- दोपहर 2 बजकर 57 मिनट तक अमावस्या रही, जिस कारण अगले दिन भी उदय तिथि अमावस्या होने से नहीं हो सकी गोवर्धन पूजा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा का विधान है, हर साल दिवाली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हुआ इस बार 12 नवम्बर दीपावली के दूसरे दिन 13 नवम्बर को नहीं बल्कि 14 नंबर यानि आज गोवर्धन पूजा की जा रही है। दीपावली के दिन दोपहर 2 बजकर 57 मिनट तक अमावस्या रही जिसके कारण अगले दिन भी उदय तिथि अमावस्या होने से गोर्वधन पूजा नहीं की गई।
इस कारण दीपावली के बाद होने वाला अन्नकूट भी एक दिन बाद यानी आज मनाया जा रहा है। जनवाणी ने गोवर्धन पूजन को लेकर भारत ज्योतिष शोध संस्था के एस्ट्रो साइंटिस्ट भारत ज्ञान भूषण से बात की जिस पर उन्होंने बताया कि अन्नकूट पर्व पर 13 नवम्बर कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा दिन सोमवार को अपरान्ह 2:58 से प्रारंभ होकर दिन मंगलवार 14 नवम्बर को अपरान्ह 2:38 मिनट तक रहेगी।
इसलिए 14 नवंबर को गोवर्धन पूजन किया जा रहा है, क्योंकि जब भी कोई तिथि दोपहर बाद आती है। उस दिन वो तिथि प्रभावी नहीं होती अगले दिन सूर्य उदय के बाद प्रभावित होती है। इस अन्नकूट पर अनुराधा नक्षत्र तथा शोभन योग में चन्द्रमा वृश्चिक राशि में विचरण कर रहे होंगे तथा प्रारम्भ होगा कार्तिक शुक्ल पक्ष जिसमें बलिराज पूजा के साथ गोवर्धन पूजा होगी ऐसे शुभ योगों में अन्नकूट का पर्व मनाया जाना परमात्मा कृष्ण की कृपा तो दिलाता ही है
साथ ही गोवर्धन, गोपालन व गोरक्षा को प्रोत्साहित करते हुए यह सिद्ध करना कि भारतीय संस्कृति में गऊ सर्वोपरि है और इसकी गोबर व मूत्र भी बहुत सारी बीमारियों और विकिरणों तथा नकारात्मक प्रभावों को दूर करने में सक्षम है। वास्तव में गोवर्धन पूजा परमात्मा कृष्ण की साकार रूप की पूजा है। जो हमे धन, धान्य से पूर्ण तो करती ही है तथा साथ ही भारी प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा भी प्रदान करती है। लगभग 122 साल बाद इस बार गोवर्धन पर वही योग पड़ रहे हैं, जो 12 नवंबर 1901 को गोवर्धन पर पड़े थे।
ऐसे करें गोवर्धन पूजा
सम्भव हो तो गो के गोबर का गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बना कर गोवर्धन धारी भगवान कृष्ण की मूर्ति अथवा चित्र गोवर्धन पर्वत के नीचे अथवा गोवर्धन पर्वत के ऊपर स्थापित कर पूजित करें। 56 भोग के लिए या तो 56 प्रकार के व्यंजन होने चाहिए अथवा 56 स्थानों पर भोग प्रसाद रख कर गोवर्धन महराज की वह कथा कहनी चाहिए जिसमें इन्द्र के प्रकोप से प्रलयकारी वर्षा हुई तथा परमात्मा कृष्ण का साकार रूप गोवर्धन पर्वत ने गोकुल व बृजवासियों की रक्षा की।
इस प्रकार संकीर्तन करते हुए उस परमात्मा कृष्ण की महिमा का वर्णन करना चाहिए जिन्होंने 7 वर्ष की अवस्था में 7 दिन व 7 रात अपने बांये हाथ की सबसे छोटी उंगली में विराट गोवर्धन पर्वत को उठाये रखा और सभी लोगों की रक्षा की। इस प्रकार गोवर्धन कथा से आम जनता को तो ये सीख मिलती है
कि सच्ची निष्ठा से हम परमात्मा के शरणागत हो जाते है तो रक्षा का भार स्वत: ही परमात्मा अपने ऊपर ले लेतें है। दूसरी शिक्षा राजनेताओं, शासकों, प्रशासकों के लिए है कि परमसत्ता केवल परमात्मा पर ही है। वे परमात्मा के आधीन ही सत्ताधारी है। इसलिए सत्ता के मद में अहंकार पूर्ण निरंकुशता से बचें।
पूजन का शुभ समय
लाभामृत योग प्रात: 10:44 से 01:26 तक
शुभ योग 10:40 से 12:04 तक
अभिजीत मुहूर्त 11:43 से 12:26 तक
निषिद्ध राहू काल 2:46 से 4:07 तक
गोवर्धन पूजन का महत्व
गोवर्धन पूजा प्रकृति के पूजन का प्रतीक है भगवान श्रीकृष्ण ने सदियों पहले ही समझा दिया था कि इंसान तभी सुखी रह सकता है जब वह प्रकृति को प्रसन्न रखें। प्रकृति को ही परमात्मा मानें और परमात्मा के रूप में ही प्रकृति की पूजा करें, हर हाल में प्रकृति की रक्षा करें।