Friday, April 19, 2024
- Advertisement -
HomeUttar Pradesh NewsMuzaffarnagarप्रख्यात शायर अशोक साहिल ने दुनिया को कहा ‘अलविदा’

प्रख्यात शायर अशोक साहिल ने दुनिया को कहा ‘अलविदा’

- Advertisement -

गुर्दों की बीमारी से चल रहे थे ग्रसित, दो वर्ष पूर्व पत्नी की भी हो गई थी मौत

जनवाणी संवाददाता |

मुजफ्फरनगर: ‘नजर-नजर में उतरना कमाल होता, नफ्स-नफ्स में बिखरना कमाल होता है- बुलन्दियों पर पहुंचना कमाल नहीं होता, बुलन्दियों पर ठहरना कमाल होता है’ जैसे मशहूर शेर अदब की दुनियां को देने वाले प्रख्यात शायर अशोक साहिल अब इस दुनिया में नहीं रहे।

अशोक साहिल गुर्दों की बीमारी से ग्रसित चल रहे थे, जिसके चलते उन्होंने अस्पताल में आखिरी सांस ली। अशोक साहिल के शव का अन्तिम संस्कार शुक्रताल में किया गया। अशोक साहिल की मौत से साहित्य जगत व अदब की दुनिया में शोक छाया हुआ है।

दिल्ली में जन्मे अशोक साहिल ने प्रारम्भ से ही मुजफ्फरनगर को अपनी कर्मस्थली बनाया। प्रारम्भ में उन्होंने छोटे-मोटे कार्य किये, परन्तु बाद में उन्होंने शायरी को अपना प्रोफेशन बनाया।

अशोक साहिल ने शुरूआत मुजफ्फरनगर में नशिस्तों से की, परन्तु अपनी मजबूत शायरी के दम पर उन्होंने बहुत कम समय में अपनी पहचान बना ली और वह मुशायरों की शान बन गये।

अशोक साहिल न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी मजबूत शायरी के दम पर अपनी पहचान बना चुके थे। उनके द्वारा कहे गये शेरों में एक नसीहत व तर्जुबा होता था, जो मुशायरों की कामयाबी की जमानत बन जाते थे।

अशोक साहिल द्वारा कहे कुछ शेर तो लोगों की जुबान पर कायम हैं, जिन्हें आये दिन लोगों को बोलते देखा जा सकता है, उनके द्वारा कहा गया शेर ‘नजर-नजर में उतरना कमाल होता, नफ्स-नफ्स में बिखरना कमाल होता है- बुलन्दियों पर पहुंचना कमाल नहीं होता, बुलन्दियों पर ठहरना कमाल होता है’ अनेक मौकों पर लोगों को इस्तेमाल करते देखा जा सकता है।

इसके अलावा उनके द्वारा अपने शेर- ‘‘फकीरे शहर जरा सड़क पर धीरे चल, अमीरे शहर के बंगले में धूल जाती है’’ के माध्यम से अमीरों व गरीबों के बीच के फर्क पर तंज किया है।

अशोक साहिल सामाजिक सरोकार को अपने शेरों के माध्यम से पिरौने का हुनर रखते थे। समाज में जो कुछ भी होता देखते थे, उसे अपनी शायरी के माध्यम से लोगों के बीच परोस देते थे, उनकी शायरी में न केवल समाज की चिन्ता होती थी, बल्कि नसीहत भी होती थी।

साम्प्रदायिक सौहार्द्र को कायम करने के लिए कहा गया उनका यह शेर भी बहुत मशहूर हुआ- चाहे मय्यत किसी की भी हो, बढके कांधा दीजिए- कौमियत अपनी जगह है, इंसानियत अपनी जगह’’

अशोक साहिल की पत्नी शोभा जिला अस्तपताल में बतौर नर्स कार्य करती थी, दो वर्ष पूर्व उनकी भी मौत हो गई थी। पत्नी की मौत के बाद अशोक साहिल टूट गये थे। अशोक साहिल की तीन पुत्रियां हैं, जिनमें बुलबुल, शिवानी व प्रियम हैं। तीनों बेटियों की शादी हो चुकी हैं। पत्नी की मौत के बाद अशोक साहिल अकेले रहते थे, हालांकि उनका हाल जानने के लिए उनकी बेटियां उनके पास आती रहती थी।

अदब की दुनिया को लगा बड़ा आघात

अशोक साहिल हिन्दू थे, परन्तु वह शायरी उर्दू में करते थे। उनकी शायरी में समाज के लिए न केवल चिन्ता होती थी, बल्कि एक नसीहत भी होती थी। अशोक साहिल को गंगा-जमुनी तहजीब का संरक्षक कहा जाता था, यही कारण था कि मुशायरों में उनकी शायरी को सुनने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे।

अशोक साहिल मुशायरों में शायरी के माध्यम से अपनी मंजिल खुद तलाश करते थे और वह आम रास्ते से हटकर अलग शायरी करने के लिए मशहूर थे। यही कारण है कि अशोक साहिल द्वारा कहे गये कुछ शेर सदी के शेर बन गये और आने वाली नस्लें उनके इन शेरों को पढेगी भी और सुनायेगी भी।

अशोक साहिल की मौत पर शायर अब्दुल हक सहर, खुर्शीद हैदर, अहमद मुजफ्फरनगरी, तनवीर गौहर, सलीम अहमद सलीम, उस्मान आदिल, अरशद जिया, रौनक मुजफ्फरनगरी, प्रवेज मुजफ्फरनगरी, अयाज तालिब, नदीम अख्तर ने गहरा दुख व्यक्त करते हुए उर्दू शायरी का बड़ा नुकसान बताया है।

‘‘अशोक साहिल ने मुजफ्फरनगर की गंगा-जमुनी तहजीब को परवान चढ़ाने में जो योगदान दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता, शायरी को ओढना व बिछौना बनाने वाला शायर आज दुनिया को अलविदा कह गया है, जो उर्दू अदब के लिए बड़ा नुकसान है’’
                                                            -खालिद जाहिद, मुजफ्फरनगरी प्रख्यात शायर

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments