Friday, March 29, 2024
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प्रकृति को पछाड़ता प्लास्टिक

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NAZARIYA

SUDARSHAB SOLANKI

प्लास्टिक को बनाया तो इंसान ने ही है, लेकिन अब वही प्लास्टिक, भस्मासुर की तरह इंसान और उसके प्राकृतिक पर्यावास पर संकट बनकर खड़ा हुआ है क्या है, यह खतरा और उसका आकार? पूरा विश्व प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से चिंतित है क्योंकि यह पर्यावरणीय तंत्र को भयानक तरीके से प्रभावित कर रहा है। प्लास्टिक बैग और प्लास्टिक से बने अन्य उत्पाद छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट तो जाते हैं, किंतु पूरी तरह विघटित नहीं होते। ये मिट्टी और पानी के स्रोतों में मिल जाते हैं, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या और अधिक विकराल हो जाती है। यह अब स्थलीय जीवों के साथ ही समुद्री जीवों के लिए खतरा बन गया है।

समुद्री किनारों, उनकी सतहों और जमीन पर जो कूड़ा-कचरा इकट्ठा होता है उसमें से 60 से 90 फीसदी हिस्सा प्लास्टिक होता है। ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (यूएनईपी) ने कहा है कि हर साल लगभग 80 लाख टन प्लास्टिक कूड़ा-कचरा समुद्रों में फेंका जाता है। अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ‘वर्ल्ड वाइड फंड’ (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक प्लास्टिक प्रदूषण दोगुना हो जाएगा।

प्रति वर्ष उत्पादित होने वाले कुल प्लास्टिक में से केवल 20 प्रतिशत प्लास्टिक ही रिसाइकिल हो पाता है, 39 प्रतिशत जमीन के अंदर दबाकर नष्ट किया जाता है और 15 प्रतिशत जला दिया जाता है। प्लास्टिक के जलने से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइआॅक्साइड की मात्रा 2030 तक तिगुनी हो जाएगी, जिससे श्वास संबंधी रोग के मामले में तेजी से वृद्धि होने की आशंका है।

अब समुद्री जीव मछली, केकड़े, कछुए इत्यादि प्लास्टिक कचरे में उलझे पाए गए हैं। इसके अतिरिक्त ये जीव प्लास्टिक कचरे को अपना भोजन समझकर उसे निगल जाते हैं जिससे इनकी मौत हो जाती है। कुछ वर्ष पहले दक्षिणी स्पेन के समुद्री तट पर बहकर आई एक मरी हुई स्पर्म व्हेल की जाँच से पता चला कि उसके पेट और आँतों में जमे 64 पाउंड के प्लास्टिक कचरे ने उसकी जान ले ली थी। पक्षी भी प्लास्टिक कचरे का उपयोग अपना घोंसला बनाने के लिए करते है एवं इसमें उलझ जाते है, साथ ही प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों को वे अन्न समझ कर खा जाते है जो उनकी मौत का कारण बनता है।

प्लास्टिक कचरा लगातार इस कदर बढ़ता जा रहा है कि अब यह जंगल तक भी पहुंच गया है।  जावा के उत्तरी तट के मैंग्रोव वनों का विनाश प्लास्टिक कचरे के कारण हो रहा है। मैंग्रोव तटीय कटाव को रोकने में एक अहम प्राकृतिक भूमिका निभाते हैं। ‘रॉयल नीदरलैंड्स इंस्टीट्यूट फॉर सी-रिसर्च’ के शोधकर्ता सेलीन वैन बिजस्टरवेल्ट ने शोधकर बताया है कि बेहतर कचरा प्रबंधन के बिना इस ग्रीन प्रोटेक्शन बेल्ट की बहाली असंभव है। मैंग्रोव के वनों पर प्लास्टिक फंसकर एक तरह का जाल बन जाता है जो मैंग्रोव वनों के लिए काफी घातक हो सकता है।
आॅस्ट्रेलिया की एक शोध रिपोर्ट से पता चला है कि 90 फीसदी प्लास्टिक कचरा सौ कंपनियां तैयार कर रही हैं। दुनिया की 20 कंपनियां 50 फीसदी से अधिक सिंगल-यूज प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसी ज्यादातर कंपनियां एशिया, यूरोप, अमरीका जैसे महाद्वीपों में स्थापित हैं। ये कंपनियां पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाले संकट के लिए जिम्मेदार हैं।

‘मिंडेरू फाउंडेशन’ द्वारा जारी रिपोर्ट ‘द प्लास्टिक वेस्ट मेकर इंडेक्स’ से पता चला है कि दुनिया के करीब 55 फीसदी सिंगल-यूज प्लास्टिक कचरे के लिए केवल 20 पेट्रोकेमिकल कंपनियां जिम्मेदार हैं। इस रिपोर्ट को ‘लंदन स्कूल आॅफ इकोनॉमिक्स,’ ‘स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट,’ ‘वुड मैकेंजी’ और अन्य संस्थानों के विशेषज्ञों की मदद से तैयार किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की ‘एक्सन मोबिल’ और ‘डॉव’ कंपनियां इनके उत्पादन में शीर्ष पर हैं, जबकि चीन की कंपनी ‘सिनोपेक’ तीसरे स्थान पर है। ये तीनों मिलकर प्लास्टिक पॉलीमर का करीब 16 फीसदी हिस्सा उत्पादित करती हैं, जो बाद में प्लास्टिक कचरा बनता है। यदि इन कंपनियों को नियमों के दायरे में लाया जाए तो इससे सिंगल-यूज प्लास्टिक कचरे की समस्या को कम किया जा सकता है।

प्लास्टिक कचरे को पूरी तरह से खत्म करना लगभग असंभव है। कई देश इस कचरे से निपटने के लिए कई तरह के उपाय तलाश रहे हैं। कहीं प्लास्टिक वेस्ट से सड़कों का निर्माण किया जा रहा है तो कहीं इससे ईंधन बनाया जा रहा है। हाल ही में आए तौतके तूफान ने समुद्र से प्लास्टिक कचरा उगला था, जो हमें तटीय क्षेत्रों पर देखने को मिला। स्पष्ट होता है की प्लास्टिक कचरे के उत्सर्जन और उसके निष्पादन के लिए किए जा रहे उपाय पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए मिलकर प्रयास करने होंगे, अन्यथा आने वाले कुछ ही वर्षों में यह कचरा समस्त जीवों के अस्तित्व तक को समाप्त कर सकता है।


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