- जिन दवाओं को सरकार ने सस्ता किया, उसमें कर दिया खेल
- अब सस्ती दवाओं को लिखने से हो रहा परहेज
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: अगर आप जागरुक नहीं है और दवाओं के बाजार की जानकारी नहीं रखते हैं तो निश्चित रुप से निजी अस्पतालों में आपकी जेब इस सलीके से काट दी जाती है कि आपको पता भी नहीं चलता है। महंगी दवाओं के कारण आम इंसान अपने खास लोगों की जान तक नहीं बचा पाता है। इसको देखते हुए सरकार ने ड्रग प्राइज कंट्रोल एक्ट (डीपीसीए) के तहत तमाम जीवनरक्षक दवाओं को एमआरपी के बंधन से मुक्त कर उनके दाम फिक्स कर दिये थे।
दवा कंपनियों ने सरकार की महत्वाकांक्षी पहल को चूना लगाते हुए इन दवाओं में एक नया साल्ट जोड़ कर दाम आसमान पर पहुंचा दिये। आम इंसान इस खेल को समझ नहीं पा रहा है, जो इंजेक्शन पांच सौ रुपये तक में मिलना चाहिये उसे चार हजार रुपये तक में खुलकर बेचा जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि जिन महत्वपूर्ण दवाओं के दाम सरकार ने कम किये उनको कमीशन कम मिलने के चक्कर में डाक्टरों ने लिखना बंद कर दिया।
फेफड़ों में गंभीर संक्रमण को ठीक करने के लिये मेरोपेनम इंजेक्शन लगाया जाता है। इस इंजेक्शन की एमआरपी चार हजार रुपये से अधिक थी। सरकार ने इसे जीवन रक्षक दवाओं की श्रेणी में मानते हुए इसे डीपीसीए के तहत इसका दाम अधिकतम पांच सौ रुपये कर दिया था। इससे लोगों को राहत मिलने लगी। कई कंपनियां मेरोपेनम और साल्बेक्टम साल्ट के इंजेक्शन को विभिन्न नामों से पांच सौ रुपये तक में बेच रही है,
लेकिन एक कंपनी ने सरकारी योजना को चूना लगाते हुए इसमें डीटीएस साल्ट जोड़कर सरकार की सूची से बाहर कर चार हजार रुपये में बेचना शुरु कर दिया। हैरानी की बात यह है कि डाक्टर भी इसे ही परचे पर लिख कर दे रहे हैं। नर्सिंगहोम में मरीज भर्ती है और डाक्टरों ने तत्काल इस इंजेक्शन को लाने को कह दिया तो मरीज के परिजन क्या करें। उनके पास इतना समय नहीं रहता कि
दवाओं के बाजार में घूम कर इसी साल्ट के दूसरे इंजेक्शन खरीद कर ला सकें। अगर इंजेक्शन आ भी गया तो उसे डाक्टर लगाने से पहले 10 कमियां बताकर परिजन के मन में भ्रम पैदा कर देते हैं। इसी तरह एमोक्सी क्लोक्सिन कैप्सूल के दाम सरकार ने कम किये तो कंपनियां एक कदम आगे निकली और इसमें डाक्सीसाइक्लिन जोड़ मनमाने एमआरपी लगा दिया।
कोरोना काल में और गले के संक्रमण में खास असर करने वाली डाक्सी साइक्लिन के दाम कम किये गए तो कंपनी ने इसमें लैक्टो बैसियल साल्ट जोड़ कर सूची से बाहर करवा दिया और दाम मंहगे कर दिये। सरकार की योजनाओं को कमीशन के चक्कर में बर्बाद किया जा रहा है और इसमें एक रैकेट दवा कंपनी से लेकर डाक्टर शामिल हैं। अगर ऐसा नहीं है तो सीपीएम, सिपरोफलोक्सिन, जिंटेक और सिट्राजीन लिखनी कम कर दी गई
क्योंकि सरकार ने इन दवाओं के दाम कम दिये है। कंपनियों ने सिट्राजीन की जगह लियो सिट्राजीन करके दस बारह रुपये वाला गोलियों का पत्ता पचास से साठ रुपये में हो गया। गले के संक्रमण की टेट्रासाइक्लिन, जेंटा माइसिन, क्लोरोफेनाइल सीरप, सेप्टान डीएस आज भी बेहतरीन काम कर रही है लेकिन डाक्टरों के परचे से गायब होती जा रही है।
मेरठ ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री रजनीश कौशल का कहना है कि सरकार ने पांच हजार करोड़ के एनएचआरएम घोटाले को खोलने के लिये करोड़ों रुपये बर्बाद कर दिये, मंत्री से लेकर सीएमओ तक जेल गए, लेकिन हुआ कुछ नहीं। अगर सरकार दवा कंपनियों की मनमानी पर रोक लगाने के लिये कारगर कदम उठाये तो आम जनता के जेब से निकलने वाले करोड़ों रुपयों को लेकर राहत मिल सकती है क्योंकि एक ही साल्ट की दवाएं मनमाने दामों पर बेची जा रही है।