Saturday, April 20, 2024
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घुटनों का दर्द आयुर्वेदिक उपचार

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डा. अंजू जी ममतानी |

आस्टियोआर्थराइटिस जोड़ों की बीमारी है जिसे हम जोड़ों का दर्द या संधिवान कह सकते हैं। जोड़ों के दर्द के इलाज के पहले आवश्यक है हम जोड़ या संधि के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करें।

जोड़ की रचना

दो संधियों के बीच की रचना जोड़ कहलाती है। यह शरीर की सभी एच्छिक क्रि याओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जोड़ कुछ लिगामेंट के द्वारा स्थायित्व प्राप्त करता है। यह लिगामेंट 2 प्रकार के होती हैं, अग्र व पश्चिम। घुटना मुख्यत: जांघ व पैर के हड्डी के बीच की रचना है। घुटने में मेनीस्कस नामक रचना होती है। यह रचना पैर को धक्के लगने से बचाती है अर्थात शॉकर का कार्य करती है। दो हड़्डियों के अंतिम छोर पर कार्टिलेज होता है जिसमें से एक स्राव स्रावित होता है जो फिसलन निर्माण करता है व दो हड्डियों को परस्पर घिसने नहीं देता व जोड़ का पोषण करता है और जोड़ को मजबूती देता है।

न्यूयार्क के प्रसिद्ध अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. जोसेफ मार्केसन का कहना है कि यदि आपकी आयु लंबी है तो जीवन में कभी न कभी आपको जोड़ों के दर्द का अवश्य अनुभव होगा। यही कारण है कि आज लाखों लोग जोड़ों के दर्द से परेशान है। उसमें भी घुटने का दर्द काफी रोगियों में पाया जाता है। सर्वेक्षण से पता चला है कि घुटने के दर्द से हर पांचवां भारतीय पीड़ित है।

आस्टियोआर्थराइटिस के कारण

किन्हीं कारणों से लिगामेंटस, कार्टिलेज और मेनिस्कस में विकृति होने पर व्यक्ति को जोड़ में दर्द, सूजन व अकड़न होती है जिनके कारण निम्नलिखित हैं।

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे कार्टिलेज का प्राकृत स्राव कम होकर चिकनाई की कमतरता से जोड़ घिसने लगते हैं। इसी विकृति को आस्टियोआर्थराइटिस कहते हैं।

शरीर का वजन बढ़ने से जोड़ पर ज्यादा दबाव पड़कर कार्टिलेज घिसने के फलस्वरूप वेदना होती है।

गलत उठने-बैठने की आदतों से आस्टियोआर्थराइटिस की संभावना होती है।

शरीर में विषैले पदार्थों के संचय से जोड़ खराब होने की संभावना होती है जैसे शरीर में यूरिक एसिड, कोलेस्ट्राल, शुगर, वात प्रकोप से।

  • व्यायाम न करना व ज्यादा समय तक लगातार खड़े रहना।
  • भोजन में विटामिन ए, डी व पौष्टिक पदार्थों की कमी से।
  • वृद्धावस्था में जोड़ों की कमजोरी के कारण।

आयुर्वेदानुसार इसे जानुशूल कहा है। इसमें वात दोष की प्रधानता कही है। इसका कारण वातवर्धक आहार-विहार कहा है। यह अधिकांशत: वृद्धावस्था में पाया जानेवाला विकार है पर युवावस्था में भी पाया जाता है। आयुर्वेद में घुटने के जोड़ की बीमारी का वर्णन मिलता है। यह व्याधि क्रोष्टुक शीर्ष के नाम से जानी जाती है। क्रोष्टुक अर्थात गीदड़ शीर्ष अर्थात सिर। इसमें गीदड़ के सिर के समान घुटने में सूजन आती है। यह किसी एक घुटने में होती है।

