- सुबह की आरती के बाद औघड़नाथ और बिलेश्वर नाथ मंदिर में भोले का जलाभिषेक करने के लिए उमड़ी भीड़
- 40 से अधिक वालंटियर्स रहे सुरक्षा में मौजूद, श्रद्धालुओं ने बोले का व्रत रख किया जलाभिषेक
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: भगवान शिव की अराधना के लिए सबसे उत्तम सावन महीने का पहला सोमवार होता है। जिसके चलते भक्त भारी संख्या में शिव शंकर की अराधना करने के साथ ही उनका जलाभिषेक करते है। सावन के पहले सोमवार के चलते शहर के सभी शिवालयोें में भक्तोें का तांता लगा रहा। ऊं नम: शिवाय के जप के साथ भगवान शिव का जलाभिषेक किया गया।
लंबी लाइनों में खड़े होकर भक्तों ने भगवान औघड़नाथ के दर्शन का इंताजर किया। इस दौरान सभी शिवालयों में भक्तिमय वातावरण रहा। जलाभिषेक के लिए औघड़नाथ मंदिर में विशेष व्यवस्था की गई थी, जिसके बीच श्रद्धालुओं ने औघड़दानी का जलाभिषेक किया। मंदिर के मुख्य मार्ग पर रविवार की रात को ही बैरिकेडिंग कर दी गई थी।
पहले सोमवार की वजह से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचे।सुबह चार बजे से मंदिर में लाइन लगनी शुरू हो गई थी और सात बजे तक यह लाइन मंदिर के बाहर तक पहुंच गई। मंदिर परिसर में पुलिस के साथ ही सेना के जवान भी मौजूद रहे। लोगों पर सीसीटीवी कैमरे से भी नजर रखी गई।
बता दें कि भक्ति के साथ शिवभक्तों ने बाबा का जलाभिषेक किया। मंदिर में अनुशासन व्यवस्था बनाए रखने के लिए मंदिर समिति की ओर से अलग-अलग लाइनें लगवाई गई थी। मंदिर में 22 सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं, जिनसे पूरे मंदिर परिसर की सुरक्षा की जा रही है। इतना ही नहीं मंदिर समिति के 40 वालंटियर्स मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था में लगे हुए हैं।
मंदिर के के मुख्य पुजारी श्रीधर त्रिपाठी ने बताया कि पुलिस प्रशासन की ओर से पूरी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। भक्तों में काफी उत्साह है। सुबह चार बजे से ही बाबा के दरबार में भक्तों का आना शुरु हो गया था और 4:30 बजे की आरती के बाद से मंदिर परिसर में बम-बम भोले के जयकारे गूंजने लगे।
ऐतिहासिक महत्व रखता है औघड़नाथ मंदिर
वैसे तो हमारे देश के बड़े बड़े मंदिर किसी न किसी ऐतिहासिक घटना से जरुर जुड़े हुए हैं, लेकिन मेरठ का औघड़नाथ मंदिर देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। इतिहासकारों के अनुसार इसी मंदिर से देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बीच पड़े थे। कहा जाता है कि यह देश के पुराने शिव मंदिरों में शामिल है। इतना ही नहीं यह मंदिर मराठा का पूजा स्थल भी रहा है। कई प्रमुख पेशवा अपनी विजय यात्रा से पहले इस मंदिर में जाकर भगवान शिव की उपासना करते थे।
यहां स्थापित शिवलिंग की पूजा करने से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती थी। कहा जाता है कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है। शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। सावन और फाल्गुन माह में यहां बड़ी संख्या में शिव भक्त पहुंचकर कांवड़ का जल चढ़ाते हैं, जिसके लिए मंदिर में विशेष तैयारियां की जाती है। सावन माह में लोग रोज बाबा का जलाभिषेक भी करते है।