Sunday, October 6, 2024
- Advertisement -

नजरिया: हाइड्रोजन से खुलेंगे ऊर्जा समृद्धि के द्वार

अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
वह दिन दूर नहीं जब हाइड्रोजन ऊर्जा से चलने वाले वाहन देश भर में सड़कों पर दौड़ते नजर आएं। हाल ही में नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत ने फिक्की द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हाइड्रोजन ऊर्जा के विकास को लेकर केंद्र सरकार के प्रयासों की संक्षिप्त किंतु ठोस जानकारी दी है। बताया जा रहा है कि सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करने के लिए फेम योजना की तर्ज पर हाइड्रोजन आधारित प्रणालियों के लिए भी अभिनव कार्यक्रम संचालित करने पर विचार कर रही है। इन प्रयासों का उद्देश्य देश में हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था या ऊर्जा अनुपात में हाइड्रोजन एनर्जी की सहभागिता को बढ़ाना है। दरअसल, लगातार बढ़ते प्रदूषण के फलस्वरूप कार्बन उत्सर्जन में हो रही बेतहाशा वृद्धि की वजह से वैश्विक तापमान में औद्योगिक क्रांति के बाद से ही निरंतर वृद्धि हो रही है। पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआं पर्यावरण ही नहीं, मानवीय सभ्यता पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रहा है। इन परिस्थितियों में हाइड्रोजन ऊर्जा को भविष्य के र्इंधन के रूप में देखा जा रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में हाइड्रोजन की उपयोगिता को देखते हुए विश्व के कई विकसित और विकासशील देशों ने इस दिशा में प्रभावी कदम उठाए हैं। यहां तक की दुनिया की दिग्गज आॅटोमोबाइल कंपनियां अब हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाली कारों का आविष्कार कर रही हैं। सेमी हाइब्रिड और फुल हाइब्रिड कारों के नए वैरियंट से बाजार गुलजार हो रहे हैं। नेक्स्ट फ्यूल सेल तकनीक से चलने वाली कारें तो आॅटोमोबाइल इंडस्ट्री और परिवहन क्षेत्र के लिए अभूतपूर्व अविष्कार मानी जा रही हैं। दुनिया भर की आॅटोमोबाइल कंपनियां इस दिशा में व्यापक निवेश कर रही हैं।
दरअसल, हाइड्रोजन फ्यूल सेल हवा और पानी में किसी तरह के प्रदूषक तत्व नहीं छोड़ते हैं। इसमें प्रेरक शक्ति के लिए हाइड्रोजन का उपयोग होता है। एक बार टैंक फुल होने पर हाइड्रोजन कार 400 से 600 किलोमीटर तक चल सकती हैं। यही नहीं इन वाहनों को पांच से सात मिनट में रीफ्यूल भी किया जा सकता है। वहीं इलेक्ट्रिक कारों को पूरी तरह चार्ज होने में 12 घंटे से अधिक समय लग जाता है। सरल अर्थों में आप कह सकते हैं कि हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। इसमें हाइड्रोजन गैस और आॅक्सीजन का उपयोग होता है। खास बात यह है कि हाइड्रोजन के दहन से कोई प्रदूषण भी नहीं होता। भारत के संदर्भ में यदि बात करें तो हाइड्रोजन ऊर्जा हमारे लिए राजस्व की बचत का भी माध्यम बन सकती है। ऊर्जा के इस अक्षय स्रोत का जितना अधिक उपयोग बढ़ेगा, उसी अनुपात में 7 लाख करोड़ रुपये के तेल आयात को कम करने में मदद मिलेगी।