घुटनों के दर्द के लक्षण

इसमें मुख्यत: घुटने में तीव्र दर्द, उठने-बैठने चलने में वेदना की अनुभूति, जकड़न, कठोरता, जड़ता, एक प्रकार का खिंचाव आता है। सबसे मुख्य लक्षण घुटने में सूजन होता है। हाथ का स्पर्श भी असहनीय, कभी-कभी चलते व उठते समय घुटने से कट-कट आवाज भी आती है।

इस तरह कुल मिलाकर मामूली सा दिखने वाला घुटने का दर्द मनुष्य के दैनिक कार्यों में काफी अड़चन पैदा करता है। मनुष्य विवश हो जाता है। एक बार जमीन में बैठने पर उठने में असमर्थ होता है। घुटना मोड़ने में तकलीफ होती है। इस रोग के उग्र रूप धारण करने पर रोगी को जलन भी महसूस होती है, नींद न आना, दर्द की वजह से तनावग्रस्त होना, लंगड़ाकर चलना, पैरों में कमजोरी महसूस होना, पालथी मारकर बैठने में रोगी असमर्थ होता है।

कभी-कभी लंबर स्पांडिलाइटिस के रुग्ण में भी घुटनों का दर्द होता है। इसमें चिकित्सक व रुग्णों को संदेह होता है कि जानुगत आस्टियोआर्थराइटिस है परंतु लंबर स्पांडिलाइटिस में इसके साथ कमरदर्द, खिंचाव, भारीपन इत्यादि लक्षण मिलते हैं।

चिकित्सा

घुटने के दर्द या आस्टियोआर्थराइटिस की चिकित्सा करते समय मुख्यत: स्थानिक चिकित्सा की जाती है। स्थानिक चिकित्सा में जिस घुटने में दर्द है, उस घुटने की नित्य सुबह-शाम महानारायण तेल की हल्के हाथ से वतुर्लाकार 15-20 मिनट मालिश करके गर्म पानी की थैली से करना चाहिए।

पंचकर्म के अंतर्गत हर माह में 5-6 दिन बस्ति कर्म करना चाहिए जिससे शरीर के शोधन के साथ ही वात दोष का शमन होता है। फलस्वरूप दर्द व सूजन से भी राहत मिलती है। घुटनों के दर्द में निर्गुण्डयादि क्वाथ की धारा व पिंडस्वेद के अच्छे परिणाम मिलते हैं। यह चिकित्सा हास्पिटल में 8-21 दिन के कोर्स में की जाती है। घुटने के दर्द या आस्टियोआर्थराइटिस में कुछ निम्नलिखित घरेलू औषधि देते हैं।

  • घुटनों का दर्द होने पर वातकेशरी वटी 1 सुबह-शाम, दशमूलारिष्ट व महारास्नादि 2-2 चम्मच के साथ सुबह-शाम 3-4 माह तक सेवन करें।
  • घुटनों में सूजन व दर्द होने पर पुनर्नवास 2 चम्मच उक्त औषधि के साथ सेवन करें।
  • वृद्धावस्था या डिजेनरेटिव परिवर्तन आने पर अश्वगंधारिष्ट 2 चम्मच सुबह शाम लें व साथ में च्यवनप्राश 2 चम्मच सुबह-रात नियमित लें।

औषधियों से आराम न होने पर रोगी को आॅपरेशन की सलाह दी जाती हैं परंतु यह गारंटी नहीं रहती कि मरीज पूर्ववत दिनचर्या व्यतीत करेगा क्योंकि मुंबई के अति आधुनिक सुविधावाले जसलोक हॉस्पिटल में इस प्रकार के सैंकड़ों आॅपरेशन कर चुके डॉ. तन्ना का कथन है कि इस तरह के आॅपरेशन के पश्चात रोगी को जमीन पर न बैठने की सलाह दी जाती है और ऐसे में यदि मरीज ने बात न मानी तो दुबारा आॅपरेशन करवाना पड़ता है।

आखिर रोगी कब तक आॅपरेशन करवाएगा। इससे बेहतर है खान-पान पर नियंत्रण, नियमित व्यायाम, औषधि, नेचरोपैथी व पंचकर्म से धीरे-धीरे इस तकलीफ से छुटकारा पाया जाए।


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