जब-जब प्रकृति में विकास होता है तब-तब परिवर्तन अवश्यंभावी है। यह चक्र केवल प्रकृति में ही नहीं अपितु समाज में भी विद्यमान है। हमारे सामाजिक परिवेश में जब भी हम विकास की ओर अग्रसर रहे हैं, तब-तब परिवर्तन ने हमारी चौखट पर दस्तक दी है। प्राचीन समय में समाज में जब व्यक्ति सीमित थे, तो उनकी आवश्यकताएं भी सीमित थीं, साथ ही उन्हें पूरा करने के लिए उन्हें कम श्रम, कम समय और कम उत्पादन के साधन लगाने पड़ते थे। परंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे जनसंख्या बढ़ी, व्यक्तियों की आवश्यकताएँ बढ़ीं, साथ-साथ व्यक्तियों का रुझान भी भौतिक साधनों तथा विलासिता की वस्तुओं की ओर बढ़ा। अत: इन सभी को पूरा करने के लिए व्यक्ति को अधिक श्रम, अधिक पूँजी तथा अधिकाधिक उत्पादन के साधनों की आवश्यकता हुई और व्यक्ति धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता से अधिक अन्योन्याश्रित होता गया।
जैसे-जैसे व्यक्ति के जीवन में श्रम की मात्रा बढ़ती गई, वैसे-वैसे उसे अधिक दबाव और तनाव की स्थितियों से गुजरना पड़ा है। वर्तमान युग में एक साधारण व्यक्ति को देखा जाए तो वह भी इतना श्रम करता है कि उसके दिन का अधिकांश हिस्सा काम में ही व्यतीत हो जाता है। यहाँ तक कि उसे और भी अधिक कार्य करना पड़ता है। ऐसे में जब काम से निवृत्त होकर अपने घर आता है, तो वह बाहर के सभी तनावों से मुक्त रहना चाहता है। अत: आवश्यकता होती है उसे शांत माहौल तथा मनोरंजन की। मनोरंजन व्यक्ति के दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग है, जिसे वह चाहकर भी अपने आप से अलग नहीं कर सकता है।
यदि हम देखें कि किसी व्यक्ति को लगातार काम करवाया जाये और उसे मनोरंजन के कुछ क्षण भी ना दिए जाएँ, तो कुछ ही समय बाद वह दबाव, तनाव व कुंठा से ग्रस्त हो जाएगा जो उसे शारीरिक व मानसिक दोनों ही रूपों में कमजोर बना देगा, जिससे उसकी कार्यक्षमता पूरी तरह से प्रभावित हो जाएगी। पहले समय में व्यक्ति जब कम श्रम करते थे तब भी उनके पास मनोरंजन के कई साधन थे जैसे- नृत्य, लोक-संगीत, नाटक, नौटंकी, नुक्कड़नाटक, चौपाल पर समय बिताना, लोकगीत, रामलीला, रासलीला, तमाशा इत्यादि। उसी प्रकार मनोरंजन तो आज भी है पर केवल उनके साधनों में परिवर्तन आ गया है। आज आधुनिक युग में मनोरंजन के लिए विभिन्न विकल्प भी उपलब्ध है जिसका लाभ समस्त आयु-समूह के व्यक्ति अपने-अपने तरीके से उठा रहे हैं। आज यदि एक ही घर में झाँका जाए तो, परिवार के सदस्य चाहे वह बूढ़ा हो या बच्चा, सभी अलग-अलग मनोरंजन के साधनों का उपयोग करते हैं। कोई समाचार पत्र का उपयोग करता है, कोई टेलीविजन का, कोई इंटरनेट तो कोई मोबाइल का, परंतु मनोरंजन के साधनों पर स्वामित्व है तो केवल ‘मीडिया’ का।
यहां हमारे केंद्र बिंदु हैं-बच्चे व युवा जो इन मनोरंजन के साधनों का उपयोग ‘अति-उपयोग’ के रूप में कर रहे हैं, क्योंकि बच्चे आधुनिक युग का सबसे गतिशील व परिवर्तनशील हिस्सा है जो बहुत जल्दी किसी से भी प्रभावित हो जाते हैं। इनके मनोरंजन में आजकल संसार के सभी आधुनिक साधन सम्मिलित हैं। टेलीविजन से लेकर मोबाइल, इंटरनेट आदि सभी साधनों का उपयोग एक युवा व बच्चा अपने मनोरंजन के लिए करता है। यहाँ तक कि 12-18 वर्ष तक के किसी भी बच्चे को प्ले-स्टेशनपर देखा जा सकता है। साथ ही युवा इंटरनेट पर उपलब्ध सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग अपने मनोरंजन के लिए करते हैं। टेलीविजन का उपयोग युवा मनोरंजन व ज्ञान दोनों ही दृष्टि से करते हैं। टेलीविजन के अंतर्गत प्रसारित होने वाले रियेलिटी शो युवाओं को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। देखा जाए तो मनोरंजन का आधुनिक युग परंपरागत युग से काफी भिन्नता लिए हुए हैं, जिसकी चकाचौंध में एक युवा व एक भावी युवा अपने परंपरागत मनोरंजन के साधनों को बिसराए बैठा है तथा सभी क्षेत्रों में देखेजाने वाले परिवर्तनों से मनोरंजन का क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा है। जिनमें एक्स फैक्टर, एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा, इंडियाज गॉट टैलेंट आदि कार्यक्रम हैं जो मनोरंजन के साथ-साथ प्रतिभाओं को निखारने का भी एक सशक्त माध्यम है। परंतु कई बार यह मनोरंजन के साधन अपनी नकारात्मक भूमिका निभाते हुए युवाओं तथा बच्चों की मानसिकता को काफी हद तक प्रभावित करते हैं। आजकल देखा जा रहा है कि बढ़ती प्रतिस्पर्धा और प्रसिद्ध होने की चाह में छोटे -छोटे बच्चों तथा युवाओं पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, जिससे वे कई बार तनाव और कुंठा के शिकार हो जाते हैं।
कई अध्ययनों में तो यह भी देखा गया है कि बच्चों के अधिक इंटरनेट उपयोग करने के कारण तथा उनके अंतर्गत भी ई-मेल और इंसटैंट मैसेजिंग के अलावा खेलों जैसे-पबजी का अधिक उपयोग करने के कारण उनमें हिंसात्मक भावना की बढ़ोत्तरी हुई है तथा इस कारण एक भावी समाज के निर्माणकर्ता को समय से पहले ही दबाव, तनाव, कुंठा तथा हिंसात्मक प्रभावों से जूझना पड़ रहा है, जो उसके शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार के विकास के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। जहां एक ओर हम पाते हैं कि प्राचीन और परंपरागत समय के मनोरंजनात्मक साधनों की तुलना में आधुनिक मनोरंजन के साधनों में बढ़ोतरी हुई है, वहीं दूसरी ओर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इन साधनों ने मानव व्यवहार को समझना और अधिक जटिल बना दिया है। और इनके सकारात्मक प्रभावों के साथ-साथ नकारात्मक प्रभावों को भी समाज में दृष्टिगत बिंदु बना दिया है।