60 के दशक में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने नासा के चंद्रमा पर भेजे गए अपोलो मिशन में लिक्विड हाइड्रोजन फ्यूल का उपयोग अंतरिक्ष मिशन में कर विश्व जगत को हतप्रभ कर दिया। इस अंतरिक्ष अभियान में तरल हाइड्रोजन को रॉकेट फ्यूल के रूप में इस्तेमाल किया गया। स्पेस शटल के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स के जरिए उत्प्रेरक ऊर्जा उपलब्ध कराई जाती है। इससे पानी के रूप में स्वच्छ सह-उत्पाद (बाइ प्रॉडक्ट) तैयार होता है। इसका उपयोग अंतरिक्ष यात्री जल के रूप में भी करते हैं। हाइड्रोजन और आॅक्सीजन के मिश्रण से फ्यूल सेल्स इलेक्ट्रिसिटी हीट पैदा की जाती है। इन फ्यूल सेल की आप बैटरी से तुलना कर सकते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि बैटरी और हाइड्रोजन फ्यूल सेल दोनों समान स्वरूप में कार्य करती हैं। आज से पांच-छह दशक पूर्व इस बात पर बहस होती थी कि क्या हाइड्रोजन पेट्रोल और डीजल का स्थान ले लेगा। जर्मनी जैसे देश ने स्टील उत्पादन में कोयले की जगह पर हाइड्रोजन एनर्जी का सफलता पूर्वक प्रयोग किया है, वहां रेलवे परियोजनाओं में हाइड्रोजन ऊर्जा के अनुप्रयोग बढ़ रहे हैं। जबकि हाइड्रोजन बसें काफी समय से सड़कों पर सरपट दौड़ रही हैं। आर्थिक संगठनों के मुताबिक 2050 तक हाइड्रोजन बाजार 2.5 खरब डॉलर का होगा।
भारत के संदर्भ में बात करें तो हम विगत कुछ वर्षों में जिस तेजी से ऊर्जा के वैश्विक केंद्र बनकर उभरे हैं, उसे देखते हुए हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन की दिशा में प्रभावी कदम बढ़ाना होगा। 2006 में नेशनल हाइड्रोजन एनर्जी बोर्ड का गठन हुआ। बोर्ड ने एक रोडमैप तैयार किया था, जिसके मुताबिक 2020 तक हाईड्रोजन र्इंधन से चलने वाले 10 लाख वाहनों को सड़क पर दौड़ाने का लक्ष्य था। इस दिशा में काफी प्रगति हुई है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार ने 2.8 मिलियन डॉलर से अधिक का बजट भी हाइड्रोजन ऊर्जा के लिए तय किया है। भारत ऊर्जा से अंत्योदय के जिस मार्ग पर आगे बढ़ना चाहता है, वहां हाइड्रोजन ऊर्जा का आधार इसलिए भी बन सकती है क्योंकि हमारे यहां पशु अपशिष्ट और रिसाइकिल किए जाने योग्य कचरे की पर्याप्त उपलब्धता होती है, बशर्ते कचरे से मेथेन और गोबर से हाइड्रोजन तैयार करने की तकनीक को सस्ती बनाया जाए। हालांकि हाइड्रोजन एनर्जी के लिए किस प्रकार के बायोफ्यूल का इस्तेमाल करना है, इस पर पर्यावरण व पारिस्थितिक तंत्र की अनुकूलता के आधार पर विचार करना होगा। चावल से एथनॉल बनाने की प्रक्रिया के कुछ दुष्परिणाम भी सामने आए हैं। धान की अत्यधिक खेती भू-क्षरण, भू-जल स्तर के नीचे खिसकने और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करती है। सुरक्षा मानकों को पूरा करते हुए यदि हम इस दिशा में ठोस कदम उठा पाए तो पर्यावरण की समृद्धि के साथ भारत के लिए आर्थिक तरक्की का नया प्रवेश द्वार हाइड्रोजन इकोनॉमी के माध्यम से साकार होगा।

 


janwani feature desk sanvad photo

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Bijnor News: खाली प्लाट में बच्चें का शव मिला, सनसनी

जनवाणी संवाददाता | स्योहारा: नगर पंचायत सहसपुर में मौहल्ला चौधरियान...

Bijnor News: ट्रैक्टर ट्रॉली की चपेट में आकर एक व्यक्ति की मौत

जनवाणी संवाददाता | नगीना: ट्रैक्टर ट्रॉली की चपेट में आकर...

Shraddha Kapoor: श्रद्धा कपूर ने किया लहंगे में रैंप वॉक, फैंस ने कहा चलने में हो रही परेशानी

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img