Friday, December 13, 2024
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काश ! जिंदगी देने वाले के बारे में भी सोचते

  • कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पर दो दिन मिलते हैं बिछड़ने के लिए

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पर, कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पर दो दिन मिलते हैं, साथ-साथ चलते हैं, मिलकर बिछड़ते हैं! कुछ ऐसा हो चला है आज के युवाओं का प्यार। जिस दौर में आज सोसाइटी है, उसमें युवाओं में प्यार को लेकर कुछ ज्यादा ही अहमियत नजर आती है। एक स्थित ऐसी आ जाती है जब फॉल इन लव वाले युवाओं को सिवाए अपने प्यार के कुछ नहीं नजर आता। यह पराकाष्ठा की स्थिति होती है।

पराकाष्ठा मसलन जब कुछ भी कहने सुनने को नहीं रह जाता। पराकाष्ठा मतलब उसके बाद कुछ नहीं। न कुछ दिखाई देता है न सुझाई देता है। बस जो कुछ है बॉय फ्रेंड या फिर गर्ल फ्रेंड, लेकिन यह स्थित क्षणिक होती है, मन में आवेग सरीखे हालात होते हैं। यहां तक कि उस मां का ध्यान नहीं रहता जिसने दुनिया में आने से पहले नौ माह अपनी कोख में जन्म दिया। वो खुद गीले में सोई, लेकिन संतान को गीने में नहीं सोने दिया।

उस बाप का भी ख्याल नहीं रहता जो नए जूते पहनाने के लिए खुद पुरानी चप्पल को बार-बार मोची से मरम्मत कराकर पहनता रहता है। बाजार या मेले में जाता है तो अपने कंधे पर इसलिए बैठा लेता है ताकि मेला अच्छी तरह से देख सकें। जिन्हें खुश देखकर माता-पिता की आंखें खुशी से छलक आती हो, मौत का ख्याल मन में जाने से पहले एक बार उन माता-पिता के बारें में नहीं सोचते और यह भी नहीं सोचते कि हम नहीं रहेंगे तो वो भी जिंदा रहकर क्या करें।

गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड ऐसे हो गए कि जो ना मिले तो मौत को ही गले लगा लेंगे। ऐसा क्या होता है जो मौत को गले लगाने से पहले एक बार भी माता पिता का मन में ख्याल तक नहीं आता। यह जानते हुए भी कि हमारे बगैर माता-पिता की कोई दुनिया ही नहीं। हम खुद मौत को गले लगाकर जीते जी उन्हें मौत देने जा रहे हैं

जिन्होंने हमें जिंदगी दी। ऐसा नहीं कि केस बस इतने हैं यदि तलाश करने में लगेंगे तो ऐसे एक-दो नहीं 10-20 नहीं 50-100 नहीं अनगिनत केस मिल जाएंगे, जिनमें मौत को गले लगाने से पहले जिंदगी देने वालों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा जाता।

केस-1

बिहार के नवादा निवासी युवक सुभारती कालेज से बीबीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रहा था। इस युवक ने हॉस्टल की छत से कूदकर इसलिए जाने दे दी, क्योंकि उसकी गर्ल फ्रेंड ने बात नहीं की। उसका कॉल रिसिव नहीं किया। गर्ल फ्रेंड की फ्रेंड को सब कुछ बताया। बात कराने को कहा, लेकिन उसने भी पलट कर रिप्लाई नहीं दिया। बस फिर क्या था तय कर लिया की गर्ल फ्रेंड ही दुनिया है, वो माता पिता कुछ नहीं जिन्होंने जिंदगी दी।

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केस-2

बाइपास स्थित एमआइटी के एक छात्र ने हॉस्टल के रूम में फांसी लगाकर इसलिए जान दे दी, क्योंकि उसकी अटेंडेंस शार्ट थीं। परीक्षा में बैठा नहीं। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि फीस को लेकर भी प्रेशर में था। यह बात आसानी से गले नहीं उतरती कि जिन माता-पिता ने बिहार से यूपी के मेरठ में इतनी दूर पढ़ाई के लिए भेजा हो, वो फीस जमा करने में देरी करेंगे। खैर वजह कुछ भी रही हो, लेकिन इस युवक ने भी मौत को लगे लगाने से पहले काश जिंदगी देने वाले मां-बाप के बारे में सोचा होता। इस युवक के पिता जब शव को लेकर लौटे तो उनके मुंह से अनायास ही निकला यदि पता होता कि बेटे की लाश लेकर जाऊंगा तो कभी भी घर से दूर पढ़ाई के लिए नहीं भेजता।

केस-3

शहर मेरठ के लिसाड़ीगेट क्षेत्र निवासी एक मुस्लिम युवती ने जो सुभारती के हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही थी उसने भी बॉय फ्रंड के लिए जहर खाकर जान दे दी। एक बार भी नहीं सोचा कि जिन मां बाप ने उसकी पढ़ाई को लेकर न जाने क्या-क्या सपने देखे थे। अपने करीबी रिश्तेदारों में बेटी की पढ़ाई के बारे में बात कर जो फक्र महसूस करते होंगे, उन पर बेटी के मौत को गले लगाने की खबर पर क्या गुजरेगी। उसके पिता जब शव लेकर मेडिकल से निकले तो उन्होंने कहा कि पढ़ाई के बाद जिस बेटी के डाक्टर बनने और डोली में बैठाकर विदा करने का सपना देखा था, उसकी मैय्यत को कंधा देना पड़ेगा ऐसा कभी सोचा ना था।

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