Wednesday, April 17, 2024
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खोया भी बहुत, पाया भी बहुत

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KRISHNA PRATAP SINGHहैरां हूं दिल को रोऊं या पीटू जिगर को मैं!…ज्यादातर वक्त हमारी सासें दुश्वार किए रखकर अस्ताचल की ओर जा रहे वर्ष 2021 को जब भी और जैसे भी याद किया जाए, मिर्जा गालिब की यह पंक्ति जरूर याद आएगी। यह वर्ष आया तो कोरोना की पहली लहर के दिये जख्म हरे थे। भले ही उसका त्रास कम हो गया था, दूसरी लहर के अंदेशे इतने घने थे कि इसके आने की खुशी महसूस होने से पहले ही बंदिशों की कैद में चली गई थी और अब यह जा रहा है, 2022 की अगवानी की खुशी नए वैरिएंट ओमिक्रान के साए में गुम है। ठीक है कि इस साल हमने सुरसा जैसी दूसरी लहर को, मध्य फरवरी से शुरू हुए जिसके चार महीने पहली लहर के पूरे साल पर भारी थे, शिकस्त दी, लेकिन उसके हाथों भारी जनहानि के बीच अस्पतालों के अंदर-बाहर जिंदगी की मौत से छिड़ी जंग के बीच शवदाहगृहों व नदियों के तटों पर दिखे ‘आदमी को ही मयस्सर नहीं इंसां होना’ वाले हालात अभी भूल भी नहीं पाए हैं कि तीसरी लहर डराने लग गई है। पिछले साल से ही तीन नए कृषि कानूनों को लेकर राजधानी की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों को गत एक दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा विवादित कानूनों की वापसी के लिए संसद द्वारा पारित विधेयक पर मुहर लगा देने और अन्य मांगों पर केंद्र सरकार से लिखित आश्वासन मिल जाने के बाद खुश-खुश अपने घरों व खेतों को लौटते देखने की खुशी भी अल्पकालिक सिद्ध हुई है। जैसे उनके आंदोलन में सात सौ से ज्यादा किसानों की जानें जाने और देश को गत तीस नवंबर तक हुआ साठ हजार करोड़ रुपयों से ज्यादा का नुकसान काफी न हो, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कह दिया है कि सरकार निराश नहीं है और वह पुन: उक्त कानूनों की दिशा में बढ़ेगी। अब वे सफाई दे रहे हैं कि उनके कहने का आशय यह नहीं था कि उक्त कानून फिर से लाए जाएंगे।

पूरे साल एक ओर सरकार अर्थव्यवस्था के मजबूत होने का दावा करती रही और दूसरी ओर महंगाई डायन के डंडे मध्य और निचले वर्गों की कमर तोड़ते रहे। एक ओर सरकार अपनी लोकतांत्रिकता का बखान करती रही और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय सूचकांक हमारी आजादी को आंशिक और लोकतंत्र को लंगड़ा करार देने लगे। इस दौरान गैर-बराबरी इस हद तक बढ़ गई कि विश्व असमानता रिपोर्ट-2022 के अनुसार देश की एक फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्सा संकेन्द्रित हो गया, जबकि निचले तबके के 50 फीसदी लोगों के पास महज 13 फीसदी हिस्सा बचा। शीर्ष 10 फीसदी आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी जमा हो गया, जबकि एक फीसदी आबादी के पास 22 फीसदी हिस्सा। वहीं, नीचे से 50 फीसदी आबादी की इसमें हिस्सेदारी मात्र 13 फीसदी रह गई। चीन की सीमा पर उसके अतिक्रमण के कारण पिछले साल पैदा हुआ तनाव इस साल सुलझने के नजदीक पहुंच कर भी नये सिरे से उलझ गया।
गत वर्ष इकतीस दिसम्बर को अपने गृहराज्य गुजरात के राजकोट में एम्स का शिलान्यास करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरोसा दिलाया था कि 2020 की निराशा के बरक्स 2021 उम्मीदें लेकर आएगा, क्योंकि हम कोरोना के खिलाफ कड़ाई और दवाई दोनों के कवच इस्तेमाल कर सकेंगे। उनकी बंधाई उम्मीद तब बड़ी होती दिखी थी, जब नए साल के पहले ही दिन कोरोना के टीके का इंतजार खत्म हो गया था और सीरम इंस्टीच्यूट के टीके को आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई थी। लेकिन फरवरी के मध्य में कोरोना की दूसरी लहर की कड़ी परीक्षा के बीच सब कुछ इस तरह अव्यवस्थित हो गया कि ‘दुनिया के सबसे बड़े’ और ‘मु्फ्त’ टीकाकरण अभियान के ढिंढोरे के बीच अभी तब देश के सारे वयस्कों का टीकाकरण भी संभव नहीं हो पाया है।

