नीतू गुप्ता
जैसे हम कार चलाने के लिए प्रशिक्षण लेते हैं, किसी अच्छे पेशे (प्रोफेशन) में जाने का प्रशिक्षण लेते हैं, खाना पकाना और अन्य कई नए कामों को सीखने के लिए प्रशिक्षण लेते हैं पर जब हम बच्चों के अभिभावक बनते हैं तो इसके लिए प्रशिक्षण स्वाभाविक आ जाता है अपने माता पिता या दादा दादी से। यह काफी नहीं है। अभिभावकों को भी अच्छा अभिभावक बनने से पहले कुछ अच्छी पुस्तकें, मैगजीन्स आदि को पढ़ना चाहिए ताकि वे अपने बच्चों को प्रभावित कर सकें और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।
आधुनिक पीढ़ी के बच्चों का सही रूप से पालन पोषण करना और उन्हें प्रभावित करना बहुत कठिन होता जा रहा है। शायद इन्हीें कठिनाइयों के कारण आज की पीढ़ी कुछ गलत रास्तों पर चलने के लिए बाध्य होती जा रही है। यह सब देखते हुए माता-पिता को बहुत ध्यान से और नर्मी से बच्चों के साथ अपने संबंधों को संवारकर रखना आवश्यक होता जा रहा है।
जैसे हम कार चलाने के लिए प्रशिक्षण लेते हैं, किसी अच्छे पेशे (प्रोफेशन) में जाने का प्रशिक्षण लेते हैं, खाना पकाना और अन्य कई नए कामों को सीखने के लिए प्रशिक्षण लेते हैं पर जब हम बच्चों के अभिभावक बनते हैं तो इसके लिए प्रशिक्षण स्वाभाविक आ जाता है अपने माता पिता या दादा दादी से। यह काफी नहीं है। अभिभावकों को भी अच्छा अभिभावक बनने से पहले कुछ अच्छी पुस्तकें, मैगजीन्स आदि को पढ़ना चाहिए ताकि वे अपने बच्चों को प्रभावित कर सकें और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें, आइए जानें कुछ आवश्यक टिप्स जिन्हें अपने जीवन में व्यावहारिक रूप दे सकें।
-अपने बच्चों के लिए समय अवश्य निकालें। समय की मात्रा के साथ-साथ क्वालिटी पर भी ध्यान दें। यदि आप हमेशा कामों में व्यस्त रहेंगे तो बच्चा यह मान लेगा कि आपके पास उसके लिए समय ही नहीं है। ऐसा न होने दें।
-बच्चों से बातचीत करते समय स्थान को भी महत्त्व दें। टी वी देखते समय, खेलने जाते समय या स्कूल जाते समय उनसे कुछ काम की बातें या ज्ञान की बातें न करें क्योंकि यह स्थान या समय उनके लिए उपयुक्त नहीं है।
-बच्चों को अपने मन के विचार व्यक्त करने को प्रोत्साहित करें। उन्हें समझाएं कि वे अपने विचार ड्राइंग बना कर, कहानी के रूप में भी बता सकते हैं। आप स्वयं भी अपने विचारों को कभी कभी इन्हीें तरीकों से दे सकते हैं।
-अपने शब्दों के भावार्थ उनसे स्पष्ट करें कि आप क्या कहना चाहते हैं और उन्हें भी अपनी बात स्पष्ट कहने का अवसर दें।
-अपने बच्चे के शारीरिक विकास को देखते हुए उससे बात करें। यदि बच्चा छोटा है तो पास बैठकर उसकी आंखों में आंखें डालकर बात करें। बच्चा थोड़ा बड़ा है तो घुटनों के बल बैठ कर या झुककर उसे देखते हुए बात करें, बड़ा है तो सामने खड़े होकर बात करें ताकि बच्चा आपकी बात को सहजता से समझ सकें और आपके चेहरे के भावों को जान सकें।
-बच्चों की बातों को नकारें नहीं। हर बात के लिए ‘न’ न कहें। उनकी बात शांति से सुनें और अपनी राय भी उन्हें दे दें कि ऐसा कर सकते तो अधिक अच्छा रहता।
-बच्चों को बार-बार टोका टाकी न करें और न ही हस्तेक्षप करें। ऐसा करने से बच्चों का ध्यान नहीं लगता।
-बच्चों को ‘यह करो’ कहने के बजाए उन्हें इस तरीके से समझाएं कि अपने कमरे को ऐसे साफ रख सकते हैं, अपने खिलौनों, किताबों, कपड़ों को ऐसे संवार कर रख सकते हैं तो अधिक अच्छा लगता है।
-अपनी अपेक्षाओं के प्रति आशावादी रहें। बच्चों के साथ नर्मी से पेश आएं। उनकी भावनाओं को हर्ट न करें। ऐसा करने से आप बच्चों पर अधिक अच्छा प्रभाव डाल सकते हैं।