Thursday, April 25, 2024
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गहने और भक्ति

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AMRITVANI


भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के मन में एक दिन एक विचित्र विचार आया। उन्होंने तय किया कि वह भगवान श्रीकृष्ण को अपने गहनों से तौलेंगी। श्रीकृष्ण ने जब यह बात सुनी तो बस मुस्कुराए, बोले कुछ नहीं। वह चाहते थे कि सत्यभामा सच को जाने। सत्यभामा ने भगवान को तराजू के पलडे पर बिठा दिया। दूसरे पलड़े पर वह अपने गहने रखने लगीं। भला सत्यभामा के पास गहनों की क्या कमी थी। वह एक-एक करके गहने पलड़े में रखती रहीं। लेकिन श्रीकृष्ण का पलड़ा लगातार भारी ही रहा। अपने सारे गहने रखने के बाद भी भगवान का पलड़ा नहीं उठा तो वह हारकर बैठ गर्इं। तभी रुक्मिणी आ गई । सत्यभामा ने उन्हें सारी बात बताई। रुक्मिणी तुरंत पूजा का सामान उठा लाई।

उन्होंने भगवान की पूजा की। जिस पात्र में भगवान का चरणोदक था, उसे उठाकर उन्होंने गहनों वाले पलड़ों पर रख दिया। देखते ही देखते भगवान का पलड़ा हल्का पड़ गया। ढेर सारे गहनों से जो बात नहीं बनी, वह चरणोदक के छोटे-से पात्र से बन गई। सत्यभामा यह सब आश्चर्य से देखती रहीं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हुआ। तभी वहां नारद मुनि आ पहुंचे। उन्होंने समझाया, ‘भगवान की पूजा में महत्व सोने-चांदी के गहनों का नहीं, भावना का होता है। रुक्मिणी की भक्ति और प्रेम की भावना भगवान के चरणोदक में समा गई। भक्ति और प्रेम से भारी दुनिया में कोई वस्तु नहीं है। भगवान की पूजा भक्ति-भाव से की जाती है, सोने-चांदी से नहीं। पूजा करने का ठीक ढंग भगवान से मिला देता है।’ सात्यभामा उनकी बात समझ गर्इं। सत्य भी यही है, पैसे आदि से भगवान खुश नहीं होते, भक्ति परोपकार से होते हैं। इसलिए सोना-चांद भगवान के चरणों में नहीं, परोपकार पर लगाना चाहिए।

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