अलबत्ता, दु:ख दर्द की इन अनेक कथाओं के बीच 2021 ने देश को मुसकुराने के भी कई मौके उपलब्ध कराए। इनमें पहला बड़ा मौका था 23 जुलाई से आठ अगस्त तक टोक्यो में हुआ ओलंपिक, जिसमें पचास पदक जीतने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भले ही धरा रह गया, खिलाड़ियों ने देश की झोली में एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य समेत सात पदक डालकर 2012 के लंदन ओलम्पिक का पांच पदकों का रिकार्ड तोड़ डाला। अगली कड़ी में पैरालंपिक खेलों में ओलम्पिक से भी ज्यादा खुशखबरियां उसके हाथ आर्इं, जिनमें उसने पांच स्वर्ण पदकों समेत कुल 19 पदक जीतकर अपना सर्वकालिक रिकॉर्ड तोड़ डाला।

चंडीगढ़ की 21 वर्षीय ऐक्टर-मॉडल हरनाज संधू ने गत 13 दिसम्बर को इजरायल में हुई मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता का ताज अपने नाम करके इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल को और इक्कीस बना दिया, तो भी देश मुसकराया। आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के तेनाली शहर में जन्मी सिरीशा बांदला इसी साल 11 जुलाई को अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला बनीं।

देश के न्यायालयों ने भी इस साल कई दूरगामी महत्व के फैसलों से देश को खुश किया। 17 फरवरी को दिल्ली की एक अदालत ने व्यवस्था दी कि किसी यौनहमला पीड़ित महिला को हमले की शिकार होने के दशकों बाद भी शिकायत करने का हक है और किसी के प्रतिष्ठा के अधिकार को उसकी गरिमा के अधिकार की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता। 25 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी महिला के मायके वालों को उसके परिवार से अलग नहीं माना जा सकता और वे भी उसकी सम्पत्ति का उत्तराधिकार पा सकते हैं। पांच मार्च को एक अन्य मामले में उसने व्यवस्था दी कि मां-बाप के तलाक की सजा उनके बच्चों को नहीं दी जा सकती। इसलिए पत्नी से तलाक के बावजूद पिता को अपनी संतान का ग्रेजुएशन तक का खर्च उठाना पड़ेगा और अठारह वर्ष की उम्र तक पैसे देते रहने से ही उसकी जिम्मेदारी पूरी नहीं मानी जायेगी।

इस वर्ष ने आजादी के अमृत महोत्सव की धूमधाम भी देखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2022 को स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के 75 सप्ताह पूर्व 12 मार्च को गुजरात के साबरमती आश्रम से इस महोत्सव का शुभारंभ किया तो देश भर में कार्यकमों की झड़ी लग गई। ज्ञातव्य है कि 1930 में 12 मार्च को ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दांडी में ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह की शुरुआत की थी। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके साबरमती आश्रम से शुरू होकर दांडी तक जाने वाली फ्रीडम मार्च नामक पदयात्रा को हरी झंडी दिखाकर अमृत महोत्सव की शुरुआत की। इससे पहले इसी साल 12 फरवरी को गोरखपुर में चौराचौरी शताब्दी महोत्सव का शुभारंभ हुआ, जिसके उपलक्ष्य में पांच रुपये का स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया। बहरहाल, आइए, कामना करें कि आने वाले वर्ष 2022 में, जब कोरोना का नया वैरिएंट दुनिया की रफ्तार रोकने को उद्यत है, हमारा देश सारे अंदेशों को परे झटककर नई बुलदियां छुए।


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