हमारा देश भारत को देवी-देवताओं, संतों-ऋषियों व फकीरों की धरती कहा जाता है। हमारे देश में अलग अलग युग व काल में अनेकानेक देवी देवताओं, महापुरुषों, समाज सुधारक, युग प्रवर्तक व धर्म प्रवर्तकों ने जन्म लिया है। इन महापुरुषों द्वारा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हुए विश्व को मानवता का संदेश दिया गया है। ऐसे ही एक महान तपस्वी त्यागी तथा सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाते हुए पूरी मानवता को जीने की एक नई दिशा दिखाने वाले बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान गौतम बुद्ध का नाम भी सर्व प्रमुख है। ईसा पूर्व 563 में नेपाल के लुम्बिनी में जन्मे महात्मा बुद्ध का पूरे विश्व में अपना प्रभाव छोड़ना और उनके अनुयाइयों का विश्वव्यापी विस्तार इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये काफी है कि वे जनमानस पर अपनी असाधारण छाप छोड़ने वाले एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने पूरी इंसानियत को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने महत्वपूर्ण भाषणों में यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने संबोधन में भी महात्मा बुध की शिक्षाओं का जिक्र करते रहे हैं। नवंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हम उस देश के वासी हैं जिसने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं। वे अनेक बार बुद्ध की सत्य और अहिंसा की नीतियों का उल्लेख महत्वपूर्ण मंचों से करते रहे हैं। पिछले दिनों एक बार फिर प्रधानमंत्री ने ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में आयोजित 18वें प्रवासी भारतीय दिवस-2025 का उद्घाटन करते हुए बुद्ध की शिक्षाओं को याद किया और कहा कि यह देश अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह बता पाने में सक्षम है कि भविष्य ‘युद्ध’ में नहीं, बल्कि ‘बुद्ध’ में निहित है।
सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दुनिया को युद्ध के बजाये ‘बुद्ध’ के शांति अहिंसा के विचारों पर चलने व उसे आत्मसात करने का बार बार जो ‘उपदेश ‘ दिया जाता है स्वयं उनकी पार्टी के नेता उनके विभिन्न संगठनों से जुड़े लोग क्या ‘बुद्ध’ की बताई गई सत्य और अहिंसा की नीतियों का अनुसरण करते भी हैं या नहीं? क्या हमारे देश में समय समय पर धर्म,समुदाय व जातियों के नाम पर होने वाली हिंसा और इसे भड़काने वाले नेताओं को बुद्ध की सत्य और अहिंसा की शिक्षा से प्रेरित कहा जा सकता है? यह बुद्ध का ही तो कथन है कि ‘भले ही चाहे कितनी अच्छी बातों को पढ़ लें या उन्हें सुन लें उसका तब तक फायदा नहीं है जबतक हम खुद उस पर अमल नहीं करते।’ और यह भी बुद्ध ने ही कहा है कि बुराई करने वालों को हमेशा अपने पास रखो, क्योंकि वही तुम्हारी गलतियां तुम्हें बता सकते हैं। बुद्ध की इन शिक्षाओं के संदर्भ में बुराई करने वालों को तो छोड़िए सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले विपक्ष व मीडिया से सत्ता कैसे पेश आ रही है? क्या यही बुद्ध की नीतियों का अनुसरण है? मनमोहन सिंह जैसे काबिल व्यक्ति की खामोशी पर उन्हें ‘मौन मोहन’ जैसे नाम दे दिए गए और अपनी लफ़्फाजियों को ‘ज्ञान वर्षा’ का मरतबा दिया जाता है। जबकि बुद्ध का कथन है, जो लोग ज्यादा बोलते हैं वे सीखने की कोशिश नहीं करते जबकि समझदार व्यक्ति हमेशा निडर और धैर्यशाली होता है जो समय आने पर ही बोलता है। यह भी बुद्ध का कथन है कि दूसरों की आलोचना करने से पहले, खुद की आलोचना करो। परन्तु यहां तो गांधी-नेहरू परिवार व खास समुदाय को कोसने से ही फुर्सत नहीं मिलती। साथ ही स्व महिमामंडन इतना कि स्वयं को ‘अवतारी पुरुष’ बताने से भी नहीं चूकते? ऐसे राजनेताओं को बुद्ध का यह कथन जरूर याद रखना चाहिए, जो इर्ष्या और जलन की आग में तपते रहते है उन्हें कभी भी शांति और सच्चा सुख प्राप्त नहीं हो सकता है। और यह भी कि-आप तभी खुश रह सकते हैं, जब बीत गयी बातों को भुला देते है। परंतु यहां तो गड़े मुर्दे उखाड़ कर ही अपनी राजनीति के परचम लहराये जा रहे हैं? इसी तरह म्यांमार के कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु को उनके कट्टरपंथी भाषणों व उनके हिंसक तेवरों की वजह से जाना जाता है। स्वयं को महात्मा बुद्ध का अनुयायी ही नहीं बल्कि बौद्ध भिक्षु बताने वाला यह शख़्स केवल आग ही उगलता रहता है। भारत की बहुसंख्यवादी राजनीति की तर्ज पर यह भी अपने भाषणों के द्वारा बौद्ध समुदाय की भावना को यह कहकर भड़काने का काम करता है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक एक दिन देश भर में फैल जाएंगे। इसी कथित बौद्ध भिक्षु को लेकर टाइम मैगजीन ने अपने 1 जुलाई, 2013 के अंक में मुख्य पृष्ठ पर उसकी फोटो ‘दि फेस आॅफ बुद्धिस्ट टेरर’ या ‘बौद्ध आतंक का चेहरा’ जैसे शीर्षक के साथ प्रकाशित की थी? स्वयं को बौद्ध भिक्षु बताने वाले इसी आतंकी अशीन विराथु ने म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि यांगी ली को ‘कुतिया’ और ‘वेश्या’ कहकर संबोधित किया था। इस व्यक्ति पर अपने भाषणों के माध्यम से म्यांमार में लोगों को सताने की साजिश रचने व उनकी सामूहिक हत्या कराने का आरोप लगाया गया है। इस के उपदेशों में वैमनस्यता की बात होती है और इसका निशाना मुस्लिम समुदाय ही होता है। हालांकि बर्मा के अनेक बौद्ध भिक्षु वैमनस्य पूर्ण बयानों से नाखुश हैं। ऐसे भिक्षु कहते हैं कि उन्हें यह सब बहुत खराब लगता है। इस तरह के शब्दों का प्रयोग किसी बौद्ध भिक्षु को नहीं करना चाहिए।
इसी तरह पिछले दिनों श्रीलंका में कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु गालागोडाटे ज्ञान सारा को इस्लाम धर्म का अपमान करने और धार्मिक नफरत फैलाने के आरोप में नौ महीने की जेल की सजा सुनाई गई है। 2018 में भी ज्ञान सारा को एक आपराधिक मामले में छह साल की सजा सुनाई गई थी। दरअसल महात्मा बुद्ध के विचारों की बात करना ही पर्याप्त नहीं बल्कि इन्हें अपने ‘आचार’ व व्यवहार में लाना भी उतना ही जरूरी है।