पशुओं में आने वाले ब्रूसीलोसिस रोग के प्रति पशुपालक सचेत रहिए। अगर इस बीमारी से पशु को बचाना है, तो ब्रूसीलोसिस का टीका लगवाएं और संतुलित आहार पशु को खिलाएं। पशुओं को गला सड़ा भोजन न खिलाएं। पशुओं के बांधने वाले स्थान पर रोजाना साफ-सफाई करवाएं। पशु पालन विभाग ने बताया कि यह रोग गाय, भैंस, भेड़ व बकरियों में गर्भावस्था के छह से सात तक आने की संभावना रहती है। इसमें पशु का गर्भपात हो जाता है।
जिससे पशुपालक की आर्थिक रूप से तो काफी हानि होती ही है, वहीं दूसरी ओर यह रोग पशुओं से आदमी को भी लग जाता है। पशुओं की प्रजनन क्षमता कम हो जाती है और पशु में बांझपन भी हो सकता है। संक्रमित रोग है एक पशु से दूसरे पशु में तेजी से फैलता है।
पशुओं के गर्भ से निकलने वाले मल, मूत्र से यह रोग दूसरों पशुओं में भी लग जाता है। एक बार रोग लगने के बाद बार-बार इस बीमारी से पशु ग्रस्त रहता है। इस बीमारी से संक्रमित पशु का इलाज करते समय पशु चिकित्सक को भी सावधान रहना जरूरी है। पशु के गर्भ से निकलने वाले मल, मूत्र की साफ सफाई करते समय नाक व मुंह पर मास्क या रूमाल जरूर बांधना चाहिए।
ये हैं लक्षण
इस बीमारी के बाद पशु चारा खाना छोड़ देता है। बुखार की शिकायत रहती है। पेट दर्द रहता है। पशुओं के घुटनों पर सूजन आ जाती है। पशु के शरीर से मल निकलना शुरू हो जाता है। नर पशुओं में अंडकोष की सूजन आ जाती है।
ऐसे करें बचाव व प्रबंधन
वेटरनरी सर्जन ने बताया कि स्वस्थ भैसों के कटड़े-कटड़ियों और गाय के बछड़े-बछड़ियों में चार से आठ माह की आयु में ब्रूसीलोसिस का टीकाकरण करवाना चाहिए। नए खरीदे गए पशुओं को ब्रूसीलोसिस संक्रमण की जांच करवाएं बिना अन्य स्वस्थ पशुओं के साथ कभी नहीं रखना चाहिए।
अगर किसी पशु का इस बीमारी से गर्भपात हुआ है तो उसे तुरंत फार्म के बाकी पशुओं से अलग कर देना चाहिए। रोगी पशु के दूध को नहीं पीना चाहिए। अगर पशु को गर्भपात हुआ है तो खून की जांच अवश्य करानी चाहिए।
पशु भी आ रहे बांझपन की चपेट में
खान-पान का असर केवल इंसानों पर ही नहीं बल्कि जानवरों पर भी पड़ रहा है। विटामिन ई की कमी से जानवरों में भी बांझपन की शिकायतें बढ़ रही हैं। चिकित्सकों का कहना है कि पशुओं के नियमित टीकाकरण से बचाव संभव है। विटामिन और मिनरल की कमी के कारण कैल्शियम और फास्फोरस की कमी हो जाती है।
कैल्शियम की कमी से जानवरों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। गर्मी के मौसम में पशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। नियमित टीकाकरण और देखभाल के अभाव में पशुओं में बांझपन की शिकायतें आना लाजमी है। इसके अलावा इसकी प्रमुख वजह है पशुओं में एनस्ट्रस (गर्मी में न आना) का न होना। मादा पशुओं को संतुलित आहार न मिलने से इनके शरीर में आवश्यक प्रोटीन की कमी हो जाती है, जिससे उनकी गभार्धारण की क्षमता कम हो जाती है।
चिकित्सक से लें उचित सलाह
पशु चिकित्सकों का कहना है कि खानपान में हुई लापरवाही के कारण शरीर में हारमोन का असंतुलन होने से एनस्ट्रस की समस्या जन्म लेती है। ग्रामीण परिवेश में संतुलित पशु आहार ही बांझपन के प्रमुख कारण है। इसके अलावा गर्भाशय की विकृति भी एनस्ट्रस का कारण होता है। इसके अलावा और भी कई बीमारियां है, जो अधिक समय तक पशुओं में रहने से उनकी प्रजनन क्षमता शून्य हो जाती है।
पशुओं का संतुलित आहार
पशुओं को भूसे के साथ जई, दलिया, हरा चारा भी देना चाहिए। साथ ही दिन में कम से कम तीन से चार बार पानी पिलाएं। दुधारू पशुओं को दो किलो पशुआहार, जिसमें भैंस को 400 व गाय को 500 ग्राम संतुलित पशु आहार देना चाहिए। वहीं बछड़े व बछियों को एक से डेढ़ किलो संतुलित पशु आहार रोजाना देना लाभदायक होता है।
कैसे करें पशुओं का बचाव
पशुओं को किसी प्रकार की शिकायत होने पर चिकित्सक से तत्काल संपर्क करें। दवा देने के लिए पटोरे का उपयोग करें, जिससे दवा की पूरी मात्रा उनके शरीर में जाए। समय-समय पर बांझपन चिकित्सा एवं गर्भ परीक्षण कराएं। पशुओं को खुरपका एवं मुंहपका का टीका अवश्य लगवाएं।
प्रस्तुति : एकता शर्मा