शेख सादी हमेशा पांच वक्त की नमाज पढ़ने मसजिद जाया करते थे। वे गरीब थे, इसलिए उनके उनके पैरों में हमेशा घिसे-पिटे जूते होते ही होते थे। उन्हें इसका मलाल भी नहीं था। एक दिन जब वे नमाज पढ़ने गए हुए थे, तो उन्होंने देखा कि एक रईस आदमी नमाज पढ़ने आया है। व शानदार कपड़े तो पहने ही हुआ था, उसके पैरों में सुनहरी मीनाकारी की जूतियां भी थीं। शेख सादी ने कौतूहलवश उससे पूछा, ‘आप कितने दिन नमाज पढ़ने आते हैं।’
रईस ने जवाब दिया, ‘साल में एक दिन।’ अब शेख सादी सोचने लगे, यह आदमी साल में एक दिन नमाज पढ़ने आता है और इसके पांवों में सुनहरे जूते हैं और मैं रोज नमाज पढ़ता हूं, पर मेरे पास फटे-पुराने जूते ही हैं। उन्होंने ऐसा सोचते हुए अल्लाह को बहुत बुरा-भला कहा। सोचने लगे कि अल्लाह ज्यादती कर रहा है। साल में एक दिन नमाज पर पढ़ने वालों के यह ठाठ और पूरे साल पांच बार नमाज पढ़ने वाले के पैरों में अच्छी जूती भी नहीं?
अभी वे यह सब सोच ही रहे थे कि एक लंगड़ा आदमी नमाज पढ़ने मस्जिद पहुंचा। शेख सादी ने उससे भी पूछा, ‘कितनी बार नमाज पढ़ते हो।’ उसने जवाब दिया, ‘दिन में पांच बार।’ अब शेख सादी सोच में पड़ गए। दिन में पांच बार पढ़कर भी उसके साथ इतना अन्याय कि उसके पांव ही नहीं थे। उससे अच्छी किस्मत तो उनकी है कि अल्लाह ने उनके पैर सही-सलामत रखे हैं। उस दिन से शेख सादी ने दूसरों से अपनी तुलना करना छोड़ दिया।
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