जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लव जिहाद की घटनाओं पर लगाम के लिए लाए गए धर्मांतरण अध्यादेश को रद्द करने की मांग में दाखिल जनहित याचिकाओं पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने अध्यादेश पर अंतरिम रोक लगाए जाने से फिलहाल इनकार कर दिया।
यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर एवं जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने इस मामले में दाखिल तीन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया है। याचिकाओं में अध्यादेश को गैर ज़रूरी बताते हुए इसे रद्द किए जाने की मांग की गई है।
सरकार की ओर से अध्यादेश को ज़रूरी बताते हुए कहा गया कि क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इस तरह का अध्यादेश बहुत ज़रूरी हो गया था। कोर्ट ने राज्य सरकार को जवाब के लिए चार जनवरी तक का समय दिया है। उसके बाद याचियों को अगले दो दिनों में प्रत्युत्तर हलफनामा दाखिल करना होगा। याचिकाओं पर अगली सुनवाई सात जनवरी को होगी।
क्या है धर्मांतरण अध्यादेश
इसमें एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन के लिए संबंधित पक्षों को विहित प्राधिकारी के समक्ष उद्घोषणा करनी होगी कि यह धर्म परिवर्तन पूरी तरह स्वेच्छा से है। संबंधित लोगों को यह बताना होगा कि उन पर कहीं भी, किसी भी तरह का कोई प्रलोभन या दबाव नहीं है। योगी सरकार के इस ऐतिहासिक कानून के लागू होने के बाद अब उत्तर प्रदेश में किसी एक धर्म से अन्य धर्म में लड़की के धर्म में परिवर्तन से एक मात्र प्रयोजन के लिए किए गए विवाह पर ऐसा विवाह शून्य की श्रेणी लाया जा सकेगा।
इतना ही नहीं दबाव डालकर या झूठ बोलकर अथवा किसी अन्य कपट पूर्ण ढंग से अगर धर्म परिवर्तन कराया गया तो यह एक अपराध के रूप माना जाएगा और इस गैर जमानती प्रकृति के अपराध के मामले में प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में मुकदमा चलेगा। दोष सिद्ध हुआ तो दोषी को कम से कम 1 वर्ष और अधिकतम 5 वर्ष की सजा भुगतनी होगी, साथ ही न्यूनतम 15,000 रुपए का जुर्माना भी भरना होगा। अगर मामला अवयस्क महिला, अनूसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के सम्बन्ध में हुआ तो दोषी को 03 वर्ष से 10 वर्ष तक कारावास की सजा और न्यूनतम 25,000 रुपये जुर्माना अदा करना पड़ेगा।