सुनी हुई बात को तुरंत सही नहीं मान लेना चाहिए। तुरंत सही मान लेने से कई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। बात गलत हो सकती है। हमारी यह आदत बने कि हम सुनी हुई बात पर मनन करें। मनन के लिए लंबा समय लग सकता है। किसी बात पर दस दिन का समय भी लग सकता है, किंतु उसके बाद जो निष्कर्ष और निर्णय निकलेगा, वह सही होगा, यह आशा की जा सकती है। इसलिए शांति के लिए बहुत जरूरी है कि हम तत्काल कोई निर्णय बिना विचारे न लें। मन के प्रतिकूल कोई बात हुई।
आप उस समय शांत रहें, तत्काल उस पर अपनी प्रतिक्रिया न दें। उस पर दो-चार दिन या जितना अपेक्षित हो, चिंतन-मनन कर लें। फिर आप देखेंगे कि आपका फैसला बिल्कुल सही होगा। सोचने के बाद जो प्रतिकार होगा, वह अच्छा ही होगा। एक आदमी दूसरे आदमी को गंदी गालियां दे रहा था। कई तरह के आरोप लगा रहा था, किंतु सामने वाला चुपचाप सुनता जा रहा था। उसकी ओर से कोई प्रतिकार नहीं हो रहा था। पास से गुजरते हुए आदमी ने कहा, ‘बिल्कुल जड़ हो गया क्या? देख नहीं रहे, यह गाली दे रहा है और तुम चुप बैठे हो। कोई और होता तो भिड़ गया होता।’ मौन साधे हुए व्यक्ति ने कहा, ‘मैं इसकी बात सुन रहा हूं और सोच रहा हूं कि यह जो आरोप लगा रहा है, क्या उसमें आंशिक सच्चाई भी है?
अगर थोड़ी सच्चाई है भी तो यह मेरी कमी होगी और अगर इसके आरोप मिथ्या हैं, तो बात ही समाप्त। फिर इसकी गाली और इसका आरोप मुझ पर लागू ही नहीं होगा। मैं निर्दोष हूं तो इसके आरोप से मेरा क्या बिगड़ने वाला है?’ किसी भी बात पर सोचने पर नतीजा सार्थक और सकारात्मक ही निकलता है। यह बात हमें अपनी जीवन में उतार लेने की जरूरत है।