- मुंह या नाक के जरिये ऑक्सीजन देने से भी नहीं होता रोजा फासिद
जनवाणी संवाददाता |
देवबंद: रमजान में रोजों की हालत में आमतौर पर आदमी में यह भ्रम रहता है कि बीमारी की हालत में इंजेक्शन लगवाने या ग्लूकोज चढ़वाने से रोजा फासिद (खत्म) हो जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है। इंजेक्शन या ग्लूकोज से रोजा नहीं टूटता है। क्योंकि उनके जरिए कोई भी चीज मैदे तक नहीं पहुंचती है।
तंजीम अब्नाए दारुल उलूम देवबंद के अध्यक्ष मुफ्ती यादे इलाही कासमी ने पुस्तक अहसानुल फतावा का हवाला देते हुए बताया कि इंजेक्शन और ग्लूकोज के जरिये दी जाने वाली दवा या पानी को खाना पीना नहीं कहते हैं इसलिए इन से रोजा नहीं टूटता है। बताया कि जरूरत पड़ने पर रोजेदार मरीज को खून तक चढ़वाया जा सकता है। इतना ही नहीं जरूरत हो तो रोजे की हालत में दांत निकलवाया जा सकता है।
बशर्ते कि दांत से निकलने वाला खून पेट में न जाए। इसी तरह रोजे की हालत में खून भी टेस्ट कराया जा सकता है। अगर किसी मरीज को मुंह या नाक के जरिये ऑक्सीजन दी जाती है तो उससे भी रोजा फासिद नहीं होता है। मुफ्ती यादे इलाही ने स्पष्ट किया कि दमे के मरीजों को पाउडर की शक्ल में एक दवा दी जाती है और पिचकारी के माध्यम से उसे नाक में दाखिल किया जाता है, तो उससे रोजा टूट जाएगा। जबकि रोजे की हालत में दिल, पेट या जिस्म के किसी भी दूसरे हिस्से का ऑपरेशन कराने में कोई हर्ज नहीं है। एंडोस्कोपी इलाज से भी रोजे को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। क्योंकि इससे पाइप के जरिए कोई भी दवा अंदर दाखिल नहीं की गई बल्कि सिर्फ मुआयना किया गया है। किसी भी तरह के जख्मों पर मरहम लगाने से भी रोजा नहीं टूटता है।