- बाजार का रेट 52 सौ, खरीद की गयी 10 हजार से ज्यादा के रेट पर
- केंद्र के निर्देश पर सोडियम लाइटें हटाकर 22 सौ एलईडी लाइटें हैं लगायी
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: एलईडी खरीद के नाम पर कैंट बोर्ड में करीब सवा करोड़ के घोटाले के अंजाम दिए जाने की चर्चा है। कारगुजारियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 52 सौ रुपये कीमत वाली एलईडी लाइटों की खरीद 10 हजार से ज्यादा की कीमत पर की गयीं।
इस पूरी खरीद फरोख्त में करीब सवा करोड़ के घोटाले का करंट अफसरों ने ही कैंट बोर्ड को लगा दिया। इस घोटाले की गंगा में बोर्ड के सदस्यों कुछ सदस्यों ने भी जमकर गोते लगाए। नौबत यही तक नहीं रही। इस काम का जिस शख्स को ठेका दिया गया था, उसके साथ रखरखाव का भी एग्रीमेंट हुआ था, लेकिन बजाय ठेकेदार के कैंट बोर्ड का स्टाफ ही इन लाइटों का रखरखाव कर रहा है।
मसलन कैंट का स्टाफ लाइटों के रखरखाव के नाम पर ठेकेदार की बेगार करने में लगा है। कहा जा रहा है कि घोटाले की गंगा में सभी के हाथ सने होने की वजह से कोई भी इसको लेकर मुंह नहीं खोल रहा है।
ये है पूरा मामला
साल 2017 में रक्षा मंत्रालय के एक पत्र के बाद मेरठ छावनी में लगी सभी सोडियम लाइटों को एलईडी लाइटों से बदलने के निर्देश दिए गए थे। दरअसल सोडियम लाइटों में बिजली की खपत ज्यादा होती है। उसने के अनुपात में एलईडी लाइटों में बिजली खप्त बहुतम कम है तथा रखरखाव भी आसान है। जिसके चलते एलईडी लाइटें बदलने का निर्णय लिया गया।
बाजार रेट से डबल में क्रय की गयीं
सुनने में आया है कि सोडियम लाइटों को बदलने में जो एलईडी लाइटें क्रय की गयीं वो दोगुने दामों में क्रय की गयीं। जो एलईडी लाइटें साल 2917 में मंत्रालय के पत्र के बाद क्रय किए जाने का निर्णय लिया गया था उस वक्त उनका बाजारी मूल्य 52 सौ रुपये बताया जाता है, जबकि उनको क्रय किया गया 10 हजार प्रति एलईडी के हिसाब से। यानि की दोगुने दामों पर लाइटें क्रय की गयीं।
अफसरों व सदस्यों की भूमिका संदिग्ध
एलईडी लाइट के इस घोटाले में केवल खरीद से जुडे सदस्यों की भूमिका पर ही सवाल नहीं खडेÞ किए जा रहे हैं बल्कि करीब सवा करोड़ के घोटाले का कारण बने इस ठेके को बोर्ड बैठक में पास कराने वाले कुछ सदस्यों की भूमिका भी संदिग्ध है। दरअसल इस प्रकार का कोई भी ठेका बोर्ड बैठक में स्वीकृति के बार ही दिया जा सकता है। इसके लिए केवल अफसर ही नहीं बोर्ड के कुछ सदस्यों की भूमिका भी जांच के दायरे में आती है।
ठेकेदार के बजाय कैंट बोर्ड का रखरखाव
जो एलईडी लाइटें लगायी गयी हैं उनके रखरखाव का जिम्मा भी ठेकेदार का ही था। ये बात बाकायदा एग्रीमेंट में उल्लेख की गयी है, लेकिन सुना गया है कि बजाय ठेकेदार के एलईडी का रखखाव कैंट बोर्ड का स्टाफ करता है।
कैंट बोर्ड से प्रतिदिन स्काई लिफ्ट के लिए बीस लीटर तेल भी दिया जाता है। चालक के अलावा दो इलेक्ट्रिशियन भी स्काई लिफ्ट के साथ चलते हैं। काम तो ये ठेकेदार की एवजी में करते हैं लेकिन इनका वेतन कैंट बोर्ड के खजाने से रिलीज किया जाता है।
सिक्योरिटी राशि रिलीज कराने में पांच लाख का सौदा
एलईडी लाइट के रखरखाव के ठेकेदार की लगभग 20 लाख की रकम बतौर सिक्योरिटी मनी के रूप में कैंट बोर्ड में जमा है। इस रकम को रिलीज कराने के नाम पर करीब पांच लाख रुपये में सौदा हुआ है। सौदे के बाद यह रकम हासिल भी कर ली गयी है। हालांकि ये बात अलग है कि सिक्योरिटी मनी रिलीज नहीं करायी जा सकी है।
बड़ा सवाल: क्या जांच कराएंगे बोर्ड अध्यक्ष, सीईओ
एलईडी खरीद में घोटाले की तह तक जाने के क्या कैंट बोर्ड अध्यक्ष व सीईओ फाइलों पर जमी धूल को साफ कराएंगे। ये बात इसलिए पूछी जा रही है क्योंकि एलईडी खरीद में घोटाले का आरोप लगाते हुए एक सामाजिक संस्था की ओर से रक्षा मंत्री तथा रक्षा सचिव को कुछ साक्ष्यों के साथ शिकायत भेजी गयी। उसके आधार पर जनवाणी पूछता है कि क्या कैंट बोर्ड अध्यक्ष व सीईओ एलईडी खरीद घोटाले की जांच कराएंगे।