नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। इस्लामिक धर्म में कई त्योहार आते हैं। उन्ही में से एक है मुहर्रम का त्योहार…बताया जाता है कि, इस्लामिक धर्म में मुहर्रम के दिनों को बहुत ही पाक माना जाता है। साथ ही इस धर्म में इस समय नए साल की शुरूआत भी होती है। यह माह मुस्लिम लोगों के लिए रमजान के बाद दूसरा सबसे शुद्ध यानि पाक महीना होता है। जैसे कि आप सब जान गए हैं मुहर्रम शुरू हो गया है। तो आइए जानते हैं इसके बारे में कुछ खास बाते…
हजरत इमाम हुसैन की शहादत को करते हैं याद
माना जाता है कि, इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए हर साल मातम मनाते हैं। यह मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए सबसे दुखी होने का दिन माना जाता है। हजरत इमाम हुसैन, इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे।
क्यों 10वें दिन मनाते हैं मातम
यौम-ए-आशूरा यानि मुहर्रम के 10वें दिन को मातम का दिन माना जाता है। बताया जाता है कि, करीब 1400 साल पहले मुहर्रम के 10वें दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन शहीद हुए थे।
इतिहास में बताया गया है कि हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने 72 साथियों के साथ शहादत दे दी थी, जिसमें उनके परिवार के लोग भी शामिल थे। यह जंग इराक के कर्बला में हुई थी, जिसमें यजीद की सेना और हजरत इमाम हुसैन के लड़ाकों के बीच लड़ाई हुई थी।
शिया समुदाय के लोग ताजिया निकालते हैं..
मुहर्रम के 10वें दिन इस्लाम के शिया समुदाय के लोग ताजिया निकालते हैं। ताजिया निकालकर लोग मातम में शरीक होते हैं। जिस जगह पर हजरत इमाम हुसैन का मकबरा है, उसी तरह का ताजिया बनाकर सड़कों पर जुलूसल जत्थे निकाले जाते हैं। इस दौरान जुलूस में शामिल लोग काले कपड़े पहने हुए होते हैं।
बता दें कि, मातम मनाते हुए लोग चिल्ला-चिल्ला कर कहते हैं कि या हुसैन, हम न हुए। इसका मतलब होता है कि हे हजरत इमाम हुसैन हम सब इस घटना से दुखी हैं। कर्बला की जंग में हम आपके साथ नहीं थे, अगर हम होते तो इस्लाम की रक्षा के लिए उस जंग में शामिल होकर अपनी कुर्बानी दे देते।
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