नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। सनातन धर्म में फाल्गुन माह को रंगों का महीना कहा जाता है। इस माह में पड़ने वाली एकादशी को रंगभरी एकादशी कहते है। रंगभरी एकादशी एक अन्य नाम आमलकी एकादशी से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस वर्ष यह व्रत 03 मार्च 2023 (शुक्रवार) को रखा जाएगा।
रंगभरी एकादशी का शुभ योग
सौभाग्य योग सुबह से शाम 6 बजकर 45 मिनट तक और सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह से दोपहर के 3 बजकर 43 मिनट तक रहगा।
रंगभरी एकादशी व्रत की पूजा विधि
फाल्गुन शुक्ल ग्यारस यानी रंगभरी एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होने के बाद पूजा स्थान में भगवान शिवजी और माता गौरी की मूर्ति स्थापित की जाती हैं। फिर शिव-पार्वती जी की अबीर, गुलाल, पुष्प, गंध, अक्षत, धूप, बेलपत्र आदि से मनपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है, तत्पश्चात माता गौरी और भगवान शिव को रंग-गुलाल अर्पित करके माता गौरी का पूजन करते समय उन्हें श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है। एक शुद्ध घी का दीया जला कर, कर्पूर के साथ आरती करें।
रंगभरी एकादशी का महत्व
काशी, जो कि भगवान शिव की नगरी हैं, वहां के लोगों के लिए रंगभरी एकादशी का दिन बहुत खास होता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार करके उनको दूल्हे के रूप में सजा कर गाजे-बाजे के साथ नाचते हुए बाबा विश्वनाथ जी का माता गौरा के साथ गौना कराया जाता है। इसी के साथ पहली बार माता पार्वती ससुराल के लिए प्रस्थान करती हैं और काशी में रंगोत्सव का आरंभ हो जाता है।
रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता गौरा को विवाह के बाद पहली बार काशी लाए थे। इस उपलक्ष्य में भोलेनाथ ने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल उड़ाते हुए खुशियां मनाई थी। यह पर्व खुशहाल जीवन के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है।
तब से हर वर्ष काशी/ बनारस में भोलेनाथ माता पार्वती के साथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं। फिर माता गौरा का गौना कराया जाता है, तभी से रंगभरी एकादशी पर काशी में बाबा विश्वनाथ का यह पर्व बहुत ही खास तरीके से मनाया जाता है।