाषा का ज्ञान नहीं हो सकता है उसी प्रकार कण-कण में भगवान रहता है उसके लिए भक्ति की भाषा जरूरी है। इंसान को यदि भक्ति की भाषा का ज्ञान हो जाएगा तो यह सवाल ही खत्म हो जाएगा कि भगवान कहा है। समुद्र में क्या दिखता है पानी मगर एक बार मैं जब समुद्र देखने गया तो मुझे वहां नमक दिखाई दिया।

इसका मतलब है कि देखने का नजरिया क्या है। कोई भगवान को पत्थर में देखता है तो कोई खुद में भगवान को खोजता है। जैसे पानी की बूंद में नमक समाया हैं, उसी प्रकार सृष्टि के कण-कण में श्री कृष्ण समाए हैं। भक्ति करोगे तो प्रभु नजर आ जाएगा। भगवान को अनुभव करने के लिए मीरा का प्रेम चाहिए और भगवान को देखने के लिए सूरदास की आंखे चाहिए। अनिरुद्धाचार्य ने कहा कि माता और बहनों को तिलक जरूर लगाना चाहिए और भाव रखना चाहिए कि हमारे मांथे पर भगवान के चरण है।

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बच्चों के चोटी जरूर रखे और भोजन घर का करे न कि होटल का। किसी को अगर अपनी बुद्धि भ्रष्ट करानी है तो वह बाजार की रोटी खा ले। एक कहावत है जैसा खाया अन्य वैसा हुआ मन। आत्मा जाकर परमात्मा में मिल जाती हैं, लेकिन जो पाप हमने किए हैं, उनको कौन भोगता है। हमारे पास एक शरीर और होता है जिसे सूक्ष्म शरीर बोलते हैं, जोकि सपने में कही भी पहुंच जाता है। जब इंसान मरता है तो उसके सोते शरीर को चिता में जला देते हैं,

लेकिन सूक्ष्म शरीर को यमराज उठाकर ले जाते हैं फिर उसका फैसला होता है कि वह कैसे कर्म करके आया। 84 लाख योनिया है, जिनमें से सभी को बार-बार निकला होता है। यदि इन 84 लाख योनियों से कोई बचना चाहता है तो वह भगवान का भजन करे उससे बार-बार जन्म और मृत्यु के खेल से वह बच जाएगा, जो भगवान के आश्रित है काल उसका बाल भी बाका नहीं कर सकता। कथा के दौरान महाराज ने राम-सीता के मिलाप की कथा का रसपान भी श्रोताओं को कराया।

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