Tuesday, April 16, 2024
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नवसंवत्सर भारतीय काल गणना का आधार पर्व है

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dr pawan kumarनव वर्ष प्रतिपदा का दिन एक प्रकार से मौसम परिवर्तन का भी प्रतीक है। बसंत ऋतु का आरम्भ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। यह उल्लास, उमंग,खुशी तथा चारों ओर पीले पुष्पों की सुगन्ध से भरी होती है। इस समय नई फसलें भी पककर तैयार हो जाती हैं। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं। किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने का शुभ समय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही होता है। इसी तिथि से पितामह ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण प्रारंभ किया था। हिन्दू नववर्ष यानी विक्रम संवत 2080 का 22 मार्च बुधवार से शुरू हो रहा है। हिन्दू पंचाग के अनुसार चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नववर्ष की शुरुआत होती है। इस तिथि को नवसंवत्सर भी कहा जाता है। महाराष्ट्र और कोंकण में इसे गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है, जिसे बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है। ‘गुढी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ होता है। कहते हैं शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं (शक) का पराभव किया। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।

‘युग’ और ‘आदि’ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि’। हिन्दू नववर्ष से ही देश में नवीन वर्ष की शुरुआत मानी जाती है। नववर्ष किसी भी व्यक्ति के जीवन में आशा एवं उत्साह का नवीन प्रकाश लेकर आता है। नववर्ष का आगमन जीवन में नवीनता का सूचक होता है एवं व्यक्ति नववर्ष के मौके पर नवीन संकल्प के माध्यम से सफलता की ओर अग्रसर होने का लक्ष्य बनाता है।

यह दिन अनेक ऐतिहासिक पलों या फिर कई घटनाओं को एक बार फिर याद करने का दिन है। वैज्ञानिक मान्यता है कि हिन्दू पंचांग व कालगणना सबसे अधिक वैज्ञानिक है।वस्तुत: नवसंवत्सर भारतीय काल गणना का आधार पर्व है जिससे पता चलता है कि भारत का गणित एवं नक्षत्र विज्ञान कितना समृद्ध है। हमारी यह कालगणना वैज्ञानिक तथा शास्त्रशुद्ध गणना है। सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक 1 अरब, 95 करोड़, 58 लाख, 85 हजार, 106 वर्ष बीत चुके है। यह गणना ज्योतिष विज्ञान के द्वारा निर्मित है। आधुनिक वैज्ञानिक भी सृष्टि की उत्पत्ति का समय एक अरब वर्ष से अधिक बता रहे है।भारत में कई प्रकार से कालगणना की जाती है।

युगाब्द (कलियुग का प्रारंभ) श्रीकृष्ण संवत, विक्रमी संवत, शक संवत आदि। साधारण ग्रामीण भी चन्द्रमा की गति से परिचित है। वह जानते हैं कि आज पूर्णिमा है या द्वितीया। इस प्रकार काल गणना हिन्दू जीवन के रोम-रोम एवं भारत के कण-कण से अत्यन्त गहराई से जुड़ी है। ठिठुरती ठंड मे पड़ने वाला ईसाई नववर्ष पहली जनवरी से भारतवंशियों का कोई संबन्ध नहीं है।

प्रतिपदा हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है, इसके सामाजिक एवं ऐतिहासिक सन्दर्भ भी हैं-यथा मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक, मां दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्भ, युगाब्द(युधिष्ठिर संवत) का आरम्भ,उज्जयिनी सम्राट-विक्रामादित्य द्वारा विक्रमी संवत प्रारम्भ, शालिवाहन शक संवत (भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचाग),महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना, संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिवस इत्यादि चैत्र नववर्ष की सार्थकता को स्वत: ही सिद्ध करते हैं।

नव वर्ष प्रतिपदा का दिन एक प्रकार से मौसम परिवर्तन का भी प्रतीक है। बसंत ऋतु का आरम्भ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। यह उल्लास, उमंग,खुशी तथा चारों ओर पीले पुष्पों की सुगन्ध से भरी होती है। इस समय नई फसलें भी पककर तैयार हो जाती हैं। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं। किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने का शुभ समय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही होता है। इसी तिथि से पितामह ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण प्रारंभ किया था। ‘चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि। शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति।’

इस तिथि को रेवती नक्षत्र में, विष्कुंभ योग में दिन के समय भगवान के आदि अवतार मत्स्यरूप का प्रादुर्भाव भी माना जाता है। युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारंभ भी इस तिथि को हुआ था। यह तिथि ऐतिहासिक महत्व की भी है, इसी दिन सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी और उसे चिरस्थायी बनाने के लिए विक्रम संवत का प्रारंभ किया था। इस वर्ष 22 मार्च 2023 दिन बुधवार को विक्रम संवत 2080 का आरंभ होगा। इस संवत्सर का नाम नल होगा और इसके अधिपति बुध ग्रह और मंत्री शुक्र ग्रह होंगे। ज्योतिष के अनुसार दोनों ही ग्रह आपस में मैत्री भाव रखते हैं जिससे हिंदू नव वर्ष को भेद शुभ माना जा रहा है।

वस्तुत: ठोस गणितीय और वैज्ञानिक काल गणना पद्धति पर आधारित हिन्दू नववर्ष हमारी पुरातन संस्कृति का सार है। आज जिसका प्रयोग मात्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र तक ही सीमित रह गया है। आवश्यकता इस बात की है कि हम इसे दैनिक जीवन में भी अपनाएं और धूम धाम से शास्त्रीय विधान के साथ अपना नववर्ष मनाएं।


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