जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: कांग्रेस आलाकमान ने ऐसी राजनीतिक बिसात बिछाई कि कांग्रेस में लंबे समय से चले आ रहे विरोधियों के सबसे बड़े धड़े जी-23 का एक तरीके से खात्मा ही हो गया। दरअसल कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खरगे के सहारे चली और बहुत हद तक उसमें सफलता भी पाई।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीते कुछ दिनों की यह ऐसी सबसे बड़ी चाल है, जिसमें पार्टी ने विरोध करने वाले नेताओं को एक ही झंडे के नीचे आकर सहमति से काम करने के लिए राजी किया, बल्कि आने वाले विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के लिए एक नई उम्मीद भी पैदा की है। यही नहीं पार्टी ने दलित चेहरे को राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर पेश करके न सिर्फ जातिगत समीकरण साधे हैं बल्कि दक्षिण भारत को भी एक तरीके से साधने की कोशिश की।
ग्रुप 23 के नेता बने प्रस्तावक
बीते कुछ दिनों से कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनावों को लेकर पूरे देश भर में गर्मागर्म बहस बनी रही। राजस्थान कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों की बगावत ने पार्टी आलाकमान को असमंजस में डाल दिया था। तमाम राजनीतिक उठापटक के बाद अशोक गहलोत को अध्यक्ष पद की रेस से ना सिर्फ बाहर किया गया, बल्कि एक नया नाम दिग्विजय सिंह का आनन-फानन में चर्चा में आ गया।
तय हुआ कि अब दिग्विजय सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे। नामांकन के आखिरी दिन विपक्ष के नेता और कांग्रेस के कद्दावर मंत्री रहे मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी आलाकमान ने समर्थन देते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का उम्मीदवार घोषित कर नामांकन करवा दिया। इसी नामांकन के साथ पार्टी ने एक साथ कई निशाने साध लिए।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इसमें सबसे बड़ा निशाना पार्टी के भीतर ही विरोध करने वाले ग्रुप 23 के नेताओं को प्रस्तावक बनाकर साधा। राजनीतिक विश्लेषक ओमप्रकाश चंदेल कहते हैं कि खरगे के प्रस्तावों की सूची में आप उन सभी प्रमुख नेताओं का नाम देखेंगे, जो पार्टी के भीतर रहकर न सिर्फ पार्टी की आलोचना करते थे बल्कि पार्टी नेतृत्व पर भी सवालिया निशान उठाते थे।
राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश चंदेल कहते हैं कि यह महज संयोग नहीं है कि सभी प्रमुख विरोध करने वाले नेताओं को मल्लिकार्जुन खरगे का प्रस्तावक बनाया गया हो। इसके कई मायने निकलते हैं। वे कहते हैं कि जो नेता पहले पार्टी नेतृत्व और आलाकमान पर सवालिया निशान उठाते थे, वही अब पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के प्रत्याशी का समर्थन कर रहे हैं। इससे स्पष्ट संदेश जाता है कि पार्टी के नाराज नेताओं की सहमति नए बनने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष में है।
चंदेल कहते हैं कि जब राष्ट्रीय अध्यक्ष में जी-23 के नेताओं की सहमति है, तो निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में जो अंदरूनी विवाद या विरोध खुलकर मीडिया में आता था या पब्लिक फोरम पर दिखाई देता था उस पर अंकुश लगेगा। इससे पार्टी की छवि तो सुधरेगी ही साथ में पार्टी का खिसकता हुआ जनाधार भी रुकेगा।
पहले ही बना देना था राष्ट्रीय अध्यक्ष
राजनीतिक विश्लेषक ओपी मिश्रा कहते हैं कि पार्टी के लिए यह एक तीर से कई निशाने साधने जैसा मौका है। जिसे पार्टी और पार्टी आलाकमान ने बहुत ही अच्छे तरीके से भुनाया है। मिश्रा कहते हैं कि मल्लिकार्जुन खरगे के प्रस्तावकों में उन नेताओं का नाम है जो कभी अपनी अलग राजनीतिक खिचड़ी पकाया करते थे। वे कहते हैं दरअसल मल्लिकार्जुन खरगे की विश्वसनीयता और पार्टी के दूसरे नेताओं को साथ लेकर चलने की राजनीतिक क्षमता ही उन्हें आगे रखती है।
वे कहते हैं कि कई बार ऐसा मौका आया जब पार्टी के ही नाराज नेताओं ने इस बात का समर्थन किया था कि मल्लिकार्जुन खरगे को बहुत पहले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाना चाहिए था। हालांकि उस वक्त चुनाव नहीं हुए और सोनिया गांधी का अंतरिम अध्यक्ष के तौर कार्यकाल बढ़ता गया। कांग्रेस के नाराज नेताओं से जुड़े जी-23 के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मल्लिकार्जुन खरगे के नाम से निश्चित तौर पर पार्टी ने अंदर हो रहे बड़े बिखराव को बचाने की कोशिश की है।
उनका कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ मल्लिकार्जुन खड़के पार्टी को निश्चित तौर पर मजबूत भी करेंगे और उन सभी समस्याओं का समाधान भी करेंगे जिसको लेकर पार्टी के नेता गाहे-बगाहे विरोध करते रहते थे। उक्त कांग्रेस के नेता का कहना है कि नेता विपक्ष के तौर पर मल्लिकार्जुन खरगे का व्यवहार सभी नेताओं को पहले से पता है कि किस तरीके से वह सब को लेकर चलते हैं।
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि पहले भी जब कई मसलों पर वरिष्ठ नेताओं की आलाकमान तक बात नहीं पहुंचती थी, तो मल्लिकार्जुन खरगे ही ऐसे व्यक्ति होते थे जो उन नेताओं की बात को न सिर्फ आलाकमान तक रखते थे, बल्कि उसका समाधान भी निकालते थे। राजनीतिक विश्लेषक भी मल्लिकार्जुन खरगे की विशेषता को भली भांति समझते हैं।
कर्नाटक के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक डी. दिनेश कुमार कहते हैं कि मल्लिकार्जुन खरगे के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी सिर्फ उनके राजनीतिक कद लिहाज से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि पार्टी के लिए भी बहुत अहम मानी जा रही है। उसकी वजह बताते हुए उनका कहना है कि मल्लिकार्जुन खरगे एक तो दलित समुदाय से आते हैं। कांग्रेस पार्टी का पूरा फोकस इस वक्त दक्षिण भारत में बेहतर और मजबूत स्थिति करने में लगा हुआ है।
वे कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी भी दक्षिण में अपनी जड़ें मजबूत कर रही है, ऐसे में कांग्रेस ने दक्षिण भारत से एक दलित समुदाय के व्यक्ति को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर निश्चित तौर पर बड़ा गेम खेला है। इसके अलावा उन नाराज नेताओं को पार्टी ने प्रस्तावक बनाकर यह जता दिया कि जो नाराज थे उन्हीं की पसंद का अब राष्ट्रीय अध्यक्ष बन रहा है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि मल्लिकार्जुन खरगे का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर आना निश्चित तौर पर पार्टी के लिए बेहतरीन और सकारात्मक कदम माना जा रहा है।